Wednesday - 10 January 2024 - 7:57 AM

विनाश की तरफ ले जा रहा है खेती के लिए पानी लेने का यह तरीका

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. भूजल सप्ताह की शुरुआत के मौके पर 16 जुलाई को वॉटरएड इंडिया, विज्ञान फाउंडेशन ग्राउंड वॉटर एक्शन ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन हुआ. इस वेबिनार में “स्टेट ऑफ ग्राउंड वॉटर इन उत्तर प्रदेश” पुस्तक का विमोचन किया गया. विमोचन के बाद भूगर्भ जल स्तर में हो रही कमी एवं इसके कारण पर गंभीर चर्चा की गई. कार्यक्रम को प्रारंभ करते हुए वॉटरएड इंडिया के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. शिशिर चंद्रा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया.

वॉटरएड इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक फर्रुख रहमान खान ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए चर्चा प्रारंभ की. जिसमें उन्होंने बताया कि जल सिर्फ उतर प्रदेश का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए चर्चा का एक विषय है, पर आज हम उत्तर प्रदेश के ही विषय में चर्चा कर रहे हैं. यहां की आबादी लगभग 22 करोड़ है.

अगर आबादी के दृष्टिकोण से देखें तो उत्तर प्रदेश विश्व का पांचवा सबसे बड़ा देश होगा. हाल ही के दिनों में भूमिगत जल पर चर्चा बहुत जोरों से प्रारंभ हुई है. सरकार ने भी इस दिशा में ठोस कदम उठाए हैं और भूजल विनियमन की ओर ध्यान केंद्रित किया है और बहुत से अभियान भी चला रही है, और यह एक प्रकार का अवसर भी है, कि इस राजनीतिक इच्छा का लाभ सभी उठा सकें.

“स्टेट ऑफ ग्राउंड वॉटर इन उत्तर प्रदेश” पुस्तक के लेखक आर एस सिन्हा, पूर्व वरिष्ठ जियोहाइड्रोलाजिस्ट, ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट उत्तर प्रदेश ने इस अवसर पर उत्तर प्रदेश में भूगर्भ जल की समेकित स्थिति पर तैयार दस्तावेज जारी किया. यह प्रदेश की पहली ऐसी रिपोर्ट है जिसमें भूजल के सभी पहलुओं का एक समग्र परिदृश्य तथा नीतिगत मामलों का विस्तार से समावेश किया गया है.

विगत वर्षों में भूजल की स्थिति में परिवर्तन, खराब होती गुणवत्ता से जुड़े आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है और उसके आधार पर भूजल की समस्याओं के स्थाई समाधान हेतु एक मजबूत प्रबंधन प्रणाली का सुझाव दिया गया है. भूजल आंकड़ों के समय प्रबंधन की आवश्यकता के साथ भूजल के लिए देश में एक केंद्रीकृत कानून बनाए जाने की आवश्यकता का सुझाव दिया गया है और जमीन के भीतर स्थित एक्यूफर्स को पुनर्जीवित करने के लिए एकीकृत तरीकों को अपनाने की वकालत की गई है.

भूजल प्रदूषण के मामले लगातार प्रकाश मे आने के परिणाम स्वरूप इस बात की आवश्यकता पर बल दिया गया है कि पूरे प्रदेश में भूजल गुणवत्ता की समग्र मैपिंग कराई जाए. इस राज्य रिपोर्ट में 74 विकासखंडो में तत्काल भूजल प्रबंधन की आवश्यकता बताई गई है जो वर्ष 2004 से लगातार गंभीर स्थिति में हैं. यह भी हो सकता बताई गई है कि भूजल जल दोहन एवं रिचार्ज के लिए विज्ञान आधारित नियम तय किए जाएं.

अशोक कुमार, पूर्व निदेशक, ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट उत्तर प्रदेश ने बताया कि कृषि, उद्योग एवं घरों की निर्भरता 70% भूमिगत जल पर निर्भर है. उत्तर प्रदेश की धरती गंगा यमुना दोआब की भूमि है जो की भारी मात्रा में वर्षा जल को समेटती है किंतु खेती के लिए गैर वैज्ञानिक तरीके से भूमिगत जल का दोहन विनाश की तरफ ले जा रहा है. जिसे पूर्व की स्थिति में लाने के लिए दशकों लगेंगे.

उत्तर प्रदेश भूजल दोहन में अग्रणी राज्य है। प्रकृति के प्रति असंवेदनशीलता के परिणाम स्वरुप ही उत्तर प्रदेश के 72 विकासखंड अति दोहित की श्रेणी में हैं, नहर समादेश प्रणाली में भी विपरीत परिस्थितियां हैं जिससे कि दोहन और संरक्षण की नीति की आवश्यकता है. किसानों से हित भाषी चर्चा नहीं होती जिससे कारण वह गैर वैज्ञानिक तरीके से भूजल का दोहन करते हैं. इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से ही जल का संवर्धन किया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश के 40 से 45 जिले आर्सेनिक से प्रभावित हैं, कुछ स्थानों पर नाइट्रेट, फ्लोराइड एवं मानव जनित प्रदूषण बहुत अधिक है जैसे कि उन्नाव एवं कानपुर के कारखाने पंप के माध्यम से जमीन में ही दूषित जल को भर देते हैं और वहां के आसपास के निवासी एवं स्कूली बच्चे र्कोमियम युक्त पानी पीने को विवश हैं. यदि हर आदमी मानवता के आधार पर सोचें तो समस्याओं का समाधान हो सकता है.

सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड, उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक क्षेत्रीय निदेशक पी के त्रिपाठी ने चर्चा के दौरान बताया कि वर्ष 2020 से ही रिसॉर्ट मैपिंग का असेसमेंट ऑनलाइन किया जा रहा है जो कि प्रत्येक दो वर्ष में दोहराया जाएगा. जन जागरूकता के लिए गैर सरकारी संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण है, इनके माध्यम से स्थानीय स्तर पर लोग अपने पानी के खर्च का खाका तैयार कर उसकी बचत सुनिश्चित कर सकते हैं. उन्होंने साथ में यह भी बताया कि एक्यूफर की मैपिंग का कार्य जारी है, साथ ही पानी से जुड़े सभी विभागों को एक साथ मिलकर उसकी उपलब्धता एवम् गुणवत्ता पर कार्य करने की आवश्यकता है. यदि पानी की मांग को घटा दिया जाए, तो ही सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.

डॉ. वाई बी कौशिक ने बताया की नीति निर्माण में यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि सरकार प्रतिबंधित न करें बल्कि लोगों को इस प्रकार जागरुक करें कि वे स्वयं से जल के दोहन के प्रति अपने को प्रतिबंधित करें.

बी आर चौरसिया जी ने बताया कि पानी की समस्या वर्ष 2000 के उपरांत प्रारंभ हुई वर्ष 2008 में क्लाइमेट चेंज के कारण पूरी दुनिया को बुरे परिणामों का सामना करना पड़ा. वर्षा वर्ष दर वर्ष कम होती जा रही हैं, जिसमें हमारे जंगलों की भूमिका अहम है. जहां पर 5% से कम जंगल क्षेत्र हैं वहां पर वर्षा में कमी पाई गई है अतः वर्षा की प्रकृति में बदलाव लाने के लिए अधिक से अधिक जंगल का होना अनिवार्य है.

पी बी दिवेदी जी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में शहरीकरण भी जल दोहन का सबसे बड़ा कारण है यहां पर आ नियंत्रित तरीके से भूजल का दोहन किया गया है ऐसे में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य करने की आवश्यकता है एवं इसका कड़ाई से पालन हो यह भी सुनिश्चित करना अनिवार्य है.

भूजल सप्ताह कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. भीष्म कुमार, सेवानिवृत्त प्रोफेशनल स्टाफ एवं सलाहकार, इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी, विआना, ऑस्ट्रेया ने बताया कि भूमिगत जल की समस्या समय के साथ साथ तेजी से बढ़ रही है जिसका मूलभूत कारण इच्छाशक्ति को माना जा सकता है. यदि हम एडवांस तकनीकी का प्रयोग करके सही आंकड़ों को इकट्ठा करें, जिससे कि क्षेत्र विशेष के लिए सही नीति का निर्माण हो सके, तो भूमिगत जल के स्तर को संभाला जा सकता है. भूमिगत जल का मूल्यांकन भी इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जैसे पिता से उस के पुत्र को एवं उससे उसके आगे आने वाली पीढ़ी को संपत्ति हस्तांतरित होती है उसी प्रकार भूमिगत जल भी समय के साथ हस्तांतरित होता रहता है जो पीढ़ी जितना अधिक दोहन करेगी, वह अपने आगे आने वाली पीढ़ी के लिए उतना ही समस्या उत्पन्न करेगी. जल की गुणवत्ता भी एक बहुत बड़ी समस्या के रुप में सामने आ रहा है. जिसके संबंध में उन्होंने श्रीलंका का उदाहरण देते हुए बताया वहां पर 20,000 लोगों की मृत्यु किडनी फेल होने के कारण हो गई लोगों ने इसका कारण जल की गुणवत्ता को बताया गया, किंतु अध्यन के दौरान यह पाया गया कि कृषि में रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से यह घटना घटित हुई. अतः हमें जल की गुणवत्ता को बचाए रखने के लिए कृषि में रासायनिक उर्वरक का कम उपयोग करना चाहिए. जिससे कि जल स्रोत प्रदूषित होने से बचें और आम जनमानस को बीमारियों से बचा जा सके. डॉ. शिशिर चंद्रा ने कार्यक्रम समापन करते हुए सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया.

यह भी पढ़ें : झाडू लगाते-लगाते प्रशासनिक अधिकारी बन गई आशा कंडारा

यह भी पढ़ें : क्रान्तिकारियों सरीखी अहम रही स्वतंत्रता आंदोलन में नाट्य लेखकों की भूमिका

यह भी पढ़ें : तस्वीरों में देखिये दानिश सिद्दीकी के कैमरे की जंग

यह भी पढ़ें : झारखंड में 100 कृषि पाठशालाएं खोलने की तैयारी

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com