Sunday - 14 January 2024 - 7:37 AM

मैं घर का बड़ा था, मुझ पर जिम्मेदारियां…

मैं घर का बड़ा था, तो मुझ पर जिम्मेदारियां बहुत थीं,
प्यार सबका कुछ ज्यादा था मुझसे, तो हक्दारियां बहुत थीं.,

मैं सब देखता और घर के हालात समझता था,
प्यार बहुत था सबमे फिर भी कुछ दरमियाँ उलझता था,

मुझे भी माँ के आँचल में सोना पसंद था,
छोटे भाई,बहनों के साथ खेलना पसंद था,

पर मोह माया छोड़कर घर से निकलना ही पड़ा,
छोटी बहन चुप थी, माँ कमरे में रोई और बाप दरवाज़े पर खड़ा,

रोकना चाहते तो सब थे, पर हालातों ने बेड़ियाँ बाँधी थी,
मजबूत किया खुद को क्योंकी रास्तों में बहुत आंधी थी,

मैं रोया, चिल्लाया पर तकलीफ किसी को बता न पाया,
मैं घर का बड़ा था ना, इसलिए चट्टानों सा खुद का प्रतिबिम्ब दिखाया,

मैं आज भी पल पल उस दिन को याद करता हूँ,
जब शौक में मैंने नौकरी पकड़ी थी,

कब ये मेरी जरुरत बन जाएगी,
सोच में मुझको मजबूरियां जकड़ी थी,

मैं घर का बड़ा था मुझपर जिम्मेदारियां बहुत थी,

ज़िम्मा बहन की पढाई का था,
पिता की उम्र अब ढल रही थी,

खिलखिलाहट छोड़ चुका था मैं घर पर,
बस सुबह, रात, ऑफिस और किराए के कमरे में….
जिंदगी चल रही थी,

छाँव से निकल कर कड़ी धुप में चल रहा था,
वापस घर जाने को दिल मेरा मचल रहा था,

पर रोके कदम खुद को समझाया की…
इसी तपन से मेरे घर का चूल्हा जल रहा था,

अब ना त्योहारों में जा पाता हूँ न बैठ पाता हूँ दो पल,
घरवालों के पास इत्मीनान से…,

बस अपनी परछाई से बात करता रहता हूँ…,
खिड़की से झांकता हूँ जैसे सुन रहा हो कोई मुझे आसमान से,

नजाने कब छूट गयी गेंद हाथ से,
परेंशानियों के चलते कहानी बहुत थी,

मैं घर का बड़ा था…
तो मुझ पर जिम्मेदारियां बहुत थी …

 

 

 

 

 

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  दिव्या सिंह   (लखनऊ )

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com