Friday - 5 January 2024 - 6:14 PM

विपक्ष के सामने नई चुनौती

सुरेंद दुबे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विगत 30 जून को अपने 16 मिनटीय राष्‍ट्र के संबोधन में स्‍पष्‍ट कर दिया की अब उनकी प्राथमिकता देश के वे 80 करोड़ लोग हैं जो गरीब, अति गरीब, महा गरीब या फिर फुटपाथों पर फटे हाल जिंदगी जीने वाले लोग हैं जिनको दो वक्‍त के भोजन के अलावा और कुछ नहीं चाहिए।

सरकार ने स्‍पष्‍ट कहा कि प्रधानमंत्री अन्न वितरण योजना के अंतर्गत गरीबों को प्रति व्‍यक्ति 5 किलों गेंहू या पांच किलो चावल तथा पूरे परिवार को महीने में एक बार एक किलो चना सरकार मुफ्त में उपलब्‍ध कराएगी। इसमें तमाम अनाज सरकारी गोदामों से फ्री वितरण के लिए राशन की दुकानों तक पहुंचाया जाएगा।

ये भी पढ़े: 15 अगस्त से भारतीय कोवाक्सिन करेगी कोरोना का इलाज 

इसके अतिरिक्‍त राशन कार्ड धारकों को पहली की तरह गेंहू और चावल तीन रुपए प्रति किलो की दर से मिलता रहेगा। अनाज की यह दर भी एक तरह से मुफ्त अनाज की श्रेणी में ही है। यानी कि 80 करोड़ लोगों को नवंबर माह तक मुफ्त अनाज मिलता रहेगा।

नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इन गरीबों को लुभाने के लिए गुरु पूर्णिमा, दिपावली, दुर्गापूजा से लेकर छठ के त्‍यौहार का जिक्र किया। छठ बिहार में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और नवंबर में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं इसलिए प्रधानमंत्री बिहारियों को आकर्षित करने के लिए छठ माई की पूजा पर विशेष रूप से जोर दिया। इसके पहले जब हम चीन सीमा पर हमारे 20 जवान शहीद हुए थे तब प्रधानमंत्री ने बिहार ब्रिगेड का विशेष रूप से उल्‍लेख किया, क्‍योंकि सीमा पर बड़ी संख्‍या में बिहार ब्रिगेड के लोग तैनात थे।

ये भी पढ़े: मनरेगा : जरूरी या मजबूरी

वैसे बिहार ब्रिगेड का मतलब बिहारियों की सेना से नहीं है पर जनता के कमजोर नस पकडने में माहिर नरेंद्र मोदी ने कुछ इस अंदाज में शहादत का वर्णन किया था जैसे सीमा पर बिहारी ही चीन से लड़ने के लिए तैनात हैं। बिहार ब्रिगेड में बहुत से राज्‍यों के जवान शामिल हैं। शहादत देने वाली टुकड़ी के कमांडर बी संतोष स्‍वयं दक्षिण भारत के थे न कि बिहार के। पर जब नजर हर समय वोट बैंक पर हो तब हकीकत से ज्‍यादा अफसाने ही सुनाए जाते हैं।

प्रधानमंत्री ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की बात जरूर कही पर उन्‍होंने यह नहीं बताया कि ये लोग अपने घरों के बिजली के बिल कहां से भरेंगे। यह भी नहीं बताया कि बेरोजगारी के इस माहौल में इनके बच्‍चों की स्‍कूल की फीस कहां से आएगी। इसका भी जिक्र नहीं किया कि अगर गरीबी रेखा के आसपास रहने वाले लोग किसी तरह के कर्ज जाल में फंसे हैं तो वे अपनी किस्‍ते कहां से चुकाएंगे।

ये भी पढ़े: इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर बनाने का क्यों हो रहा है विरोध?

