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थरथराती आवाज का वो सुरीला जादूगर

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव

लखनऊ की मुकद्दस सरजमीं ने बॉलीवुड को अनेक मशहूर व मारूफ फनकार दिये हैं। उनकी कला के जलवे मौसिकी, अदाकारी, फिल्म निर्देशन , नगमानिगारी, कहानी लेखन व स्क्रिप्ट राइटरिंग में सर्वविदित हैं।  लखनऊ पैदा हुए फनकारों की पहली कड़ी में प्रस्तुत हैं गजल सम्राट तलत महमूद साहब।         

तलत महमूद साहब ने एक बार कहा था कि उनकी आवाज थरथराती थी। वह बहुत डरते-डरते आकाशवाणी लखनऊ में गजल गाने गये। लेकिन उनकी आवाज में एक नयापन था। वह 16 साल की उम्र में आकाशवाणी लखनऊ में गाने लगे। वे मशहूर शायर मीर, दाग व जिगर की गजलों को ही गाते। 40 के दशक की बात है एचएमवी वाले नयी आवाज ढूंढ रहे थे। वे उन्हें ढूंढते हुए उनके घर पहुंचे। उन्हें तलतजी की आवाज पसंद आयी। एक गजल उनसे गवायी गयी जिसका उन्हें 6 रुपये मिले। फिर अगले साल 1941 में चार गाने का दूसरा रिकार्ड ‘सब दिन एक समान नहीं था” रिलीज हुआ, तो वे छा गये। अब उनकी मंजिल फिल्मी दुनिया थी।

पुराने ख्यालात वाली मुस्लिम फैमिली जहां फिल्म को अच्छा नहीं समझा जाता था, जब संगीत की समझ रखने वाले वालिद मंसूर महमूद साहब को पता चला तो उन्होंने साफ साफ कह दिया कि अगर तुम फिल्मी गवैया बनना चाहते हो तो तुम्हारी इस घर में कोई जगह नहीं है। उन्होंने घर छोड़ दिया। वे बम्बई (अबकी मुम्बई) पहुंच गये। किस्मत चमकते देर न लगी।

24 फरवरी 1924 में लखनऊ में जन्में तलत महमूद तीन बहन व दो भाइयों के बाद वे छठी सन्तान थे। तलतजी को गायिकी से बेहद लगाव था। 1930 में उन्होंने वालिद से बिना बताये मौरिस म्यूजिक कालेज (वर्तमान में भातखंडे संगीत महाविद्यालय) में दाखिला ले लिया। पंडित एस.सी.आर. भट्ट उनके गुरु थे।

1944 में उनका गीत ‘तस्वीर तेरी मेरा दिल न बहला सकेगी” जबर्दस्त हिट हुआ। इसके दस हजार रिकार्ड बिक गये। उनके गाये गीत व गजलें धड़ाधड़ हिट हो रही थीं। वे स्टार सिंगर बन गये थे। उनकी शोहरत से मुतासिर होकर उनके वालिद ने उन्हें माफ कर गले से लगा लिया। उस दौर के सभी  स्थापित नायकों के लिए उन्होंने अपनी आवाज उधार दी। गजल गायिकी में उनका कोई जोड़ नहीं था। वे हल्की गजलें नहीं गाते थे। शायर इस बात से तनाव में रहते कि कहीं उनकी गजल को तलतजी रिजेक्ट न कर दें। तलतजी मानते थे कि गजल एक मुकद्दस चीज है। उसमें हल्कापन या गंदगी नहीं आनी चाहिए। उन्हें गजल सम्राट कहा जाने लगा। उन्होंने कुल 12 भाषाओं में 800 गीत व गजल गाये।...

तलत महमूद साहब अच्छी शक्लो सूरत के मालिक थे। उस दौर में जो भी गा लेता था उसको हीरो बनने का सर्टिफिकेट मिल जाता था। उन्हें कलकत्ता फिल्म इंडस्ट्री से फिल्मों का आफर मिला। उन्होंने पर्दे पर अभिनय कर, किस्मत आजमाने का मन बनाया। फिल्म ‘लक्ष्मी”, ‘तुम और  मैं”, ‘सम्पत्ति” आदि फिल्मों में अभिनयʻ किया। क्षेत्रिय फिल्में होने के नाते इससे उन्हें कोई खास तवज्जोह नहीं मिली। उन्होंने छ्द्म नाम तपन कुमार रख, बांगला भाषा में कई गीत गाये। ये वह वक्त था जब पंजाब से आया एक नया गायक तेजी से अपनी पकड़ बना रहा था, वे थे जनाब मोहम्मद रफी साहब। वे इस बात को लेकर चिन्तित थे कि क्या करें! कहां जाएं? यह वह समय जब तलतजी को लगा कि वे अभिनय और  गायन दोनों जगह कोई खास जगह नहीं बना पा रहे हैं तो 1949 में बम्बई वापस आ गये। फिर 1951 में उन्होंने बंगाली फिल्म स्टार लतिका मलिक से शादी कर ली। वे सबसे कम उम्र की हिरोइन थीं और अब वे लतिका से नसरीन बन गयीं। उनके  दो बच्चे हुए खालिद और सबीना।…

