Monday - 15 January 2024 - 1:08 PM

डंके की चोट पर : हामिद को इस बार भी ईदी मिली है मगर…

शबाहत हुसैन विजेता

तीस रोजों के बाद फिर से ईद आ गई है. हामिद को इस बार भी ईदी में पैसे मिले हैं. अपनी ईदी के पैसों से हामिद फिर अपनी दादी के लिए ही कुछ खरीदना चाहता है. इस बार जेब में पहले से बहुत ज्यादा पैसे हैं लेकिन इस बार ईद का मेला नहीं लगा है. मस्जिद में नमाज़ भी नहीं हुई है. बाज़ार बंद हैं. ईद के लिए नया कपड़ा भी नहीं आया है. घर पर सिवईं बन रही है मगर कोई दोस्त खाने के लिए नहीं आ रहा है. उसे भी किसी के घर जाने की मनाही है.

हामिद को बताया गया है कि पूरी दुनिया में बहुत खतरनाक बीमारी आ गई है. यह बीमारी किसी को छूने से भी फ़ैल जाती है. सब लोग बुरी तरह से डरे हुए हैं. घरों के दरवाज़े बंद हैं. यह बीमारी बच्चो और बूढ़ों में सबसे तेज़ फैलती है. वह बच्चा है इसलिए घर से नहीं निकल सकता है. दादी बूढ़ी हैं इसलिए वह पहले ही बाहर नहीं निकलती हैं.

दादी के पास पेड़ हैं, पौधे हैं, तोता है, बिल्ली है, खरगोश है. दादी पेड़-पौधों को पानी देती हैं. तोता, बिल्ली और खरगोश को उसकी पसंद का खाना खिलाती हैं. दादी दिन भर इधर-उधर दौड़ती हैं, फिर भी कभी थकती नहीं हैं. हामिद स्कूल से लौटता है तो वही उसकी ड्रेस बदलती हैं. वही उसे खाने को देती हैं. खाना खाकर वह दादी से बात करते हुए ही सो जाता है.

स्कूल की छुट्टियों के बाद जब वह नानी के घर चला जाता है तब सबसे ज्यादा परेशानी होती है, तब दादी से बात नहीं हो पाती है क्योंकि दादी के पास मोबाइल फोन नहीं है. पिछले साल ईद पर हामिद ने तय किया था कि वह साल भर तक एक भी पैसा खर्च नहीं करेगा और सारे पैसे बचाकर दादी के लिए फोन खरीदेगा. उसने साल भर चाकलेट नहीं खाई, खिलौने नहीं खरीदे, मेला लगा तो झूले पर नहीं बैठा. उसने कितनी ही बार रंग-बिरंगे स्वीमिंग पूल बिकते हुए देखे मगर उसके लिए जिद नहीं की. साल भर की मेहनत से बचाए पैसों में ईदी जुड़ गई तो मोबाइल फोन की खरीद की राह आसान हो गई.

मोबाइल की दुकानें खुलने वाली हैं मगर बताया गया है कि मोबाइल फोन भी इस खतरनाक बीमारी को बढ़ा देता है. हामिद अपनी दादी के हाथ में चमचमाता हुआ मोबाइल फोन देखना चाहता है मगर दादी बूढ़ी हैं. और वह बच्चा है. वह इस उलझन में है कि यह बीमारी बच्चो और बूढ़ों की सबसे बड़ी दुश्मन है.

हामिद जिस माहौल में पलकर बड़ा हो रहा है उसमें रिश्तों की अहमियत सबसे ज्यादा है. कोई भैया है, कोई चाचा है तो कोई बड़े अब्बा. यहाँ गलती करो तो सब डांटते हैं और इनाम जीतकर आओ तो सब इनाम देने लगते हैं. पूरा मोहल्ला ही घर जैसा है. मगर इस बीमारी ने सबके दरवाज़े बंद कर दिए हैं. सब अपने-अपने घरों में हैं.

इस बीमारी ने बताया कि हामिद का घर कहाँ से कहाँ तक है. इस बीमारी ने बताया कि अब कहाँ से कहाँ तक जाना है. इस बीमारी ने बताया कि पड़ोस वाले चाचा या भैया दिखें तो उनके पास दौड़कर नहीं जाना है. इस बीमारी ने बताया कि जो मोबाइल फोन नानी के घर से दादी के घर को जोड़ सकता था वह भी धोखा दे सकता है.

बड़ों जैसी अकल वह नहीं रखता है मगर समझना चाहता है कि जैसे वह अपने घर में बंद है वैसे ही पड़ोस वाले चाचा भी बंद हैं. एक बंद घर वाला दूसरे बंद घर में जाएगा तो बीमारी कैसे फैलेगी. वह समझना चाहता है कि मोबाइल फोन तो एक टेक्नोलॉजी है. उसमें नम्बर मिलाएंगे तो बात होगी, नहीं मिलाएंगे तो वह भी आलस से सोता रहेगा. सोता हुआ फोन बीमारी कैसे लाएगा.

हामिद यह भी समझना चाहता है कि जब यह बीमारी बूढ़ों और बच्चो की सबसे ज्यादा दुश्मन है तो अगर बच्चा किसी बूढ़े से मोबाइल पर बात करेगा तो बीमारी कैसे हमला करेगी. हामिद कभी जेब में रखे पैसों को छूकर देखता है तो कभी साल भर तक की गई मेहनत के बारे में सोचता है.

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हामिद ने टीवी देख रही दादी से एक बार सुना था कि मस्जिद में लाउडस्पीकर पूछकर लगाना होगा. अज़ान होती है तो कुछ लोगों को दिक्कत होती है. वह सोचता है कि मोबाइल की तरह लाउडस्पीकर भी तो टेक्नोलॉजी ही है. वह दोनों मुद्दों को मन ही मन जोड़ता है. एक टेक्नोलॉजी बीमारी लाती है और दूसरी दिक्कत.

सोफे पर लेटा हामिद बहुत देर तक सोचता है. उसे याद आता है कि बचपन में वह ईद के मेले से दादी के लिए लोहे का चिमटा लाया था तब वह चिमटा पूरे मोहल्ले में दिखाया गया था. पड़ोस वाले गणेश चाचा ने उसे उठाकर कंधे पर बिठा लिया था. सबने उसकी खूब तारीफें की थीं. अब जब बह टेक्नोलॉजी के बारे में समझ गया है तब कहीं बीमारी दिख रही है और कहीं दिक्कत.

हामिद झटके से उठता है. मेज़ पर फैली अपनी किताबों को समेटकर उन्हें कमरे के कोने में रख देता है. फिर किताबों पर अखबार बिछाकर उस पर फूलदान लगा देता है. यकायक किताबें उसे डराने लगती हैं. वह सोचता है कि किताबें बड़ी कुर्सियां और ढेर सारे पैसे ज़रूर दिलाती हैं मगर साथ में टेक्नोलॉजी वाला डंडा भी तो ले आती है.

अज़ान की आवाज़ से कहीं किसी को दिक्कत हुई होगी मगर टीवी की टेक्नोलॉजी ने उसे गणेश चाचा की दिक्कत भी बना दिया. मोबाइल फोन से किसी एक को दिक्कत हुई होगी मगर टीवी ने दादी और नानी के घर को जुड़ने से रोक दिया. वह सोचता है, खूब सोचता है फिर जेब में रखे पैसे निकालकर कमरे में उछाल देता है.

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