Saturday - 6 January 2024 - 1:40 AM

मदर्स डे मनाना तो अहसान फरामोशी है

शबाहत हुसैन विजेता

आज मदर्स डे है. दुनिया माँ को विश कर रही है. माँ जो पैदा करती है. माँ जो परवरिश करती है. माँ जो जीना सिखाती है. माँ जो रिश्तों की पहचान करवाती है. माँ जिसके पाँव तले जन्नत है. माँ जिसके लिए औलाद एक मन्नत है. माँ जो अपने बच्चे को खिलाकर ही सुलाती है. अपने लिए कुछ बाकी न हो तो आग पर पत्थर चढ़ाती है ताकि औलाद इस खुशफहमी में सो जाए कि खाना पक जाएगा तो माँ भी अपना पेट भर लेगी.

मोहब्बत नाम की शुरुआत माँ से ही होती है. माँ कैसी भी हो मगर उसके लिए सबसे बड़ी दौलत उसकी औलाद ही होती है. माँ के किरदार जैसा कोई दूसरा किरदार बना ही नहीं. माफ़ करने के मामले में दो ही इक्जाम्पिल सबसे बड़े हैं. पहला अल्लाह का और दूसरा माँ का. अल्लाह अपने हर बन्दे से यह उम्मीद करता है कि वह अपनी गल्तियों की माफी मांगे. दिल से माँगी गई माफी पर वह माफ़ कर देता है. मगर माँ माफ़ करने के मामले में अल्लाह से भी आगे निकल जाती है. कई ऐसे मामले हैं जिनमें औलाद को अपनी माँ से माफी मांगने का मौका नहीं मिला और उसकी अचानक मौत हो गई. ऐसी औलाद को माँ उसकी मौत के बाद उसकी सारी गलतियों के लिए माफ़ कर देती है.

माँ का ओहदा दुनिया में सबसे बड़ा ओहदा है. यही माँ पहले बेटी होती है. कुरआन में बेटे को नेमत और बेटी को रहमत बताया गया है. बेटियां रहमत होती हैं इसीलिये तो माँ के दिल में रहम कूट-कूटकर भरा होता है.

माँ की गोद को औलाद का पहला स्कूल बताया गया है. इसी स्कूल में इंसान इंसानियत का सबक पढ़ता है. यही वजह है कि औलाद जब गलत रास्ते पर जाती है तब उसकी परवरिश पर उंगलियां उठती हैं. परवरिश में बाप का नहीं माँ का ही रोल अहम माना गया है.

माँ के किरदार पर लिखने के लिए इतना कुछ है कि उसे पूरी तरह से कभी लिखा ही नहीं जा सकता. दुनिया में यह अकेला ऐसा रिश्ता है जिसमें मोहब्बत कोई बदला नहीं चाहती. औलाद सब कुछ हासिल कर लेने के बाद अपनी माँ को भूल जाए तो भी माँ कभी उफ़ नहीं करती. कभी उसका बुरा नहीं चाहती.

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माँ का दर्जा दुनिया का सबसे बड़ा दर्जा है. इसी वजह से तो मुल्क को माँ का दर्जा दिया गया. मुल्क भी अपने हर बच्चे को एक जैसी नज़रों से देखता है और माँ भी अपने सब बच्चो को एक नजर से देखती है.

रिश्तों पर रिसर्च करने वालों ने कहा है कि औलाद अपनी माँ के लिए पूरी ज़िन्दगी कितना भी कर ले लेकिन वह अपनी माँ के एक रात के अहसान को भी उतार नहीं सकता है. दुनिया में आने के बाद पहले तीन साल किसी भी बच्चे के लिए बहुत मुश्किल साल होते हैं. उस दौर में ज़रा सा इन्फेक्शन उसकी ज़िन्दगी की किताब को बंद कर सकता है लेकिन माँ बगैर कहीं कुछ भी लिखे हुए उसके हर पल का हिसाब रखती है. कब उसे दूध देना है. कब कौन सी दवा देनी है. कब उसे इंजेक्शन लगवाना है. उसके लिए वह हर जतन करती है जिससे उसके बच्चे की ज़िन्दगी मुश्किलों से बाहर निकल जाए.