इस देश का सच ये है कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के बच्‍चे अधिकांशत: प्राथमिक शिक्षा भी प्राप्‍त नहीं कर पाते हैं इसलिए सरकार के लिए यह चिंता का विषय नहीं रहा होगा कि इनके बच्‍चे आगे कैसे पढ़ेंगे। बिजली के बिल अगर नहीं भी जमा कर पाए तो इनके जीवन में कोई आफत का पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। अंधेरे में भी जीवन तो गुजर ही सकता है। दो वक्‍त न सही एक वक्‍त भी भोजन का जुगाड़ हो गया तो ये लोग सरकार को दुआएं ही देंगे।

अगर 80 करोड़ लोगों में बच्‍चों या ना‍बालिगों की संख्‍या हटा दी जाए तो 15 -20 करोड़ लोग तो वोट देने की आयु के निकल ही जाएंगे और अगर इतने लोगों के बीच सरकार का यह मंत्र काम कर गया तो भाजपा को अन्‍य किसी वर्ग की दरकार भी नहीं रह जाएगी। भुख ही सबसे बड़ी समस्‍या है और अगर पेट भरने की व्‍यवस्‍था वाकई हो गई तो यह लोग भाजपा के एक मजबूत वोट बैंक सा‍बित हो सकते हैं।

सरकार घोषणाएं करती है और चाहे जितना भ्रष्‍टाचार हो 20 प्रतिशत लोगों तक तो योजनाओं के जरिए राहत मिल ही जाती है। इस सच्‍चाई को विपक्ष को बहुत गंभीरता से समझना होगा, जिसकी पहली परीक्षा बिहार में विधानसभा के चुनाव में होगी। पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी इस खतरे को भाप गई हैं इसलिए उन्‍होंने मुफ्त अनाज देने की योजना अपने राज्‍य में जून 2021 तक चलाने की घोषणा कर दी है। तब तक वहां भी विधानसभा के चुनाव निपट जाएंगे।

ये भी पढ़े: कानपुर : मुठभेड़ में डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मी शहीद

जिन राज्‍यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं वे तो अपने-अपने राज्‍यों में मुफ्त राशन वितरण के जरिए मोर्चा संभाल लेंगी। पर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर तो भाजपा का ही कब्‍जा है इसलिए विपक्ष के सामने अब ये बड़ी चुनौती है कि वह किस वोट बैंक पर डोरे डाले। एक अमीरों और अति अमीरों का वर्ग है जिसके सामने रोजी रोटी की समस्‍या नहीं है और हर सरकार में उसे सरंक्षण मिलता है इसलिए ये वर्ग तो अंतत: सरकार यानी कि भाजपा के साथ रहेगा। ज्‍यादा माल पानी भी चुनाव लड़ने के लिए भाजपा को ही देगा।

विपक्ष के सामने दोनों समस्‍याएं हैं। पहली कौन से वोट बैंक पर भरोसा करें और वर्च्‍युअल रैलियों के इस युग में पैसे का जुगाड़ कहां से करें। अकेले बिहार में एक दिन की वर्च्‍युअल रैली में लगभग 150 करोड़ रुपए खर्च करके भाजपा ने आगे आने वाले चुनावों को काफी महंगा कर दिया है।

ये भी पढ़े: चीन से तनाव के बीच अचानक लेह पहुंचे पीएम मोदी

विपक्ष के पास अब ले देकर मिडिल क्‍लास ही बचा है। इसके तीन क्‍लास हैं। लोअर मिडिल क्‍लास, मिडिल क्‍लास तथा अपर मिडिल क्‍लास। कोरोन काल में आई आर्थिक मंदी और बेरोजगारी से सबसे ज्‍यादा यही वर्ग पीड़ित है। नौकरियां चली गईं। नए रोजगार खुल नहीं रहे। जिनकी नौकरियां बची हैं उनके वेतन आधे हो गए हैं। इनके सामने घरों के बिजली बिल, बच्‍चों की स्‍कूल की फीस तथा बैंको कर्ज एक आफत की तरह मुहं बाए खड़ा है।

छोटे उद्योग भी फिक्‍सड बिजली के बिलों, बैंक लोन की अदायगी और मांग न होने के कारण कम ब्रिकी की समस्‍या से जूझ रहे हैं। विपक्ष के पास लगभग 50 करोड़ की इस जनसंख्‍या के बीच करतब दिखाने की चुनौती होगी। करतब दिखाने के लिए सरकारी तंत्र की आवश्‍यकता होती है।

इनमें लाखों अंधभक्‍त भी हैं जो अंधी गली में दौड़ते हुए भी किसी रोशनी की मीनार तक पहुंच जाने के भरोसे में हैं। मिडिल क्‍लास का वोट टर्नओवर भी अपेक्षाकृत कम होता है। ये लोग बहस ज्‍यादा करते हैं और वोट डालने के लिए कम निकलते हैं। ये देखना होगा कि पहले से ही विपत्ति में फंसा विपक्ष इस स्थिति से कैसे निपटेगा।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com