Thursday - 11 January 2024 - 8:47 PM

नीतीश कुमार फिर टॉक ऑफ द नेशन हैं

विवेक अवस्थी 
नीतीश कुमार एक बार फिर चर्चा में हैं- क्या वो मुख्यमंत्री बने रहेंगे ? क्या अब वो वापस दल नहीं बदलेंगे? क्या वो प्रधानमंत्री बनाने के लिए सब कर रहे हैं? क्या वो प्रधानमंत्री बन सकेंगे? क्या मोदी और शाह ईडी को उनके विधायकों के पीछे लगा देंगे? क्या वो खत्म हो जाएंगे ? क्या वो मोदी और शाह को मात दे पाएंगे? आदि आदि। लेकिन इन सबके बीच नीतीश कुमार अपनी मुहिम में लगे हैं। नीतीश राजनीति को गुंडई का हथियार नहीं मानते, गुंडई को रोकने का हथियार मानते हैं।
राजनीति में शुचिता तथा शासन और विकास में समावेशी नीति को बनाए रखने में मौजूदा दौर के राजनीतिक माहौल में नीतीश कुमार अग्रणी नाम हैं। वह अपनी राजनीति की शुरुआत से संघ के साथ बने गठबंधन में शामिल रहे- 74 के आंदोलन में जेपी के नेतृत्व में जो जनता पार्टी बनी थी, नीतीश की राजनीतिक शुरुआत वहीं से हुई- लेकिन नीतीश सदा लोहिया और जेपी की राह पर चलते रहे, सत्ता के लिए न तो सांप्रदायिकता की चादर ओढ़ी, ना ही राजनीति में अपने कुल खानदान को आगे किया और न ही भ्रष्टाचार या कोई कानून विरोधी दाग अपने कपड़े पर लगने दिये। कह सकते हैं राजनीति की काल कोठरी में रहकर भी नीतीश उजले बने रहे।
देश में या कहें देश के विभिन्न राज्यों में हमेशा जाति, धर्म और भाषा की राजनीति होती रही, लेकिन नीतीश कुमार ने कभी भी इनकी सवारी नहीं की। 17 साल से नीतीश मुख्यमंत्री हैं, लेकिन जाति का कीचड़ उनके दामन पर नहीं है। कोई नहीं कह सकता, फ़लाँ गुंडा जो उनकी जाति का है, वो कानून को ठेंगा दिखा रहा है। बीजेपी के साथ रहकर भी उन्होंने सांप्रदायिकता को कभी हवा नहीं दी, बल्कि सांप्रदायिक उन्माद को हवा देने वाले बीजेपी और संघ के तमाम अभियानों की हवा निकालते रहे- चाहे रामनवमी और अजान के बहाने उन्माद की बात हो या झूठी देशभक्ति और गाय को लेकर खड़ा किया गया उन्माद हो- नीतीश ने सबका मुकाबला कानून और लोकतंत्र के नजरिए से किया।
विकास के मामले में भी नीतीश ने समावेशी सोच की रक्षा की और अपनी जाति के व्यापारियों को आगे बढ़ाने के बजाय जो ज्यादा सक्षम हुआ, उसे नियमपूर्वक आने दिया। नीतीश कुमार पर इस वजह से ये आरोप भी लगते हैं कि उन्होंने नेताओं की हनक को खाक किया और नौकरशाहों को खुली छूट दी। नीतीश ने खुद कहा कि कार्यपालिका कानून सम्मत अपना काम करने देना चाहिए, नेता बाधा न बनें। नतीजा है बिहार में आज अपराध नियंत्रण में है। गाँव हो या शहर सड़कें अच्छी हैं। कभी अंधेरे में डूबे बिहार में आज गाँव गाँव बिजली है। शहरों को जाम की समस्या से निजात दिलाने के लिए नए बाइपास बनाए गए। राज्यभर से राजधानी पटना आना और जाना सुगम बनाया गया। राजधानी पटना का सौंदर्यीकरण किया गया, गंगा घाटों को सुंदर बनाया गया। इन सब की वजह से बिहार में स्वरोजगार के अवसर बढ़े।
लोग अक्सर बिहार को इस बात के लिए घेरते हैं कि बिहार में उद्योग धंधे नहीं लगे, इसलिए बिहारी आज भी पलायन कर रहे हैं। यह सही भी है। लेकिन इसपर बात करते हुए सबसे पहले ये देखना होगा कि उद्योग धंधे लगे, इसके लिए मूलभूत जरूरत क्या है?
