डॉ0 शिशिर चंद्रा
कुछ शब्द हैं जैसे- प्लम्बर, फिटर, पंप ऑपरेटर, पंप मैकेनिक, सप्लायर, राजगीर, बोर ड्रिलर, बार बाइंडर, सिंकर, स्टोन कटर, रिवेटर, हैमर मैन (यहां केवल उन्ही तरह के पेशे को लिखा जो मेरे अपने पानी के काम से सीधे जुड़े हैं, पेशे तो बहुत हैं) आदि, इनमें से कई शब्द सुने होंगे आपलोग ने।
क्या लगता है सुन के कौन है ये लोग ? हां, जाहिर है कुछ तो तकनिकी तौर पर दक्ष और कुछ मेहनतकश जैसा जान पड़ता है। पर इसके अलावा और क्या? ऐसा नहीं लगता कि ये वे लोग हैं जिनको हम आम तौर पर पुरुष के रूप में पहचानते हैं या यूं कहे कि इस तरह की भूमिकाओं में आम तौर पर पुरुष ही दिखते है।
पर अधिकांश चर्चाओं में या गावं समुदाय में लोगो से बात करें और पूंछे कि पानी का भार या पानी से संबधित जिम्मेदारी अधिकांश किसकी होती है तो साफ़ तौर पर उत्तर मिलता है महिलाओं की। सुबह से लेकर रात होने तक पानी से संबधित जितने भी काम होते हैं जैसे पीने का पानी भरना, बर्तन धोना, कपड़े साफ़ करना, पोछा/धुलाई करना, खाना बनाना, बच्चों को नहलाना तैयार करना आदि, उसमें अधिकांश महिलायें ही लगी रहती हैं।
तो सवाल है कि फिर पुरुष कहां होते? होते हैं न, आम तौर पर दो ख़ास जगहों पर, एक तो ऐसी जगह जहां प्रायः समय बिताने के लिए होते है जैसे चाय की दुकान पर, ताश के फड़ पर, चौराहे चट्टी पर आदि और एक कुछ ख़ास जगहों पर जैसे खेत में, बाजार में और ऊपर दिए गए सूची के आधार पर अलग अलग काम पर (काम की जगह तो बहुत हैं पर यहां केवल पानी से संबधित काम को ही लिया है लेखक ने)।
पर क्या गौर किया है कि पुरुष घर में आम तौर पर किस भूमिका में होते हैं। ? या अभी विषय अनुरूप कहे कि घर के अंदर पानी से संबधित किस तरह के काम की भूमिका में होते है? शायद उतना नहीं जितना महिलाएं और शायद नहीं, शत प्रतिशत उतना नहीं जितना महिलायें। तो फिर ये भला क्या बात हुई कि घर से बाहर पानी से संबधित जितने काम हैं उनमें अधिकांश बहुतायत संख्या में पुरुष ही दिखते हैं और घर के अंदर पानी से संबधित जितने काम हैं उनमें महिलाये ही दिखती हैं?
अगर मार्कसिष्ट नारीवादी उपागम (Marxist feminist perspective) के जरिये से देखे तो साफ पता चलेगा कि पुरुष समाज अधिकांश ऐसे समस्त जगहों, काम आदि में जुड़ा हुआ होता है जहां अर्थ (पैसा/संसाधि) होता है, जहां उसका मूल्य होता है. चूंकि घर के बाहर उपरोक्त तमाम कामो में अर्थ जुड़ा है, मूल्य जुड़ा है
अतः बड़ी आसानी से हम पुरुषों को अधिकांश वहां पाएंगे पर चूंकि घर के अंदर काम का कोई मूल्य नहीं होता (हालांकि लेखक का इसपर भी तर्क है, फ़िलहाल यहां नहीं), कोई सीधे तौर पर लाभ (अर्थ के रूप में) नहीं दिखता अतः पुरुष समाज अधिकांश घर के काम में उतना जुड़ता नहीं और ये प्रायः महिलाओं का काम बनकर रह जाता है, महिलाओं की जिम्मेदारी बन कर रह जाती है, और प्रायः इसीलिए महिलाओं के काम का ख़ास तौर पर घर के अंदर उनका मूल्य शून्य बनकर रह जाता है। पेशेवर
