Wednesday - 10 January 2024 - 6:53 AM

जब सैलरी के पड़े हो लाले तो कैसे रुकेगा पलायन

न्यूज़ डेस्क

नई दिल्ली। भारत के अलग- अलग राज्यों से आँखों से आंसू निकालने वाली तश्वीरें आये- दिन सामने आ रही है। मजदूरों को अपने गांवों की ओर पलायन से रोकने के लिए भले ही तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन असल वजह सैलरी का न मिलना या फिर बड़े पैमाने पर कटौती होना है।

एक सर्वे के मुताबिक 76% मजदूरों को अप्रैल महीने में सैलरी नहीं मिली है और 38 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्हें वेतन में कटौती का सामना करना पड़ा है।

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Safe In India समेत कई एनजीओ की ओर से दिल्ली के बाहरी इलाके मानेसर और बावल में किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। केंद्र सरकार की ओर से कई बार सैलरी में कटौती न किए जाने की अपील के बाद भी यह स्थिति देखने को मिल रही है।

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कई राज्यों में तो सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों को देने के लिए वेतन तक देने में असमर्थता जताई, लेकिन आखिरकार प्राइवेट नौकरी करने वाला कर्मचारी क्या करता।

मार्च के महीने में ऐसे 25 फीसदी वर्कर ही थे, जिन्हें पूरी सैलरी नहीं मिल पाई थी। लेकिन अब अप्रैल के महीने में 76 पर्सेंट से ज्यादा वर्कर्स को वेतन न मिल पाना यह बताता है कि लॉकडाउन के लगातार खिंचने की वजह से कंपनियों की आर्थिक सेहत बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

Safe In India के सीईओ संदीप सचदेवा ने कहा, ‘सरकार को इस संकट के बारे में समझना चाहिए। ऐसी स्कीमें लागू की जानी चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्से कहे जाने वाले मजदूरों की चिंता की जा सके।’ उन्होंने कहा कि सरकारों को मजदूरों को संकट से उबारने के लिए कैश ट्रांसफर के फॉर्मूल पर काम करना चाहिए।

हालांकि हरियाणा सरकार ने इस तरह का प्रयास किया है और मजदूरों को हर सप्ताह 1,000 रुपये देने की बात कही है। लेकिन यह फैसला स्थानीय मजदूरों के लिए ही लिया गया है और अन्य प्रदेशों के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं होगा।

वहीं नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी भी इस तरह का सुझाव दे चुके हैं। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि यदि सरकार भारत में मांग बढ़ाना चाहती है और अर्थव्यवस्था को गति देने की इच्छा रखती है तो उस प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 1,000 रुपये जमा करने चाहिए।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी कई बार कह चुके हैं कि सरकार को गरीब तबके को सीधे तौर पर कैश देकर मदद करनी चाहिए। मुफ्त में राशन देने भर से मजदूरों को मदद नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि गरीबों को तेल, किराया जैसी चीजों के लिए भी कैश की जरूरत है।

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