Sunday - 3 March 2024 - 4:51 PM

सुक्खू सरकार: बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी?

हिमाचल प्रदेश का खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। सुक्खू सरकार को कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के सूझबूझ से मात्र तीन माह तक का जीवन दान भर मिला है।

कहना न होगा कि 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 40 सदस्यों के होने के बावजूद वहां से कांग्रेस के बेहद शालीन प्रवक्ता व तेज तर्रार वकील अभिषेक मनु सिंघवी को राज्य सभा के चुनाव में हार जाना पड़ा।

कांग्रेस के लिए यह छोटी हार नहीं है। राज्य सभा चुनाव में हारने के बाद सुक्खू सरकार की हालत ऐसी हो गई कि उसे सरकार बचाने के संकट से गुजरना पड़ा। फिलहाल किसी तरह सरकार बच गई, लेकिन हालात “बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी” जैसे ही हैं।


हिमाचल प्रदेश में राज्य सभा चुनाव के लिए नामांकन के बाद ही अभिषेक मनु सिंघवी के बाहरी होने की हवा कांग्रेसियों ने ही बनानी शुरू कर दी थी। इसे सबसे ज्यादा हवा सांसद आनंद शर्मा ने दी।

आनंद शर्मा कांग्रेस के असंतुष्ट सांसदों में सुमार हैं। इन्हीं महानुभाव ने अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ हवा भरी थी। ठीक है आनंद शर्मा की कोई शिकायत रही होगी लेकिन इसे रोकने य फिर मनाने की कोशिश कहां हुई। हैरत तो यह है कि जब एक मात्र सीट के लिए कांग्रेस के पास बहुमत होते हुए भी भाजपा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया तब मुख्यमंत्री और हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी क्या कर रहे थे?


इस मायने में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बारे में कुछ भी कहें लेकिन यह सच है कि उनके जैसा ही था जो कांग्रेस के तीन के तीनों बाहरी उम्मीदवारों को राज्य सभा में भेजने में कामयाब हुए थे, जिसमें एक जनाब राजीव शुक्ला भी हैं जो इस वक्त हिमाचल प्रदेश के प्रभारी बनें बैठे हैं।

कांग्रेस आलाकमान द्वारा पता नहीं इनसे पूछा भी जाएगा या नहीं कि राज्य सभा के लिए जब मतदान हो रहा था तब वे हिमाचल में क्यों नहीं थे? यह छिपा नहीं है कि राजीव शुक्ला के वाया बीसीसीआई हिमाचल के भाजपा नेताओं से “संबंध” मधुर हैं। हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला क्यों इस ओर से आंख बंद किए हुए थे,यह एक अलग किस्म का रहस्य है।
हिमाचल प्रदेश भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रदेश है।

उनके राज्य में कांग्रेस का सरकार बनना उन्हें कत्तई रास नहीं आया क्योंकि उनके अध्यक्ष रहते ही कांग्रेस भाजपा को हराकर सत्ता में आई थी। भाजपा की फितरत है कि वह अपनी अनुपस्थिति वाले प्रदेशों में भी सरकार बनाने का षणयंत्र रचती है, ऐसे में हिमाचल प्रदेश कैसे अछूता रह जाता। सो वहां कांग्रेस की सरकार सत्ता रूढ़ होते ही कहीं न कहीं भाजपा की निगाह हिमाचल पर गड़ी हुई थी। उसके लिए राज्य सभा का चुनाव एक सुनहरा अवसर था।

इन विधायकों को तोड़ने में भाजपा को इसलिए भी मुश्किल नहीं हुई क्योंकि उसने पूर्व कांग्रेसी हर्ष को अपना उम्मीदवार बना दिया। तीन निर्दलीयों ने भी भाजपा के पक्ष में ही मतदाता किया।

40 वोटों के सापेक्ष कांग्रेस उम्मीदवार को 34 वोट मिले और 25 वोट के सापेक्ष भाजपा उम्मीदवार को भी 34 वोट मिले। लाटरी सिस्टम से भाजपा प्रत्याशी को जीत हासिल हुई और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा लेकिन कांग्रेस के 40 सदस्यों में हुई फूट कांग्रेस को भारी सबक है और उसके उन सिपहसालारों की असलियत भी जिस पर वह आंख बंद कर भरोसा किए हुए।


बहरहाल सुनिश्चित राज्यसभा की सीट गंवाकर कांग्रेस के बागी 6 विधायकों को निष्कासित कर सुक्खू की सरकार तो बच गई लेकिन उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के परिवार के कोप से बचना अभी बाकी है।

वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य ने सुक्खू सरकार के संकट के समय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे कर सरकार को और संकट में डालने का काम किया था।

कांग्रेस के प्रति विक्रमादित्य की निष्ठा का आलम यह है कि अयोध्या में श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा के आमंत्रण से ही वे इस हद तक गदगद थे कि उन्होंने आर एस एस और भाजपा को ढेरों आभार प्रकट कर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया,यह जानते हुए भी कि राहुल गांधी आर एस एस और भाजपा के खिलाफ ही सड़क पर उतरे हुए हैं।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com