Thursday - 11 January 2024 - 5:26 PM

टूट कर चूर- चूर हो जाएगी दुश्मनों की गोली, ऐसा होगा सामान

जुबिली पोस्ट ब्यूरो

लखनऊ। देश के जवानों को दुश्मनों की गोलियों से बचाने के लिए ऐसे मैटीरियल पर काम शुरू कर दिया गया है। जिसे बुलेट प्रूफ जैकेट में लगाने के बाद स्टील, स्टेनलेस स्टील के अलावा एके- 47, 56 जैसी राइफलों की गोलियां टकराकर टूट जाएगी। इसके प्रोटोटाइप अगले एक से दो साल में बन जाएंगे। इसकी जिम्मेदारी डीएमएसआरडीई कानपुर को दी गई है।

रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (डीएमएसआरडीई) कानपुर में हैदराबाद स्थित टीआर अंतत रमन एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन (टीआरएईआरएफ) के सहयोग से पहली बार आयोजित चार दिवसीय राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में ये बातें सामने आयी।

आखिरी दिन मैटीरियल्स आरएंडडी, एसएंडटी एंड प्रोग्राम पर वैज्ञानिकों ने विचार रखे। मैकेनिज्म ऑफ फेल्योर लेयर्ड मैटीरियल्य पर कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर पी वेंकट नारायन ने विचार रखे।

उन्होेंने प्रजेंटेशन देकर बताया कि टाइटेनियम, टाइटेनियम बोराइड मटेरियल इतना शक्तिशाली होता है कि यदि इसकी कोटिंग बुलेट प्रूफ जैकेटों में कर दी जाए तो इससे लगने वाली गोली टूट जाएगी। इस तरह की तकनीक देश में ईजाद कर ली गई है।

इसका उपयोग न केवल बुलेट प्रूफ जैकेट बल्कि एयरो स्पेस में किया जा सकेगा। बताया कि अभी बोरान कार्बाइड, सेरैमिक आदि मटेरियल का उपयोग बुलेट प्रूफ जैकेटों में किया जा रहा है।

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अनीस उपाध्याय ने बताया कि अधिक तापमान पर कई मैटीरियल बनाए जाने पर उनमें कई प्रकार की तकनीक त्रुटि रहती है। जो उस मटेरियल की प्रकृति पर निर्भर करता है। अब ऐसी तकनीक आ गई है कि मटेरियल के पाउडर को किसी अन्य मेटल के साथ मिलाकर उस तकनीकी समस्या को दूर किया जा सकता है।

कपड़े धुलने की नहीं होगी जरूरत 

डीएमएसआरडीई के एडिशनल डायरेक्टर डा. एसबी यादव ने बताया कि कपड़ों पर सिल्वर के नैनो पार्टिकल्स का उपयोग करके कपड़ों से निकलने वाली पसीने आदि की दुर्गंध को खत्म किया जा सकता है।

इसके अलावा ऐसा कपड़ा तैयार किया जा रहा है। जिसे धोने के लिए पानी की आवश्यकता नहीं होगी। इस तरह के कपड़े अभी अमेरिका में तैयार हो रहे हैं। देश में इस तरह के कपड़े बनने के बाद पानी आदि की कमी वाली क्षेत्रों में जवानों को आसानी होगी।

संयोजन बढ़ाने पर करना होगा फोकस

आईआईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रोफेसर श्रीकांत लेले ने बताया कि शोध की दिशा में पिछले वर्षों में कमी के कारण देश को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा। जो तकनीक हम पहले हासिल कर सकते थे। उसे पाने में अधिक समय लग गया।

हालांकि मौजूदा समय में शोध और तकनीक पर बेहतर काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि डिफेंस लैब आदि में और संयोजन बढ़ाने की जरूरत है। तकनीक शिक्षण संस्थानों से इन्हें और जोड़ा जाना चाहिए। जिसका लाभ तेजी से रक्षा क्षेत्र में देखने को मिल सके गा।

नैनो पार्टिकल्स से बनेगी ग्रीस

नैनो मैटीरियल्स एंड प्रोडक्ट फॉर इंडियन डिफेंस परूसेंट डीएमएसआरडीई कंट्रीब्यूशन विषय पर संस्थान के डॉ. देबमाल्या रॉय ने प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया कि ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक क्षेत्र में इस्तेमाल में आने वाले लुब्रीकेंट या ग्रीस को नैनो पार्टिकल्स से और बेहतर बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से इस क्षेत्र में इस्तेमाल में आने वाली वस्तुओं की लाइफ को बढ़ाया जा सकता है।

400 वैज्ञानिक, छात्र जुटे

राष्ट्रीय कान्फ्रेंस मेें 400 वैज्ञानिक और छात्र जुटे। दो सौ से ज्यादा वैज्ञानिक देश के अन्य हिस्सों से आए। इस दौरान तमाम ने अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए। 100 प्रकार के नए मटेरियल का रोड मैप खींचा गया। जो देश की रक्षा और प्रतिरक्षा की भविष्य की जरूरतों के अनुसार है।

पाउडर बम से चकमा खा जाएंगे रडार

लड़ाकू विमानों को रडार से बचाने की तकनीक भी देश में विकसित की जा रही है। लाइट स्टिफ चेफ फॉर डिफेंस एप्लीकेशन पर आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर रामपदा मन्ना ने बताया कि अभी इस तरह की तकनीक वाले पाउडर बम आयात किए जा रहे हैं।

इन बमों की सहायता से रडार पर आने की संभावना से पहले ही इसे फोड़ दिया जाता है। इससे निकलने वाले पार्टिकल्स पर रडार का ध्यान केंद्रित हो जाता है। इतनी देर में विमान दुश्मन का खात्मा कर देता है।

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