Wednesday - 10 January 2024 - 6:37 AM

रोकना होगा लापरवाही के इस दौर को

रतन मणि लाल

क्या महामारी से बचे रहने की हमारी कोशिश कमजोर पड़ती जा रही है? जहां, अप्रैल और मई में लॉकडाउन के प्रतिबंधों का पालन लोग स्वयं ही करते दिखते थे, वहीं पुलिस और प्रशासन भी लोगों को रोकते और टोकते नजर आते थे। लेकिन जून के अंत तक जैसे ही दूसरी बार प्रतिबंधों मे छूट दी गई, तब से लगने लगा है कि किसी तरह कि रोकटोक कि शायद जरूरत ही नहीं महसूस हो रही है।

लखनऊ शहर मे जुलाई महीने मे आम तौर पर 200 या उससे ज्यादा कोविड पाज़िटिव मामले रोज दर्ज किए जा रहे हैं। अधिकतर शहर निवासियों का मानना है कि अब उनके आसपास से भी मामले सुनाई पड़ने लगे हैं– जबकि कुछ हफ्तों पहले तक शहर के दूर-दराज क्षेत्रों से कोविड पाज़िटिव मामलों कि खबर आती है। इंदिरानगर, आशियाना, जोपलिंग रोड, चिनहट आदि आवासीय इलाके हैं और यहाँ से केस आने कि वजह से लोगों मे डर है कि कहीं यह महामारी इन क्षेत्रों मे तेजी से न फैल जाए।

इसके बावजूद, सड़कों पर लोग निकल ही रहे हैं, दुकानों पर भीड़ दिखाई दे जाती है, सरकारी कार्यालयों के बाहर पटरी पर सिगरेट, गुटका, चाय, खाने के समान आदि की दुकाने सामान्य रूप से लग रही हैं, उन पर लोगों का जमावड़ा भी हो ही रहा है, और उनमे से अधिकतर न मास्क लगाए दिखते हैं, और न ही दूरी बनाकर खड़े रहने की कोशिश करते दिखते हैं।

ऐसा लगता है कि लोगों को पूरा विश्वास है कि उन्हे यह संक्रमण नहीं होगा क्योंकि अभी तक नहीं हुआ है। यह विश्वास वास्तव मे इतना प्रचलित हो चुका है कि इस पर टिप्पणी करने वालों को तुरंत चुप करा दिया जाता है। इसी के साथ दूसरी प्रचलित धारणा यह है कि अमुक व्यक्ति को लगातार मास्क लगाए रखने और लोगों से दूरी बनाए रखने के बावजूद संक्रमण हो गया, तो फिर किसी को भी हो सकता है, इसलिए किसी भी प्रकार कि रोकटोक का क्या फायदा?

लोगों के व्यवहार और सोचने के तरीकों पर कोई भी सरकार प्रतिबंध नहीं लगा सकती, और न ही उसे बदलने के लिए कोई कानूनी कार्यवाई कर सकती है। याद करें, कि अमेरिका मे तो कई प्रांतों और शहरों मे लोगों ने मास्क लगाने या दूरी बनाए रखने से साफ इनकार कर दिया है, और इसके पक्ष मे उनका तर्क है कि उनका शरीर उनका अपना है और उस पर कोई भी किसी प्रकार कि रोक नहीं लगा सकता, और न ही उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता कोई उनसे छीन सकता है। ऐसे तर्क अमेरिका मे रहने वाले पढ़े लिखे, समझदार व्यक्ति भी दे रहे हैं।

हमारे देश मे तो दूसरे तरह के तर्क भी काम आ जाते हैं– जैसे किसी पैदल या साइकिल पर जा रहे व्यक्ति को मास्क न लगाने पर रोक जाए तो यह जवाब मिल सकता है कि कारों मे जाने वाले बड़े व अमीर लोगों को तो रोकते नहीं, गरीब आदमी को परेशान किया जा रहा है। या, रोके जाने वाला व्यक्ति कह सकता है कि वह किसी प्रभावशाली व्यक्ति का सगा-संबंधी है। फिर किसी जरूरी काम से पास मे ही जाने का तर्क या उम्र का तकाजा दिया जा सकता है।

यह भी पढ़ें : अमर दुबे की पत्नी ख़ुशी को लेकर हुआ नया खुलासा, पुलिस के उड़े होश

याद आता है कि लॉक डाउन के शुरुआती दिनों मे पुलिस कर्मियों द्वारा लोगों को प्रतिबंध तोड़ने पर सजा दी जाती थी, और लोग भी कम संख्या मे बाहर निकलते थे। लेकिन अब तो जैसे बीमारी का डर ही खत्म हो गया है। जहां एक ओर काम करना या रोजगार करने कि मजबूरी हो सकती है, वहीं दूसरी ओर अपने को ठीक रखने और उससे भी ज्यादा– जीवित रहने की भी जरूरत है।

यह नहीं भूलना चाहिए कि अस्पतालों मे भर्ती करने की जगह नहीं है, दवाइयों और चिकित्सकों की कमी हो रही है, किसी तरह की सिफारिश काम नहीं आ रही है, लेकिन फिर भी गैर जरूरी कारणों से लोग बाहर निकल ही रहे हैं। जिस तेजी से महामारी फैल रही है, उतनी ही तेजी से लोगों मे अनुशासनहीनता फैल रही है। इस कठिन काल मे अब कहीं ज्यादा जरूरत है कि लोगों को बताया जाए कि उनकी लापरवाही उनकी अपनी जान और उनके प्रिय संबंधियों की जान के लिए भी घातक हो सकती है। यह समय है अपनी जरूरतें कम करने का, और अपने को बचाए रखने का।

यह भी पढ़ें : पूर्व बसपा नेता नसीमुद्दीन की विधान परिषद सदस्यता खत्म

यह भी पढ़ें : लाल जी टंडन जिन्होंने दीनदयाल उपाध्याय और डॉ लोहिया की मुलाकात करायी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com