Wednesday - 10 January 2024 - 1:37 PM

वत्सला पांडेय की कविताएँ

रूठे हो या बहुत व्यस्त हो छोडो ये मसखरी
सच बोलूं तो तुम बिन सूनी लगती है फ़रवरी

साथ तुम्हारे इक इक पल में,सदियाँ जी लेती थी
और नेह की हाला को गट गटकर पी लेती थी
साथी तुम बिन बहुत अकेली भटकूँ मैं बावरी
सच बोलूं तो तुम बिन सूनी लगती है फ़रवरी

बिना तुम्हारे दिन कट जाता, शाम नहीं कटती है
मोबाइल की स्क्रीन से अपनी नज़र नही हटती है
बिन मैसेज के घोर अमा सी रातें तारों भरी
सच बोलूं तो तुम बिन सूनी लगती है फ़रवरी

माना हर ख्वाहिश दौलत के बिना अधूरी है
लेकिन इश्क अगर न हो तो भी क्या पूरी है
इसके आगे दो कौड़ी की सबकी है अफसरी
सच बोलूं तो तुम बिन सूनी लगती है फ़रवरी…..

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तुम्हारा बेसब्री से 
इंतज़ार रहता है मुझे

तुम्हारे स्याह रंग में भी 
झलक आता है मुझे 
इश्क का गुलाबी रंग

तुम्हारी खामोशी में भी
सुनाई पड़ती है मुझे
इश्क की सरगमे

तुम्हारे दामन से लिपटकर
चाँद तन्हा नही रहता
सितारे उदास नही रहते
तुम्हारे इश्क़ की संगत पा जाते है

तुम्हारे आने से, 
ऑनलाइन हो जाते है ,
सैकड़ों व्हाट्सअप,डीपी निहारते ,ज़ूम करते, 
भीगते है आसुओं में अनगिनत तकिये

सच कहूँ ओ रात 
तुम बेहद हसीन हो ..

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Radio_Prabhat
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