तो इसके लिए जरूरी है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत सही हो और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर-सड़क और बिजली निर्बाध हो। नीतीश के आने से पहले इन तीनों मामलों में बिहार कहाँ था, याद कीजिए। आज इन तीनों मामलों में बिहार कहाँ है ये भी नजर में रखिए। अब नीतीश का दुर्भाग्य ये रहा कि जबटक ये सब ठीक हुए, दुनिया में मंदी चढ़ आई। मनमोहन राज में भी विकास की गाड़ी हिचकोले खाने लगी।
बिहार में उद्योग धंधों और आर्थिक विकास लेकर उठे सवाल के पर जवाब देते हुए हुए इस इस बिन्दु को भी ध्यान में रखना होगा कि ग्लोबलाइजेशन के दौर में भी देश में कितना इन्वेस्टमेंट आया? कितने उद्योग धंधे लगे? सन 2000 के बाद के साल कंप्यूटर और मोबाइल क्रांति के लिए जाने जाते हैं, तो भाई देश के किस हिस्से में क्या लगा? कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु को आई टी हब बनाने का प्रयास हुआ, लेकिन बाकी राजधानियों में क्या हुआ? देश दुनिया के व्यापारियों ने अपना मुख्यालय दिल्ली-मुंबई को बनाया तो इसलिए कि दिल्ली देश की राजनीतिक राजधानी तो मुंबई देश की आर्थिक राजधानी। लेकिन दोनों राजधानी पहले से व्यापारियों के आकर्षण का केंद्र रहे। बाकी राज्यों की राजधानियों की तुलना में देखें तो पटना या कहें बिहार किसी से पीछे नहीं रहा। याद करें विकास दर के मामले में देश के विकास की दौड़ में बिहार कई बार अग्रणी रहा। कई बार भारत सरकार ने बिहार को सराहा और पुरस्कृत किया। लेकिन यह बात भी सही है कि बिहार अभी भी पिछड़ा स्टेट है। और उसकी वजह बिहार के आर्थिक-सामाजिक पक्ष हैं।
बिहार की मानसिकता आज भी सामंतवादी और स्त्री विरोधी है। ये आम धारणा है कि स्त्रियों का काम घर संभालना है। दहेज बिहार की बड़ी समस्या है और शादी के समय लड़के वालों की शर्त होती है कि लड़की शादी के बाद नौकरी नहीं करेगी, घर पर रहेगी। लड़कियों के साथ छेड़खानी बिहार में आम बात रही, और ऐसी परिस्थिति में अक्सर परिवार और समाज लड़कियों को ही दोषी मानता है, उसके बाहर जाने पर मनाही कर दी जाती है। नीतीश ने शुरुआत से इस बात पर फोकस किया कि लड़कियों के लिए उपयुक्त माहौल पैदा किया जाए। इसके लिए पढ़ने वाली लड़कियों को साइकिल देने से लेकर फर्स्ट डिवीजन से दसवीं पास करने पर दस हजार रुपये नकद देने का प्रावधान किया। पंचायतों में स्त्रियों को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया गया। जीविका को आंदोलन की तरह सशक्त बनाया गया, जिसकी वजह से लाखों महिलाओं को रोजगार मिले। अपराध पर नियंत्रण और शराबबंदी ने महिलाओं के जीवन में आधारभूत बदलाव लाए। आज महिलायें आजादी के साथ स्कूल से लेकर राजधानी जा रही हैं। यह भी विकास ही है भाई।
शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले पर भी नीतीश कुमार को घेरा जाता है, घेरा जाना भी चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार में सरकारी स्कूल-कॉलेजों और सरकारी अस्पतालों की दशा बेहद खराब है। लेकिन नीतीश कुमार से पहले क्या स्थिति थी, इसको भी ध्यान में रखना होगा। नीतीश कुमार ने लगातार इनकी स्थिति सुधारने की कोशिश की इससे इनकार नहीं कर सकते। स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ी है, अस्पतालों में भी स्थिति बेहतर हुई है। लेकिन हाँ, यह संतोषजनक नहीं है, इस पर अभी बहुत काम करने की जरूरत है।
