Friday - 12 January 2024 - 2:57 AM

‘सरकार खत्म करना चाहती है आरटीआई कानून’

न्यूज डेस्क

2005 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जब आरटीआई कानून अस्तित्व में आया था तो उस समय बहुत कम लोगों को इसकी महत्ता पता थी। लेकिन समय के साथ आरटीआई कानून लोगों का हथियार बन गया। इस कानून के माध्यम से ऐसे-ऐसे खुलासे हुए जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। फिलहाल यह कानून चर्चा में है।

लोकसभा में सोमवार को सूचना का अधिकार कानून संशोधन विधेयक पारित हुआ। इस विधेयक के पारित होने के बाद से विपक्षी दल के निशाने पर मोदी सरकार है। विपक्षी दलों ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है।

इसी कड़ी में मंगलवार को कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से आरटीआई कानून को खत्म करना चाहती है जिससे देश का हर नागरिक कमजोर होगा।

सोनिया ने अपने बयान में कहा कि, ‘यह बहुत चिंता का विषय है कि केंद्र सरकार ऐतिहासिक सूचना का अधिकार कानून-2005 को पूरी तरह से खत्म करने पर उतारू है।’  उन्होंने कहा, ‘इस कानून को व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाया गया और संसद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया। अब यह खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है।’

60 लाख से अधिक नागरिकों ने किया आरटीआई का उपयोग

यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने कहा कि लगभग 60 लाख से अधिक नागरिकों ने आरटीआई का उपयोग किया और प्रशासन में सभी स्तरों पर पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने में मदद की। इससे हमारे लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत हुई। आरटीआई से कमजोर तबके को फायदा हुआ है।

सोनिया ने दावा किया, ‘यह स्पष्ट है कि मौजूदा सरकार आटीआई को बकवास मानती है और उस केंद्रीय सूचना आयोग के दर्जे एवं स्वतंत्रता को खत्म करना चाहती है जिसे केंद्रीय निर्वाचन आयोग एवं केंद्रीय सतर्कता आयोग के बराबर रखा गया था।’ 

उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार अपने मकसद को हासिल करने के लिए भले ही विधायी बहुमत का इस्तेमाल कर ले, लेकिन इस प्रक्रिया से देश के हर नागरिक कमजोर होगा।’

मालूम हो कि लोकसभा ने सोमवार को विपक्ष के कड़े विरोध के बीच सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी प्रदान कर दी।

ये नेता भी कर चुके हैं विरोध

आरटीआई कानून में संशोधन के प्रयासों की सामाजिक कार्यकर्ता आलोचना कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि इससे देश में यह पारदर्शिता पैनल कमजोर होगा।

सोमवार को विधेयक को पेश किये जाने का विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि मसौदा विधेयक केंद्रीय सूचना आयोग की स्वतंत्रता को खतरा पैदा करता है।

कांग्रेस के ही शशि थरूर ने कहा कि यह विधेयक वास्तव में आरटीआई को समाप्त करने वाला विधेयक है जो इस संस्थान की दो महत्वपूर्ण शक्तियों को खत्म करने वाला है। एआईएमआईएम के असादुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक संविधान और संसद को कमतर करने वाला है।

वहीं केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में आरटीआई आवेदन कार्यालय समय में ही दाखिल किया जा सकता था। लेकिन अब आरटीआई कभी भी और कहीं से भी दायर किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सीआईसी के चयन के विषय पर आगे बढ़कर काम किया है। सोलहवीं लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं था। ऐसे में सरकार ने संशोधन करके इसमें सबसे बड़ी पार्टी के नेता को जोड़ा जो चयन समिति में शामिल किया गया।

सूचना के अधिकार की क्या हैं मूल बातें

  • सरकारी रिकॉर्ड देखने का मौलिक अधिकार
  • 30 दिन के अंदर देना होता है जवाब
  • देरी पर 250 रुपये प्रति दिन जुर्माना
  • 2005 में यूपीए सरकार के दौरान बना कानून
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