Thursday - 11 January 2024 - 8:55 AM

लॉक डाउन

शबाहत हुसैन विजेता

देश में लॉक डाउन है। ट्रेनें पटरियों पर थम गई हैं। हवाई जहाज़ रनवे पर खड़े हैं। करोड़ों गाडियां गैराज में बंद हैं या फिर घरों में खड़ी हैं। सड़कों पर वही हैं जिनके सामने कोई मजबूरी है। वह मजबूरी जॉब की भी हो सकती है और इंसानियत को बचाने की जद्दोजहद में खुद को होम कर देने की सोच की भी। शौक में घर से बाहर कोई नहीं निकल रहा है।

कोरोना ने हर किसी के पाँव में ज़ंजीर बाँध दी है। मासूम बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग तक जानते हैं कि घर से न निकलने में ही भलाई । हुकूमत ने सलाह दी है कि सोशल डिस्टेंस से रहो। सोशल डिस्टेंस की सलाह को वही समझ सकता है जिसके पास सोचने समझने की सलाहियत हो।

आमतौर पर इंसानों को सबसे समझदार माना जाता है। यह समझा जाता है कि बेज़बान जानवर अपना अच्छा बुरा नहीं सोच सकते। यह लॉक डाउन नहीं आता तो यह गलतफहमी ऐसे ही पूरी ज़िन्दगी बनी रहती। यह दौर आया तो यह गलतफहमी दूर हो गई। खाली पड़ी सड़कों पर सोते हुए कुत्तों को देखकर यह अहसास होता है कि वह बेजबान सही लेकिन हालात को समझते हैं। झुंड बनाकर चलने वाले कुत्ते भी इन दिनों आपस में दूरी बनाकर सो रहे हैं।

सड़कों पर घूमने वाली गायें दिखना बंद हो गई हैं। बन्दरों का आना कम हो गया है। घरों की दीवारों पर चहलकदमी करने वाली बिल्लियों की तादाद कम हो गई है। और तो और इन दिनों सड़कों पर पागल भी नहीं दिख रहे हैं। बाज़ारों में फटेहाल घूमने वाले पागल भी कहीं गुम हैं।

कोरोना इस दुनिया को महामारी लग रही है। यह जानलेवा बीमारी लग रही है, लेकिन इसके पीछे की वजहों पर मंथन किया जाए तो इस प्रकृति से सब कुछ हासिल करने वाले इंसानों ने उसे बदले में क्या लौटाया। सड़कों पर गंदगी फैलाई। क्राइम के ग्राफ को रोजाना ऊंचा किया। नदियों को नालों में बदल दिया। सड़कें बंद कर निजी आयोजन किये, बाद में गंदगी ऐसे ही छोड़ दी। यह मंथन का समय है कि कहीं प्रकृति ने ही खुद को संतुलित करने के लिए ही तो यह सब नहीं किया। लॉक डाउन में जब सब कुछ बंद है तब सड़कें साफ़ हो चुकी हैं। आसमान पहले से ज्यादा नीला हो गया है। चाँद और तारे ज्यादा चमकीले हो गए हैं। नदियाँ साफ़-सुथरी होकर इठलाती हुई कल-कल करती बह रही हैं। नदियों में अब किसी कारखाने की गंदगी नहीं गिर रही है।

लॉक डाउन ने सब कुछ संतुलित कर दिया है लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है तो सोशल मीडिया पर मौजूद लोगों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है। वही नफरतें, वही सियासत, टूटते-बिखरते हालात में भी इनमें कोई बदलाव नहीं। हिन्दू-मुसलमान, बीजेपी-कांग्रेस। सोशल मीडिया को इस बात की कोई फ़िक्र नहीं कि आर्थिक रूप से हम कितना पिछड़ रहे हैं। इस बात की कोई फ़िक्र नहीं कि नौकरियां खत्म होती जा रही हैं। बेरोजगारों की एक बड़ी जमात तैयार हो रही है जो लॉक डाउन खत्म होने के बाद सरकार की नाक में दम कर देगी।

सोशल मीडिया पर राहुल गांधी आज भी पप्पू बने हुए हैं जबकि प्रधानमन्त्री इस पप्पू की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। राहुल ने न सिर्फ अपनी एक तिहाई सम्पत्ति कोरोना से जंग के लिए दे दी बल्कि यह एलान भी कर दिया कि इस वक्त जंग मोदी से नहीं कोरोना से है।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी कोरोना को हराने के लिए रात-दिन एक किये हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर गरीब की दिक्कत दूर करने की कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रायबरेली के डीएम को पत्र लिखकर अपनी सांसद निधि की कितनी भी राशि निकालकर कोरोना के लिए खर्च कर देने को अधिकृत कर दिया है।

प्रियंका गांधी ने सीएम योगी को पत्र लिखकर आश्वस्त किया है कि कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्त्ता कोरोना के खिलाफ जंग में सिपाही है। वह जैसे चाहें उसे इस्तेमाल करें। अखिलेश यादव भी लगातार उन लोगों पर नज़रें लगाए हैं जिन्हें मदद की दरकार है। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से उन्होंने लोगों की हर संभव मदद को कहा है।

सवाल यह है कि सियासत के सारे पहिये जब एक धुरी पर घूमते दिखाई दे रहे हैं तो फिर उन लोगों पर किसका अंकुश है जो मस्जिद, अज़ान, जमाती और मुसलमानों पर उंगली उठा रहे हैं। वह कौन लोग हैं जो सरकार और संघ को कटघरे में खड़ा करने को बेताब हैं।

प्रकृति ने संतुलन का जो फार्मूला इस्तेमाल कर दिखाया है क्या वह सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों की समझ में नहीं आया? प्रकृति जब सड़कों की भीड़ को समेट सकती है। गाड़ियों का शोर रोक सकती है। धुएं के सैलाब को गठरी में बाँध सकती है।

नालों में बदल गई नदियों को फिर पुराने तौर तरीके पर ला सकती है। जब वह मन्दिर-मस्जिद, गुरुद्वारों और चर्च में ताला लगवा सकती है तो फिर सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों की औकात ही क्या है? जिस प्रकृति ने कुत्तों को भी सोशल डिस्टेंस से रहना सिखा दिया है। जिसने पागलों को भी सड़कों और बाज़ारों से दूर कर दिया है उसके कहर से न डरा गया तो अंजाम कितना डरावना होगा इसकी तस्वीर आने वाला दौर देखेगा।

Radio_Prabhat
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