Sunday - 7 January 2024 - 12:48 PM

नतीजे जो भी हों मगर अमेरिकी चुनावों के इन संकेतों को समझिए

डॉ.  उत्कर्ष सिन्हा

एक अमेरिकी विश्लेषक ने चुनावी नतीजों के रुझान आने के बाद कहा – “ ऐसा लगता है कि अमेरिका ने अपने पॉकेट को आगे रखा और नैतिकता की बातों को खूंटी पर टांग दिया है।    

लंबे समय बाद ऐसा हो रहा है कि अमेरिका का नया राष्ट्रपति कौन होगा इसे ले कर असमंजस बना हुआ है । मामला कोर्ट कचहरी तक पहुँच रहा है और सोशल मीडिया से ले कर अमेरिका के राष्ट्रपति निवास व्हाईट हाउस तक एक अफरातफरी मची है। नतीजों पर दुनिया की निगाहें लगी हैं और अमेरिकी अपने भविष्य  को लेकर अभी भी फिक्रमंद हैं।

ये सब हो भी क्यों न ? सवाल आखिर दुनिया की सबसे ताकतवर कही जाने वाली कुर्सी का है।

कुछ हफ्ते पहले तक राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर एकमत से दिख रहे थे कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की लोकप्रियता घट रही है और उनके प्रतिद्वंदी जो बाईडेन के लिए कुर्सी पर बैठना अब महज वक्ती बात होगी। लोकप्रियता के पैमाने पर बाईडेन करीब 8 अंक आगे थे और चुनाव प्रचार के लिए मिले चंदों के मामले में भी उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प को काफी पीछे छोड़ दिया था।

क्या वाकई ट्रम्प से नाराज था अमेरिका ?

ब्लैक लाईफ मैटर्स जैसे आंदोलन और कोविड 19 के प्रकोप ने ट्रम्प की मुश्किल और भी बढ़ा दी थी। खासकर कोविड से लड़ने की ट्रम्प की नीतियों की खूब आलोचना हुई और जों बाईडेन ने इसे चुनावी मुद्दा बनने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। “मास्क” अचानक ही अमेरिकी चुनावों में बहुत महत्वपूर्ण हो गया। बाईडेन मास्क को प्रतीक बनाए हुए थे और ट्रम्प चीन के खिलाफ आक्रामकता को अपना अस्त्र।

नस्लवादी सोच, प्रवासी विरोधी नियम और सामाजिक सुरक्षा की नीतियों को ले कर डोनाल्ड ट्रम्प की खूब आलोचना हो रही थी। खास कर बुजुर्ग अमेरिकन्स इसे अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ जाता हुआ देश बताने लगे थे। सार्वजनिक जगहों पर फौज यानि नेशनल गार्ड्स की मौजूदगी अमेरिकन्स को पसंद नहीं आ रही थी और वे अमेरिका के मूल्यों को बचाने की दुहाई देते नहीं थक रहे थे।

लेकिन चुनावों के नतीजे जब आने शुरू हो गए तो ये सारी चिंताएं मतपेटी में नहीं दिखी। ट्रम्प हारें या जीते ये तो तय हो गया कि ट्रम्प की नीतियों और रवैये को समर्थन देने वाले अमेरिकन्स की तादात उनके आलोचकों से कम नहीं है।

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यानि ये कहने में कोई शंका नहीं है कि करीब करीब आधा अमेरिका नस्लीय भेदभाव को मानने लगा है, वो प्रवासियों को अपने अवसरों के बीच रोड़ा मानता है और उसे गरीबों से ज्यादा फिक्र खुद की कमाई को बढ़ाने की है।

अमेरिका के 50 राज्यों में से इक्का- दुक्का राज्य ही ऐसे हैं जहां ट्रम्प और बाईडेन के बीच वोटों का फासला ज्यादा रहा है। तकरीबन हर जगह टक्कर कांटे की रही।

