जुबिली न्यूज डेस्क
महाराष्ट्र में इन दिनों मराठी भाषा को लेकर माहौल गर्म है। राज्य की राजनीति में एक दुर्लभ दृश्य देखने को मिला जब 20 साल बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर साथ आए — वो भी मराठी भाषा की रक्षा के नाम पर। लेकिन इस एकता के ठीक बाद ही भाषाई हिंसा की घटना सामने आई, जिसने पूरे विमर्श की दिशा ही बदल दी।
क्या है मामला?
ठाणे के भयंदर में मनसे कार्यकर्ताओं ने एक फूड स्टॉल मालिक की सिर्फ इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि उसने मराठी में जवाब नहीं दिया।घटना के वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर नाराजगी फैल गई।
“गुंडागर्दी से मराठी भाषा का सम्मान नहीं बढ़ता”
समाजवादी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद राजीव राय ने एक्स (Twitter) पर ठाकरे भाइयों को सीधे निशाने पर लेते हुए लिखा:”राज ठाकरे! जब कोई पूछता नहीं है तो मीडिया में आने के लिए गरीब हिंदी भाषियों पर गुंडागर्दी करना आपकी कायरता है।”
राजीव राय ने पूछा कि जब आपका परिवार हिंदी सिनेमा से करोड़ों कमाता है, तो उन फिल्मों और सितारों के खिलाफ क्यों नहीं बोलते?
“दम है तो बॉलीवुड को बाहर करो”
सपा सांसद ने तीखे अंदाज़ में कहा:”अगर दम है तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को मुंबई से बाहर कर दो! लेकिन नहीं कर सकते, क्योंकि हजारों मराठी परिवार भी उसी इंडस्ट्री से पलते हैं।”
“मराठी भाषा – गुंडागर्दी की नहीं, संस्कार की भाषा है”
राजीव राय ने चेतावनी भरे लहजे में कहा:”ये देश ‘अतिथि देवो भव’ के भाव से चलता है, न कि दो कौड़ी की गुंडागर्दी से। छत्रपति शिवाजी महाराज पूरे देश के हीरो हैं, किसी एक पार्टी या परिवार के नहीं।”
ठाकरे बंधुओं की ‘विजय रैली’
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाई गई तीन भाषा नीति पर हुए विरोध के बाद सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा।
इसी को ठाकरे भाइयों ने ‘जनता की जीत’ बताते हुए विजय रैली निकाली, जहां पुरानी राजनीतिक दुश्मनी भूलकर दोनों भाई साथ आए।
सवाल बड़ा है: भाषा के नाम पर हिंसा कब तक?
-
क्या मराठी भाषा की अस्मिता को सिर्फ डंडे और डर के सहारे बचाया जा सकता है?
-
क्या भाषाई अधिकारों की लड़ाई अब राजनीतिक दिखावे और सस्ती लोकप्रियता का जरिया बन गई है?
-
और क्या ठाकरे भाइयों की एकजुटता भाषा के नाम पर वोटबैंक की राजनीति को मजबूती दे रही है?