Sunday - 7 January 2024 - 12:54 PM

चुनावी बयार में नौकरियों की बहार क्यों ?

जुबिली न्यूज़ डेस्क

बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी वादों की झोली लेकर लोगों के सामने पहुंच गए, वहीं मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादवभी वादों को पूरी पोटली खोल दी है। दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है।

बता दें कि चुनाव आयोग द्वारा बिहार राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान आज, 25 सितंबर 2020 को कर दिया गया है। मतदान तिथि की घोषणा से पहले ही नीतीश सरकार द्वारा अपने विभिन्न विभागों के जरिए कुल 10,000 से अधिक सरकारी नौकरियों के लिए विज्ञापन जारी किये जा चुके हैं। वहीं राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी रोजगार के मुद्दे पर पासा फेंका है।

उन्होंने चुनाव तारीख की घोषणा के बाद प्रचार अभियान शुरू करते हुए कहा कि सरकार बनने पर कैबिनेट की पहली बैठक में पहली कलम से वे राज्य के दस लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देंगे। बिहार में सरकारी दफ्तरों में लाखों नौकरियां रिक्त पड़ी हैं , लेकिन उनपर भर्ती नहीं हो रही है।

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कुलमिलाकर अगर देखा जाए तो चुनावी बयार के बीच नौकरियों की बहार एकबार फिर देखने को मिल रही है। यह सिर्फ बिहार का ही मामला नहीं है बल्कि लगभग सभी राज्यों और लोकसभा के चुनावों के समय भी ऐसे ही ऐलान किए जाते हैं हालांकि ये घोषणाएं कितनी पूरी होती हैं और नेता अपने किए वादों को कितना याद रखते हैं यह तो जग जाहिर है।

फ़िलहाल अभी बात बिहार की हो रही है तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि अचानक से सुशांत सिंह राजपूत और अन्य मुद्दों पर हो रही चर्चा के बीच रोजगार का मुद्दा कैसे प्रमुखता में आ गया।

आपको बता दें कि बिहार सबसे अधिक युवा आबादी वाला राज्य है। राज्य की 60 प्रतिशत आबादी युवा है जबकि यहां बेरोजगारी की दर 46 फीसद से अधिक है। इसके आलावा कोरोना काल में जो प्रवासी मजदूर राज्य में लौटे हैं उन्हें भी रोजगार की जरुरत है। बिहार उन राज्यों में से एक है जहां सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर वापस अपने घर आये हैं। ऐसे में इनकी संख्या भी चुनाव में अहम भूमिका निभाएगी। अब तो यह समझ आ ही जाना चाहिए कि आखिर क्यों नौकरियों और रोजगार के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष बड़े-बड़े सपने दिखा रहे हैं।

मुद्दे की गंभीरता को इस बात से और समझा जा सकता है कि तेजस्वी की इस घोषणा के महज दो घंटे बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के युवा मोर्चा ने युवाओं को समर्पित ‘युवाओं का विकास मोदी के साथ’ नामक पुस्तिका का विमोचन कर दिया। इस पुस्तिका में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा युवाओं के हित में लिए गए फैसलों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। पार्टी ने यह भी बताया है कि आत्मनिर्भर बिहार के जरिए कैसे युवा रोजगार प्रदाता बन सकेंगे।

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इतना ही नहीं उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट करके कहा, “जो जमीन लिखवाए बिना नौकरी नहीं देते थे, उनके वारिस सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में दस लाख लोगों को नौकरी देने का वादा कर रहे हैं तो उन पर कौन भरोसा करेगा।”

वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश चन्द्र का कहना है कि, बिहार में चुनाव के ऐलान के साथ जोड़तोड़ और जातीय गणित पर चर्चा तेज है। कोरोना काल में बढ़ी बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा है जिसे राजनीतिक दल भुनाना चाहते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में रोजगार का हाल हमेशा से बुरा ही रहा है लेकिन वहां यह चुनाव का प्रमुख मुद्दा कभी नहीं बना ऐसे में यह कहना की इस चुनाव में यह प्रमुख मुद्दा होगा सही नहीं लगता। उन्होंने कहा कि यूपी-बिहार ऐसे राज्य हैं जहां मतदाता अंतिम समय पर जातिवाद जैसे मुद्दे पर ही मतदान करता है।

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