खैर, ये बात तो साफ़ है कि घर के काम वो भी पानी से सबंधित काम तो प्रायः महिलाओं की ही जिम्मेदारी बन गई है। पर आज जो समय बदला है जो किसी ने कभी नहीं सोचा होगा, एक छोटे से (परन्तु प्राण घातक) वायरस ने लगभग सारे पुरुष समाज को घर के अंदर रहने पर विवष कर दिया।
अब जब घर के अंदर पुरुष है वो भी इतने समय तक जिसकी उसको आदत नहीं थी तो जाहिर तौर पर कुछ अस्वभाविक तो देखने को मिलेगा ही। अभी हाल ही में कुछ चौकाने वाले मामले भी आये हैं, जैसे घरेलु हिंसा के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़े हैं जिसे महिला आयोग ने उजागर भी किया है, बाल यौन हिंसा के मामले चाइल्ड हेल्प लाइन पर अप्रत्याशित रूप से दर्ज किये गए हैं।
पर वहीं कुछ सुखद सन्देश भी मिल रहे हैं, बातचीत से ये भी सुनने देखने को मिल रहा है कि पुरुष घर के अंदर के काम में बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग कर रहे है, अपने साथी, अपनी मां ,बहन, भाभी बुआ आदि के काम में हाथ बटा रहे हैं।
और नित नए गुण और घर के काम सीख रहे हैं, जो कई मायने में बहुत अच्छा है और साथ ही उन्हें ये भी ज्ञात होता जा रहा है कि घर के काम आसान नहीं होते और किसी अन्य काम (जिसमे पैसा मिलता है) से कमतर भी नहीं।
पर क्या ये कल भी जब लॉकडाउन ख़त्म हो जायेगा तब चलेगा? क्या पुरुष समाज कल भी घर के काम की जिम्मेदारी साझा करेंगे? ‘घरेलु पुरुष’ ये शब्द क्या बुरा लगेगा पुरुष साथियों को? या उनका पद, सम्मान, पैसा छिन्न जाएगा?
या केवल प्लम्बर, फिटर, पंप ऑपरेटर, पंप मैकेनिक, सप्लायर आदि पेशेवर शब्द ही सुनना पसंद करेंगे (मैंने पहले भी कहा, पेशा कुछ भी हो सकते है पर मैंने केवल पानी से सम्बंधित पेशे ही चुने है अपनी बात रखने हेतु)।
हां मुश्किल तो होगी, बाहर से काम करके घर आकर घर के काम में भी हिस्सेदार बनने में घर के काम में हाथ बटोरने में। आराम कब कर पाएंगे, अगले दिन के लिए तैयार कैसे होंगे? फिर वहीं मै सोचता हूं कि ऐसी बहुत सारी महिलायें हैं जो बाहर काम पर जाती हैं।
अपने ऑफिस में ही देख लीजिये, तो क्या वो घर पर कुछ नहीं करती, हो सकता है कि घर पर कोई काम करने वाली बाई या काम करने वाला सहायक हो पर क्या उन महिलाओं को कुछ भी घर का काम नहीं करना होता घर वापस जाकर?
शायद ऐसा नहीं है, अधिकांश महिलायें जो बाहर काम पर जाती है उन्हें अपने घर पर भी उतना ही समय और ऊर्जा घरेलु काम बच्चों के देखभाल आदि में देनी होती है, और कई ऐसी रिपोर्ट और अध्ययन है कि ऐसी महिलाओं पर काम का दोहरा बोझ होता है।तो क्या हम पुरुष भी कल जब लॉकडाउन ख़त्म हो जायेगा तो ऑफिस के बाद घर के काम में साझेदारी नहीं निभा सकते? मै तो बस पानी से सम्बंधित ही काम बोल रहा हूं, उतने भर की जिम्मेदारी पुरुष साथी अपने ऊपर ले लें तो महिलाओं का आधा काम का बोझ अपने आप कम हो जायेगा।
लॉक डाउन को, कोविड-19 के प्रकोप को ऐसे भी तो देखा जा सकता है। क्या प्रकृति ने पुन समाज को समता मूलक समाज बनाने का एक मौक़ा नहीं दिया हम पुरुषों को? एक बेहतर समाज, समानता के साथी परक समाज, दहंसा मुक्त समाज हेतु नव निमााण के लिए इससे बेहतर समय कोई और हो ही नहीं सकता।