Tuesday - 8 July 2025 - 1:42 PM

“अमीर और अमीर, गरीब और गरीब होता जा रहा है” — गडकरी के बयान से उठे सवाल

जुबिली न्यूज डेस्क 

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश की आर्थिक असमानता पर खुलकर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा:“देश में गरीबों की संख्या बढ़ रही है और सारा धन कुछ अमीर लोगों के हाथों में जा रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए।”

गडकरी का यह बयान देश की आर्थिक सच्चाई को आईना दिखाता है — और एक तरह से सरकारी दावों के विपरीत हकीकत की तस्वीर पेश करता है। उनके इस बयान से साफ है कि देश में अमीर-गरीब के बीच की खाई दिनोंदिन गहरी होती जा रही है।

देश में गहराती आर्थिक असमानता

गडकरी का बयान उस समय आया है जब कई रिपोर्ट्स और आंकड़े आर्थिक विषमता के खतरनाक स्तर को उजागर कर चुके हैं:

1% अमीर लोगों के पास देश की 40% से अधिक संपत्ति है

देश की 50% आबादी सिर्फ 3% संपत्ति पर निर्भर है

100 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रहे हैं

यह स्थिति केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि देश की सामाजिक संरचना को अंदर से खोखला कर रही है।

गरीबों की हालत बद से बदतर

देश के निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग पर बढ़ती महंगाई, घटते रोजगार अवसर, और निजीकरण के दबाव ने भारी असर डाला है। दूसरी ओर, बड़े कॉर्पोरेट समूहों को टैक्स में छूट, सरकारी संसाधनों तक पहुंच और नीति में प्राथमिकता मिल रही है।

सरकार बार-बार “5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था” का सपना दिखाती है, लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि आम नागरिक की जेब में रोज़ाना का खर्च चलाना तक मुश्किल होता जा रहा है।

क्या मोदी सरकार सिर्फ अमीरों की सरकार बनती जा रही है?

गडकरी के बयान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर भी सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि:“मोदी सरकार का पूरा ध्यान धन concentrating करने पर है — यानी अमीरों को और अमीर बनाना और गरीबों को आत्मनिर्भर बोलकर संघर्ष में छोड़ देना।”

अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों की संपत्ति जिस रफ्तार से बढ़ रही है, वही रफ्तार देश के गरीबों की आर्थिक बदहाली को भी दर्शाती है।

क्या कहता है विपक्ष?

विपक्षी दलों ने गडकरी के बयान को मोदी सरकार की नीतिगत असफलता की स्वीकारोक्ति बताया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी ने कहा कि अब सरकार के ही मंत्री उस सच्चाई को स्वीकार कर रहे हैं जिसे जनता सालों से झेल रही है।

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नितिन गडकरी का यह बयान देश के वास्तविक आर्थिक संकट की ओर इशारा करता है। यह न सिर्फ आंकड़ों की चिंता है, बल्कि एक नीति-संशोधन की जरूरत का संकेत भी है।सवाल यह है कि क्या सरकार अमीरों की नहीं, आम लोगों की सरकार बनने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी?

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