जुबिली स्पेशल डेस्क
पटना | बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और इसी के साथ राज्य की राजनीति में सियासी गर्मी चरम पर है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार लगातार बड़े फैसले लेकर विपक्षी दलों पर दबाव बनाने की रणनीति में जुटी है। खासतौर पर युवाओं से जुड़े मुद्दों पर तेजी से निर्णय लेकर वह आगामी चुनाव में उन्हें साधने की कोशिश कर रहे हैं।
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सीधे तौर पर आरोप लगाया है कि नीतीश सरकार विपक्ष के विज़न को कॉपी कर रही है। उन्होंने कहा, “हम जो वादा करते हैं, थकी हुई एनडीए सरकार उसे चुपचाप उठा लेती है।
इनके पास अपना कोई रोडमैप नहीं है।” तेजस्वी का दावा है कि बिहार युवा आयोग का आइडिया सबसे पहले उन्होंने मार्च 2025 में पटना में आयोजित युवा चौपाल के दौरान रखा था।
बिहार युवा आयोग: किसका आइडिया, किसने किया अमल?
राज्य सरकार ने हाल ही में बिहार युवा आयोग के गठन को मंजूरी दी है। इसका मकसद राज्य के युवाओं को रोजगार, शिक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में सशक्त बनाना है। इसमें अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और सात सदस्य होंगे, जिनकी उम्र 45 वर्ष से अधिक नहीं होगी।
तेजस्वी का कहना है कि यह ऐलान भी उनके मंच से उठी आवाज थी, जिसे अब सरकार ने चुनाव से ठीक पहले हथियार बना लिया।
युवाओं से जुड़े बड़े मुद्दे जिन पर गर्म है राजनीति
100% डोमिसाइल आरक्षण: राज्य में शिक्षक भर्ती में बाहरी उम्मीदवारों के चयन को लेकर नाराजगी है। विपक्ष का कहना है कि केवल बिहार के निवासियों को प्राथमिकता दी जाए।
डोमिसाइल सर्टिफिकेट पर 90% आरक्षण: युवाओं की मांग है कि अन्य नौकरियों में बिहार निवासियों को 90% आरक्षण मिले, जिसे तेजस्वी यादव ने समर्थन दिया है।
सरकारी नौकरियों के फॉर्म फीस माफ करने का वादा: आरजेडी ने चुनाव में वादा किया है कि सरकार बनने पर यह बोझ छात्रों से हटा दिया जाएगा।
क्या यह चुनावी स्टंट है या युवाओं के लिए राहत?
नीतीश सरकार का तर्क है कि आयोग के ज़रिए युवाओं को सीधे सरकार से जोड़ने की कोशिश होगी। इसका उद्देश्य राज्य में युवाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना है, साथ ही निजी क्षेत्र में रोजगार और प्रशिक्षण को प्राथमिकता देना। नीति आयोग के अनुसार, बिहार की बेरोजगारी दर 3.9% है, जो राष्ट्रीय औसत (3.2%) से अधिक है। ऐसे में युवाओं का वोट निर्णायक हो सकता है।