मेरे इस आलेख को पढ़ते हुए संभव है आप में से किसी को लगे कि मैं नीतीश कुमार के जस्टीफ़ाई करने के लिए लिखा है, मैं इस आरोप से अपना बचाव नहीं करूंगा, लेकिन मैं जवाब में कहूँगा नीतीश कुमार को जस्टीफ़ाई करना बिहार के हित में है। नीतीश कुमार गांधी, नेहरू या जेपी नहीं हैं, लेकिन आज के राजनीतिक माहौल नीतीश देश के सारे नेताओं से अलग और विशेष हैं, इससे इनकार करना नीतीश कुमार के साथ अन्याय होगा। आज के महाभ्रष्ट और भाई भतीजावादी दौर में भी नीतीश कुमार ने राजनीतिक शुचिता का ख्याल रखा ये अपने आप में सराहनीय है।
नीतीश कुमार के विरोधी दो आरोप लगातार चस्पाँ करते हैं- कुर्सी प्रेमी और पलटू। हालांकि दोनों आरोप एक दूसरे से जुड़े हैं। लेकिन राजनीति में सत्ता पर पकड़ बनाए रखना क्या गलत है? क्या हर नेता को गांधी या जेपी बन जाना चाहिए? नीतीश कुमार ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखी तो इसलिए कि बिहार बेहतर बने। बिहार सांप्रदायिकता की आग में न जले। बिहार में अपराधियों का तांडव न हो। बिहार भ्रष्टाचार के दलदल में न धँसे।
भ्रष्टाचार के सवाल पर बिहार में अक्सर लोग कहते पाए जाते हैं बिहार के सरकारी दफ्तरों में भारी भ्रष्टाचार है। बिना घूस के कोई काम नहीं होता। लेकिन क्या कभी किसी ने किसी को ये कहते सुना, मैं खुद बड़ा भ्रष्टाचारी हूँ, मेरे बेटे, दामाद या भाई रिश्तेदार बड़े चोर हैं? लोगों को दामाद चाहिए ऐसा जो कमाई वाले पोस्ट पर हो। बेटे की ऐसे डिपार्टमेंट में बहाली हो, जहां रोज की ऊपरी कमाई हो। कमाई वाली जगह पाने के लिए कितनी भी रकम देनी पड़े, देंगे। भाई सरकारी दफ्तरों में जो काम करते हैं, वो जापान से बिहार नहीं आए हैं, बिहार के ही हैं, आपके ही आसपास के लोग हैं। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण सिर्फ सरकार नहीं लगा सकती, इसके लिए जनता की साझेदारी भी जरूरी है। शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार ने कौन सा तरीका नहीं अपनाया, लेकिन शराब बंद हुई? क्या ऊँचे पैसे देकर लोग शराब नहीं पी रहे? तो भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ मुख्यमंत्री की नहीं है, जनता का साथ भी उतना ही जरूरी है। लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के शासन में अंतर नहीं दिखता आपको ?
बार बार पाला बदलने की नीतीश कुमार की मजबूरी ये है कि उनके पास बहुमत नहीं है। सरकार में बने रहने के लिए उन्हें या तो बीजेपी का साथ चाहिए या लालू प्रसाद यादव का। एक तरफ सांप्रदायिकता की आग है तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का जंगल। नीतीश कुमार दोनों के बीच से बिहार को आगे ले जाने का रास्ता निकालने का प्रयास करते हैं। आपको अगर ऐसा नहीं दिखता तो ये आपका दोष है, आप बिहार के राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक हालात पर अपनी समझ मजबूत बनाइये।
Radio_Prabhat
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