Tuesday - 9 January 2024 - 5:51 PM

बंद किए गए उपकरों से भी सरकार ने भरी अपनी तिजोरी

जुबिली न्यूज डेस्क 

करीब दो दशक से केंद्रीय महालेखा एवं परीक्षक नियंत्रक (कैग ) की रिपोर्ट यह बात दोहराती रही है कि उपकरों का इस्तेमाल तय की गई जगह पर ही किया जाना चाहिए। बावजूद इसके सरकार उपकर की रकम का बहुत थोड़ा सा हिस्सा ही तयशुदा योजनाओं में खपाती है। एक बार फिर कैग ने अपनी रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय को इन उपकरों को इनके मकसद वाली योजनाओं के ठिकाने पर ही भेजने की सिफारिश की है।

केंद्रीय महालेखा एवं परीक्षक नियंत्रक  ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में 35 अलग-अलग तरीके के उपकरों (सेस), लेवी और शुल्क से कुल 2,74,592 करोड़ रुपये वसूले, लेकिन सरकार ने इस राशि का तय की गई जगह पर इस्तेमाल नहीं किया।

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कैग रिपोर्ट के अनुसार सरकार द्वारा वसूले गए 2,74,592 करोड़ उपकर में 35 फीसदी यानी 95,028 करोड़ रुपए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के हर्जाने का है तो 22 फीसदी यानी 59,580 करोड़ रुपए हाई स्पीड डीजल तेल और मोटर स्प्रिट में अतिरिक्त उत्पाद शुल्क है।

इसके अलावा 51,273 करोड़ रुपए यानी 19 फीसदी सड़क एवं संरचना उपकर है। साथ ही 41,177 करोड़ यानी 15 फीसदी स्वास्थ्य एवं शिक्षा का उपकर भी शामिल है, जबकि सरकार ने इसमें से 1,64,322 करोड़ रुपये ही खास मकसद के उपयोग वाले रिजर्व फंड में डाले गए और शेष राशि भारत की संचित निधि में ही रह गए।

क्या है उपकर?

कर के ऊपर लगने वाले कर को ही उपकर कहते हैं। इन्हें सरकार इसलिए वसूलती है ताकि इसका इस्तेमाल लोगों की भलाई, कल्याण या उन्नति से जुड़ी योजनाओं को बेहतर और मजबूत बनाने में किया जा सके।

इसलिए उपकर के पैसे को योजना से जुड़े खास मकसद वाले रिजर्व फंड में संसद की अनुमति से डाला जाता है, ताकि संबंधित मंत्रालय, विभाग रिजर्व फंड का इस्तेमाल आसानी से कर सके।

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17 उपकरों को खत्म करने के बाद भी सरकार ने कई उपकरों को वसूला

कैग की रिपोर्ट में एक हैरान करने वाला खुलासा हुआ है। सरकार ने 17 उपकरों की पहचान खत्म करके उन्हें 1 जुलाई, 2017 को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में शामिल कर दिया। हैरान करने वाली बात यह है कि खत्म उपकरों में से कई उपकर सरकार ने आगे के वित्तीय वर्ष (2018-19) में वसूला है।

इनमें किसान कल्याण कोष, स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छता अभियान जैसे कुल 9 उपकर शामिल हैं। इनको भी संचित निधि में ही रखा गया और रिजर्व फंड में नहीं डाला गया।

1 जुलाई, 2017 को जीएसटी में शामिल किए जाने वाले कई उपकरों में कुल 9 ऐसे उपकर थे, जिन्हें 2018-19 में भी वसूला गया और जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया। यानी इन्हें संचित निधि में रहने दिया गया।

संचित निधि से रिजर्व खाते में उपकर के पैसे को ट्रांसफर न करने को लेकर कैग ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि इससे न सिर्फ राजस्व घाटे का, बल्कि यह भान भी होता है कि वित्त मंत्रालय खास मकसद वाले जरूरी रिजर्व फंड को संचालित करने में विफल है।

अव्वल तो उपकर को समाप्त किए जाने के बाद इसे जीएसटी से अलग वसूला नहीं जाना चाहिए था। वहीं, दूसरा यह कि यदि पीछे का हिसाब भी देखें तो इन उपकरों को सही ठिकाने पर नहीं पहुंचाया जाता, जिसे हम उदासीन रहने वाले रिजर्व खातों पर कैग की टिप्पणी से समझ सकते हैं।

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सिंतबर,2020 में जारी कैग की रिपोर्ट के मुताबिक योजना के तहत वसूले गए उपकर और लेवी को सबसे पहले तय रिजर्व फंड में डालना चाहिए ताकि उसका इस्तेमाल संसद द्वारा विशिष्ट मकसद के लिए किया जाए। इसके बावजूद इसके करीब 2.75 लाख करोड़ में से 1,64,322 करोड़ रुपये ही रिजर्व फंड में डाले गए।

कैग ने यह भी कहा है कि रिजर्व फंड की उदासीनता यह यकीन करने में कठिनाई पैदा करती है कि सेस यानी उपकर और लेवी का इस्तेमाल उसी विशिष्ट काम के लिए किया गया जो कि संसद द्वारा निर्धारित की गई है।

तिजोरी से संसद की इजाजत के बिना निकला पैसा

भारत की संचित निधि (सीएफआई) सरकार के समस्त आय-व्यय की पूंजी वाली तिजोरी है। इस तिजोरी से बिना संसद की अनुमति के एक पैसा भी नहीं निकाला जा सकता, मगर ऐसा हो नहीं रहा है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 114 की उप धारा 3 में यह प्रावधान वर्णित है। बावजूद इसके प्रावधान के विपरीत और संसद की इजाजत के बिना 2018-19 में सेंट्रल बोर्ड आफ डायरेक्ट टैक्सेस ने 20,566.33 करोड़ रुपए की निकासी की।  (कैग रिपोर्ट, पैरा 3.14)

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