Thursday - 11 January 2024 - 9:00 AM

तलवार कैप्टन के हाथ में भी है और सिद्धू के भी

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव के मुहाने पर खड़े पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच खिंची तलवारों को म्यान में रखवाने के लिए एक को सरकार सौंप दी और दूसरे को संगठन. कांग्रेस आलाकमान को लगा कि इस तरह से पंजाब कांग्रेस की बदमजगी दूर हो जायेगी और चुनाव में कोई बड़ी समस्या नहीं आयेगी क्योंकि सिद्धू और अमरिंदर दोनों का एक ही मकसद बन जायेगा चुनाव में जीत मगर हालात काबू में आते नज़र नहीं आ रहे हैं.

सोनिया, राहुल और प्रियंका तीनों ने ही पहले यही चाहा था कि सिद्धू की पंजाब सरकार में वापसी हो जाए लेकिन दोनों के बीच प्रेस्टीज इश्यू का मसला इतना बड़ा हो गया था कि दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं था. सिद्धू कैप्टन को अपना बॉस मानने को तैयार नहीं थे और कैप्टन भी सिद्धू को अपनी टीम का हिस्सा बनाने को तैयार नहीं थे.

कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने तो आलाकमान को पंजाब के मामले से दूर रहने तक की सलाह दे डाली क्योंकि चुनाव सर पर आ चुका है लेकिन चुनाव को बचाने की खातिर ही आलाकमान भी मसले का हर हल में हल चाहता था. अमरिंदर अड़े थे कि सिद्धू उनसे माफी मांगें मगर सिद्धू अमरिंदर को नहीं राहुल गांधी को अपना कैप्टन मानते हैं.

अंतत: सोनिया गांधी ने सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का फैसला किया. कैप्टन को सरकार चलाने के लिए फ्री छोड़ दिया और सिद्धू को संगठन की ज़िम्मेदारी दे दी. सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने से पहले सोनिया गांधी ने पंजाब के सभी कांग्रेस सांसदों को फोन किया. कई सांसदों ने कहा कि किसी वरिष्ठ नेता को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए मगर सोनिया ने कहा कि फिलहाल चुनाव करीब है और उन्हें आपस में कोई विवाद नहीं चाहिए है.

नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष बनाये जाने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस सांसदों और विधायकों को 21 जुलाई को लंच का आमंत्रण भेजा मगर यह आमंत्रण सिद्धू को नहीं भेजा गया. सिद्धू को न बुलाकर कैप्टन ने यह सन्देश देने की कोशिश की है कि मैं सिद्धू को पार्टी का मुखिया भी नहीं मानता हूँ.

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कैप्टन की लंच पार्टी में अभी दो दिन बाकी हैं. इन दो दिनों में अगर कैप्टन के तेवर नहीं बदलते हैं तो पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में हालात बहुत अच्छे होने की उम्मीद नहीं है. सरकार और संगठन के बीच तालमेल का अभाव रहा तो कार्यकर्ताओं को संभालना ही मुश्किल हो जायेगा, मतदाताओं को संभालना तो बहुत दूर की बात है.

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