जीवन के उतार चढ़ाव को झेलते हुए उन्हें अनिल बिस्वास के निर्देशन में फिल्म ‘आरजू” के लिए गाना ‘ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहां कोई न होे” ऑफर हुआ। इस गीत से उनकी जबर्दस्त वापसी हुई। उन्होंने एक बार फिर गायकी के झण्डे गाड़ दिये। गायन में वापसी के बाद ए. आर. कारदार ने अपनी नयी फिल्म ‘दिल-ए-नादान” के लिए साइन किया। फिल्म की तारिका के लिए कांटेस्ट कराया गया।

सोहराब मोदी ने उन्हें फिल्म ‘वारिस” में चोटी की नायिका सुरैया के साथ नायक बनाया। ‘डाक बाबू” व ‘एक गांव की कहानी” में हीरो का रोल किया। उस दौर की सभी नामचीन हिरोइनों नूतन, माला सिन्हा, सुरैया, नादिरा व श्यामा के साथ उनकी जोड़ी बनी। उन्होंने कुल 13 फिल्में कीं लेकिन तलतजी की फिल्में कोई नाम नहीं कमा पा रही थीं और  फिल्मों में व्यस्त रहने के चलते उनके गायन का ग्राफ भी काफी नीचे आ गया। सिंगर के रूप में वे हाशिये पर चले गये। 1958 में उन्हें इस्मत चुगतई कहानी पर बनने वाली उनके पति सईद लतीफ की फिल्म ‘सोने की चिड़िया” आफर हुई।

इस फिल्म में नर्गिस के जीवन की छाप थी। इसमें नूतन के साथ दो नायक थे एक बलराज साहनी आैर दूसरे थे तलत महमूदजी। निर्माण के दौरान तलतजी को तब बहुत बड़ा झटका लगा जब संगीतकार ओ.पी. नैयर ने जिद पकड़ ली थी कि तलतजी पर फिल्माया जाने वाला गाना ‘प्यार पर बस तो नहीं” नये सिंगर रफी से गवायेंगे। कैमरे के सामने तलतजी तनाव में आ जाते थे। जबकि गीत गाने में वे अपने को काफी कम्फर्ट महसूस करते थे। वे पहले भारतीय सिंगर थे जिन्होंने विदेशों में लाइव संगीत के शोज किये। ईस्ट अफ्रीका, वेस्टइंडीज, अमेरिका, लंदन में दर्शकों से खचाखच भरे हाल में नके म्यूजिक कंसर्ट हुए। ये सिलसिला 1991 तक चला। 1992 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। 1960 के आते-आते गजल का मार्केट बैठने लगा था। वेस्टर्न फास्ट लाउड म्यूजिक डिस्को की इंट्री हो रही थी। तलतजी के दिन एक बार फिर गर्दिश में आ गये।…

संगीतकार नौशाद ने कई बार उनहें रोका फिर भी उन्होंने सिगरेट पीना नहीं छोड़ा। अन्तिम समय में उन्हें लाइलाज पारकिंसन रोग हो गया। डाक्टरों ने कहा कि वे अब कभी नहीं गा सकेंगे। 74 साल की उम्र में हार्ट फेल से 9 मई 1998 को उनका देहान्त हो गया।…

तलत साहब के गाये कुछ यादगार गीत…

*जलते हैं जिसके लिए तेरी आंखों के दिये

*मैं दिल हूं एक अरमान भरा

*जायें तो जायें कहां समझेगा

*इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा

*दिले नादां तुझे हुआ क्या है

*ले चल जहां कोई न हो जहां

*तस्वीर बनाता हूं तस्वीर नहीं बनती

*मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसी का

*जिन्दगी देने वाले सुन तेरी दुनिया से दिल भर गया

*हम से आया न गया तुमसे बुलाया न गया

*तेरी आंख के आंसू पी जाऊं ऐसी मेरी तकदीर कहां

*शामे गम की कसम आज गमगीन हैं हम आ भी जा

*फिर वही शाम वही गम वही तन्हाई है

*मेरी याद में तुम न आंसू बहाना न दिल को जलाना

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