न्यूज डेस्क
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अब तक पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के संक्रमण से 2 लाख 38 हजार 650 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 33 लाख 43 हजार से ज्यादा से लोग इससे संक्रमित हैं। हर दिन हजारों लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं और सैकड़ों लोग दम तोड़ रहे हैं। मौत के जो आंकड़े हैं वह जिस तरीके से इकट्ठा किए गए है उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहा है।
कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों का आंकड़ा दर्ज करने का तरीका हर देश में अलग-अलग है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इलाज और सावधानी बरतने के डब्ल्यूएचओ के प्रमाणित तरीकों की तरह आंकड़े जमा करने का भी कोई एक तरीका है। इसलिए इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है।
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वहीं कई देशों पर तो असली आंकड़े छिपाने और झूठ बोलने के आरोप भी लग रहे हैं। अमेरिका लगातार ईरान पर आंकड़े छिपाने के आरोप लगाता रहा है। चीन के आंकड़े तो दुनिया भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं। ऐसे में कोरोना से हो रही मौत का आंकड़ा सवालों के घेरे में है।
दक्षिण कोरिया, जर्मनी, स्पेन और लक्जमबर्ग में हर उस व्यक्ति को कोविड-19 के कारण मरने वालों की सूची में डाला जाता है जिसका कोरोना टेस्ट का नतीजा पॉजिटिव रहा हो। चाहे फिर उस व्यक्ति की मौत अस्पताल में हो या फिर घर में।
बेल्जियम में में तो अलग ही कहानी है। यहां आधी से ज्यादा मौतें नर्सिंग होम में हुई। यहां भी उन लोगों को उस सूची में रखा गया जिन पर कोरोना होने का शक था लेकिन उनके टेस्ट नहीं हुए थे। बिना टेस्ट के ही शक के आधार पर मौत की वजह का कारण कोरोना मान लिया गया। फ्रांस में भी एक तिहाई मौतें नर्सिंग होम में ही हुई।
चीन और ईरान में केवल उन लोगों को सूची में रखा गया जिनकी मौत अस्पताल में हुई। घर में मरने वालों का आंकड़ा इसमें शामिल नहीं किया गया।
ऐसा ही कुछ हाल ब्रिटेन का भी है। वहां ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स हर हफ्ते आंकड़े प्रकाशित कर रहा है लेकिन दस दिन पुराने। साथ ही इनमें स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड के मामलों का कोई जिक्र नहीं है।
यूरोप में सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुई, लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड दिखाते हैं कि सिर्फ बड़े वृद्धाश्रमों को ही सूची में जोड़ा गया था।
अमेरिका में, जहां दुनिया की सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं, हर राज्य का तरीका दूसरे राज्य से अलग है। उदाहरण के तौर पर न्यूयॉर्क नर्सिंग होम में मरने वालों को संख्या में शामिल करता है, जबकि कैलिफोर्निया नहीं करता। अब तक अमेरिका में मरने वालों की संख्या 65 हजार को पार कर चुकी है।
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कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा पर सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि जहां अस्पताल में मौतें हो रही हैं, वहां जरूरी नहीं कि हर मौत को सूची में जोड़ा ही जाए। ब्रिटेन, इटली, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, दक्षिण कोरिया और स्पेन ने तय किया है कि यदि मरने वाले व्यक्ति का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव रहा हो, तो उसे सूची में जोड़ा ही जाएगा, फिर चाहे मौत पहले से चल रही किसी बीमारी के कारण ही क्यों ना हुई हो।
वहीं ईरान ऐसा नहीं करता। यहां तक कि पॉजिटिव टेस्ट कर चुके व्यक्ति की मौत सांस की किसी और दिक्कत से हुई हो तो भी उसे सूची में नहीं जोड़ा जाता है।
अमेरिका में लोग शिकायत कर रहे हैं कि जब टेस्ट आसानी से उपलब्ध नहीं था, तब कई लोगों की मौत की वजह निमोनिया बताई गई और उन्हें सूची में शामिल नहीं किया जबकि निमोनिया कोरोना के कारण ही होता है।
अमेरिका में अगर मौत से पहले व्यक्ति का कोरोना टेस्ट नहीं हुआ था और डॉक्टर को कोरोना का शक है तो वह मृत्यु प्रमाणपत्र पर कोविड-19 को “संभावित कारण” बता सकता है, लेकिन इसे आधिकारिक रूप से कोरोना के कारण हुई मौतों की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता।
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स्पेन में भी मौत से पहले अगर टेस्ट नहीं हुआ था तो उसे सूची में दर्ज नहीं किया जा सकता। स्पेन का कहना है कि वह फिलहाल मौत के बाद टेस्ट करने की हालत में नहीं है। स्पेन में मार्च में न्यायिक अधिकारियों ने कॉस्टिला ला मांचा इलाके में जो आंकड़े पता लगाए, वे स्वास्थ्य अधिकारियों के आंकड़ों से तीन गुना ज्यादा थे।
जर्मनी में भी कुछ राज्यों ने मौत के बाद भी टेस्ट किए लेकिन हर राज्य के अलग नियमों के चलते ऐसे मामलों की कोई साझा सूची नहीं बन सकी।
वहीं जानकारों का कहना है कि जितनी भी तेजी से काम करने की कोशिश की जाए सटीक जानकारी जमा करने में समय लगता है। यह ठीक तरह से समझने में कई हफ्ते या कई महीने लग सकते हैं कि कितनी मौतें हुई होंगी।
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चीन के वुहान में जहां कोविड 19 का जन्म हुआ वहां शुरु के कई हफ्तों तक चीन ने संक्रमित और मरने वालों की संख्या को कम दिखाया था, लेकिन 17 अप्रैल को चीन के आंकड़े में अचानक ही 40 फीसदी का उछाल देखी गई। वुहान के 1300 और मामले जोड़े गए। सरकार ने कहा कि घर में मौत होने के कारण इन लोगों को पहले सूची में जोड़ा नहीं जा सका था।
जिस तरह से आंकड़े इकट्ठे किए जा रहे हैं उससे जो तस्वीर उभर का सामने आ रही है वह बिल्कुल जुदा है। आधिकारिक तौर पर भले ही दुनिया में अब तक दो लाख से ज्यादा लोगों की जान गई हो लेकिन असली आंकड़ा कई गुना ज्यादा हो सकता है। इस संकट के खत्म हो जाने के बाद भी शायद वैज्ञानिक एक अनुमान मात्र ही बता सकेंगे। असली संख्या हमेशा एक पहेली बनी रहेगी।
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