Wednesday - 10 January 2024 - 2:51 AM

कितना मजबूत बन पाएगा बिहार में तीसरा मोर्चा !

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

बिहार में चुनावी डुग-डुगी बज चुकी है। विधानसभा चुनाव की तारीकों के एलान के साथ ही राज्य में आचार संहिता भी लागू हो चुकी है। इसके साथ ही जोड़ तोड़ की सियासत भी शुरू हो गई है।

अभी तक इस बात के संकेत मिल रहे थे कि मुख्‍य मुकाबला नीतीश कुमार के नेतृत्‍व वाली बिहार एनडीए और लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्‍वी यादव के बीच होगा, जो बिहार में महागठबंधन के नेता हैं। वहीं, कुछ इलाके और खास जातियों में असर रखने वाले छोटे दल दो बड़ी गोलबंदी में किसी एक के साथ जुड़ जाएंगे।

हालांकि वोट शेयरिंग को लेकर दोनों गठबंधनों के भीतर विरोध के सुर भी उठने लगे हैं। एनडीए में जदयू और बीजेपी में बड़ा कौन है इस महत्वाकांक्षा ने इस विरोध के सुर का हवा दिया है तो वहीं महागठबंधन में तेजस्‍वी यादव के सीएम कैंडिडेट घोषित करने और सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया है। जिसके बाद बिहार की राजनीति में एक बार फिर तीसरे मोर्च की गोल बंदी शुरू हो गई है।

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चिराग पासवान साथ नीतीश कुमार

राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और महागठबंधन से राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी के मोहभंग से तीसरे मोर्चे की बुनियाद पड़ गई लगती है। एलजेपी, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी अगर इन दोनों दलों से जुड़ती है तो कुछ और छोटे दलों को मिलाकर असरदार तीसरे मोर्चे का निर्माण हो सकता है।

पूर्व वित्‍तमंत्री और पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्‍हा बिहार में थर्ड फ्रंट को अस्‍तिव में लाने की कोशिश काफी दिनों से कर रहे हैं। यशवंत सिन्हा तीन महीने से बिहार का भ्रमण कर रहे हैं। बदलो बिहार अभियान के तहत उनसे कुछ और नेता भी जुड़े हैं। बताया जा रहा है कि इस मोर्चे में एक दर्जन पूर्व सांसदों, विधायकों के जुड़ने की संभावना है। हालांकि उन्‍हें अन्‍य छोटे दलों से ज्‍यादा समर्थन नहीं मिल रहा है।

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Owaisi entry in Bihar raises possibility of third front| बिहार में ओवैसी की एंट्री से 'तीसरे मोर्चे' की संभावना बढ़ी - India TV Hindi News

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आरजेडी से अलग हुए पूर्व सांसद देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) के मिलकर संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन (यूडीएसए) बनाया है। ओवैसी ने देवेंद्र यादव को इस गठबंधन का नेता बनाया है। साथ ही अन्‍य दलों को भी इस दल में आने का आमंत्रण दिया है। वे इसे तीसरा मोर्चा बता रहे हैं।

आपको बता दें कि ओवैसी और सजद (डी) के साथ में बिहार की राजनीति में प्रवेश को भले ही राजनीतिक दल खुले तौर पर परेशानी का सबब नहीं बता रहे हैं, लेकिन यह तय है कि इनके साथ आकर बिहार चुनाव लड़ने की घोषणा से सीमांचल क्षेत्रों में किसी भी पार्टी के लिए लड़ाई आसान नहीं होगी।

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राजनीतिक जानकार बता रहे हैं कि ओवैसी ने देवेंद्र यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर बिहार के यादव और मुस्लिम मतदाताओं में सेंध लगाने की चाल चली है। मुस्लिम और यादव मतदाता राजद के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं।

जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव (फाइल फोटो)

इन सबके बीच पप्पू यादव की जन अधिकारी पार्टी, चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी, बीएमपी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) ने मिलकर नए गठबंधन की नींव रखी है। इस गठबंधन का नाम है प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस यानी पीडीए। पप्पू यादव ने पीडीए में उपेन्द्र कुशवाहा, चिराग पासवान और कांग्रेस को भी न्‍यौता दिया है।

इनके अलावा पूर्व सांसद अरुण कुमार की भी एक पार्टी है- भारतीय सब लोग पार्टी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी बिहार विधानसभा चुनाव में दिलचस्पी दिखा रही है। कुल मिलाकर पांच-छह दल तीसरा मोर्चा के लिए तैयार दिख रहे हैं। यह संख्या बढ़ सकती है। मोर्चा को परिणाम के तौर पर क्या हासिल होगा, यह कहना मुश्किल है। हां, एक बात तय है कि वहां उम्मीदवारों की कमी नहीं होगी।

हालांकि पल-पल बदलते नेताओं के मन-मिजाज और किसी सिद्धांत के प्रति कठोर प्रतिबद्धता की अनुपस्थिति में पक्के तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है कि तीसरा फ्रंट बिहार विधानसभा चुनाव में कितना असर दिखा पाएगा।

बिहार - TV9 Bharatvarsh

तीसरा फ्रंट विधानसभा चुनाव में क्‍या कमाल करेगा। इस बारे में हमने बिहार की राजनीति को अच्‍छे से समझने वाले राजनीतिक विश्‍लेषक कुमार भावेश चंद्र से बात की तो उन्‍होंने बताया कि बिहार में असली लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच होने वाली है। इस बार एनडीए के चेहरे के रूप में नीतीश कुमार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रेजेंट किया जा रहा है।

इसके अलावा उन्‍होंने बताया कि चिराग पासवान की दबाव की राजनीति बीजेपी के इशारे पर की जा रहे है। उनका एनडीए से अलग होने की संभावना न के बराबर है। वहीं राज्य का सियासी और दलित वोट बैंक का गणित ऐसा है कि जिसमें एनडीए के लिए लोजपा से किनारा करना आसान नहीं होगा।

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बिहार में अपने अस्‍तित्‍व की लड़ाई लड़ रही लोजपा के लिए परेशानी यह है कि वह बीजेपी से तो अलग नहीं होना चाहती और जदयू से उसकी बन नहीं रही। बीजेपी से अलग होने का मतलब यह भी होगा कि लोजपा को केंद्रीय नेतृत्व से भी अलग होना पड़ेगा। ऐसे में राज्यसभा में रामविलास पासवान की सीट और उनका मंत्रालय खतरे में पड़ सकता है।

एलजेपी सुप्रीमो चिराग पासवान एवं आरएलएसपी अध्‍यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, फाइल फोटो।

वहीं भीम आर्मी चीफ यूपी में जिस तरह दलित राजनी‍ति करते हैं उसका असर बिहार में नहीं होने वाला है। यशवंत सिन्‍हा ने तीसरे मोर्च का एलान जून में कर दिया था, लेकिन वो अपने साथ किसी बड़े चेहरे को नहीं जोड़ पाए हैं।

चुनावी तारीखों का ऐलान हो गया है। ऐसे में अब राजनीतिक दल अपनी अपनी रणनीति को आखिरी रूप देने में जुटे है। देखना दिलचस्प होगा कि आखिर बिहार की सियासी रंग किस राजनेता के ऊपर चढ़ती है और किसे यहां की जनता अपना नेतृत्वकर्ता चुनती है।

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