सौजन्य से – फ़ॅक्स न्यूज

अशान्ति की आशंका से बेचैन है अमेरिका

नतीजे आने से पहले अफरातफरी मची हुई है । व्हाईट हाउस के बाहर आंदोलनकारियों की भारी भीड़ है और व्हाईट हाउस के बाहर लकड़ी की एक दीवार खड़ी कर दी गई है। ऐसी ही दीवारे कई शहरों के दुकानदारों ने अपने दुकानों के बाहर भी लगा दी है । जाहिर सी बात है कि वे किसी भी संभावित दंगे की स्थिति से निपटने की तैयारी में हैं।

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इस आशंका को बल इस वजह से भी मिल रहा है क्योंकि बीते 6 महीनों में अमेरिकन्स ने हथियारों की भारी खरीद  की है, उन्हे डर है कि नतीजे आने के बाद अमेरिका में सब कुछ बहुत शांत नहीं रहने वाला।

अमेरिकी मीडिया का एक बड़ा हिस्सा ट्रम्प के खिलाफ है । कई बार तो ट्रम्प खुद ही अमेरिकी मीडिया को अपना दुश्मन बताते रहे और जब शुरुआती नतीजे आने लगे तो ट्विटर पर ट्रम्प समर्थकों ने इसे अमेरिकी मीडिया के खिलाफ ट्रम्प की जीत बताना शुरू कर दिया।

सीनेट के लिए हुए चुनावों में ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी को जिस तरह से जनता का भारी समर्थन मिला है वह भी अनुमानों के विपरीत है।

साईबर दुनिया में हुआ खुला खेल

इन चुनावों में एक बार फिर इंटरनेट का खेल जबरदस्त तरीके से देखने को मिला। बीते चुनावों में अपनी भूमिका के लिए बदनाम हुए फ़ेसबुक और ट्विटर ने खुद को संयमित रखने की कोशिश दिखाई तो जरूर लेकिन वे फेक न्यूज और घृणा फैलाने वाले संदेशों को रोकने में ज्यादा कामयाब नहीं हो सके।

नतीजे दिखने के लिए फर्जी वेब सायइट्स का निर्माण किया गया जिससे मतदान के वक्त तक जीत और हार का  भ्रम बना रहे। और ये कुछ हद तक असरकारी भी रहीं। जिस वक्त कुछ राज्यों में मतदान हो रहे थे उस वक्त ऐसी वेब साईटस दूसरे राज्यों में ट्रम्प को जीता हुआ बता रही थी।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि फ्रांस और आस्ट्रिया में हुए कट्टरपंथियों के हमलों का असर भी अमेरिकी चुनावों पर डालने की कोशिश हुई। 9/11 के हमलों के बाद से ही इस्लामिक आतंकवाद अमेरिका में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।

करीबन 6 महीने पहले अमेरिका पोस्टल सर्विस के डायरेक्टर ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि ट्रम्प प्रशासन उसपर राजनीतिक काम करने का दबाव बना रहा था । ये मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस बार अमेरिका में करीब 10 करोड़ वोट पोस्टल बैलेट से डाले गए जिन्हे सुरक्षित पहुंचाना पोस्टल डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी है।

इसी तरह मतदान के एक हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट में 3 जजों की नियुक्ति को भी राजनीतिक दृष्टि से देखा गया क्योंकि इसके थी पहले ट्रम्प ने कहा था कि चुनावों में धांधली के खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।  

कुल मिला कर इन चुनावों में हर तरह के तत्व शामिल रहे । बाईडेन समर्थकों ने कई जगह ऐसी शिकायत भी कि है कि उनके कैम्पेन कॉनवाये को ट्रम्प समर्थकों के ने घेर लिया था और वे अपना अभियान नहीं पूरा कर पाए।

ये सब कुछ अमेरिका के चुनावों में नया है । हालांकि बीते चुनावों में भी इंटरनेट के दुरुपयोग की कुछ शिकायतें आई थी लेकिन सरकारी व्यवस्था में हस्तक्षेप और संघर्षों की आशंका इस बार नए तत्व हैं जों इस महान लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ जाते हैं।

तो क्या ये मान लेने में अब भी कोई शक है कि अमेरिका का पूंजीवाद अब घोर दक्षिणपंथ की तरफ बढ़ चुका है ? 

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