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माँ अपने बच्चे को सर्दी से बचाती है. बच्चा बिस्तर गीला कर दे तो खुद गीले में सो जाती है मगर बच्चे को सूखे में सुलाती है ताकि उसे कहीं सर्दी न लग जाए. मौसम गर्मी का हो और रात को बिजली चली जाए तो सारी रात माँ अपने बच्चे को पंखा झलती है ताकि वह कहीं जाग न जाए और उसकी नींद न खराब हो जाए. बच्चा बीमार हो जाए तो माँ यह भूल जाती है कि दिन है या रात.

बच्चा जब पहली बार करवट बदलता है, बच्चा जब पहली बार अपने बल पर उठकर बैठता है. बच्चा जब पहली बार घुटनों के बल आगे बढ़ना सीखता है. बच्चा जब पहली बार लड़खड़ा कर अपने पाँव पर चलता है, बच्चा जब पहली बार अपनी ज़बान से कुछ बोलता है. तो जो सबसे ज्यादा खुश होता है वह माँ होती है.

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माँ अपने बच्चे के लिए दुनिया की सारी खुशियों का इंतजाम करती है. बच्चे की हर जिद को वह खुशी-खुशी पूरा करती है. बच्चा क्या खायेगा, क्या पहनेगा, उसे किस चीज़ की कब ज़रुरत है. यह माँ को हमेशा मालूम होता है. यही वजह है कि जब बच्चा कुछ बता पाने की उम्र में नहीं होता है और अचानक से रोना शुरू कर देता है तब बगैर किसी मेडिकल पढ़ाई के माँ समझ जाती है कि बच्चे को कहाँ दर्द हो रहा है और उसे कौन सी दवा देकर ठीक किया जा सकता है.

बच्चे का किरदार, बच्चे की शख्सियत, बच्चे की बहादुरी, बच्चे की रहमदिली, बच्चे की ईमानदारी सब उसे पैदा करने वाली माँ से तय होती है. हक़ और इन्साफ को बचाने के लिए कर्बला के मैदान में अपनी शहादत पेश करने वाले हज़रत इमाम हुसैन को कौन नहीं जानता. हजरत इमाम हुसैन पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब की बेटी और मौला-ए-कायनात हजरत अली की शरीक-ए-हयात हजरत फात्मा ज़हरा के बेटे थे. हजरत फात्मा ज़हरा की शहादत के बाद हजरत अली ने उस दौर की सबसे बहादुर औरत हजरत उम्मुल बनीन से शादी की थी. यह शादी उन्होंने हजरत अब्बास जैसा बहादुर बेटा हासिल करने के लिए की थी. हजरत अली को अब्बास जैसा बेटा इसीलिये चाहिए था ताकि वह अपने बड़े भाई इमाम हुसैन के मददगार की शक्ल में कर्बला के मैदान खड़े हो सकें. बहादुर बेटे के लिए बहादुर माँ को चुनकर हजरत अली ने 1400 साल पहले ही यह बता दिया था कि बच्चे के किरदार माँ कितनी अहमियत रखती है.

बावजूद इसके इस दुनिया ने माँ के लिए सिर्फ एक दिन का चुनाव किया है. उसे मदर्स डे नाम दिया है. मदर्स डे मनाना हकीकत में खुद को पैदा करने वाली माँ से अहसान फरामोशी है. मदर्स डे तो हर वह दिन है जिस दिन हम सांस लेते हैं. हम हँसते हैं. हम रिश्तों को जीते हैं. हम ज़िन्दगी का मतलब समझते हैं. पैदा होने से लेकर मर जाने तक हर दिन माँ का ही दिन है. माँ वह किरदार है जिसे किसी एक दिन में कैद किया ही नहीं जा सकता.

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