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पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी नहीं हैं आदिवासी

न्यूज डेस्क

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की मुश्किलें उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति की रिपोर्ट आने के बाद बढ़ गई हैं। उनकी विधायकी पर खतरा मंडरा रहा है। जोगी आदिवासी आरक्षित मारवाही सीट से विधायक हैं।

दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री अजीज जोगी के कंवर आदिवासी होने के प्रमाण पत्र को उच्च स्तरीय ‘प्रमाणीकरण छानबीन समिति’ ने खारिज कर दिया है। 27 अगस्त को राज्य के वरिष्ठï अधिकारियों ने बताया कि छानबीन समिति ने पाया कि अजीत प्रमोद कुमार जोगी अपने कंवर अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने के दावे को साबित करने में असफल रहे हैं।

अधिकारियों के मुताबिक, ‘छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (सामाजिक प्रास्थिति के प्रमाणीकरण का विनियमन) अधिनियम 2013’ के अधीन नियम 2013 के उपनियम 23 (2) में विहित प्रावधान के अनुसार जोगी के पक्ष में जारी किये गये ‘कंवर’ अनुसूचित जनजाति के जाति प्रमाण पत्रों को निरस्त कर दिया गया है।

गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में पूर्व मुख्यमंत्री जोगी की जाति की छानबीन के लिए उच्च स्तरीय ‘प्रमाणीकरण छानबीन समिति’ का गठन करने का निर्देश दिया था। उस वक्त छानबीन समिति ने जोगी को जारी कंवर अनुसूचित जनजाति से संबंधित जाति प्रमाण पत्र को विधि संगत नहीं पाया था। जिसके बाद जोगी की जाति प्रमाण पत्रों को जून 2017 में निरस्त कर दिया गया था।

राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक समिति के आदेश के खिलाफ जोगी ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर में रिट याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने इस मामले में छानबीन समिति का आदेश निरस्त करते हुए एक बार फिर समिति का गठन करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद राज्य शासन ने फरवरी वर्ष 2018 में समिति का पुनर्गठन किया था।

उन्होंने बताया कि आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग के सचिव डीडी सिंह की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति ने जोगी को जारी जाति प्रमाण पत्र को निरस्त करने का आदेश दिया है।

इस आदेश के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इस मामले को लेकर न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया है। 27 अगस्त को पत्रकारों से बातचीत में जोगी ने कहा कि अभी उन्हें विधिवत रुप से निर्णय की कॉपी नहीं मिली है। उनका मानना है कि यह निर्णय भूपेश बघेल उच्च स्तरीय छानबीन समिति का निर्णय है।

जोगी ने कहा कि जब तक वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, तब तक उनके खिलाफ यह मामला नहीं उठा। राजनीति में आने के बाद यह मामला सामने आया। उन्होंने कहा कि जब वह राज्यसभा के लिए चुने गए तब उनकी जाति का मुद्दा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के इंदौर बैंच के समक्ष आया। उनके पक्ष में इंदौर, जबलपुर तथा बिलासपुर उच्च न्यायालय से छह बार फैसले आए हैं।

भाजपा पर निशाना साधते हुए जोगी ने कहा कि उनके खिलाफ भाजपा के नेता रहे दिलीप सिंह भुरिया कमेटी ने रिपोर्ट दी थी। उसके बाद रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में दो बार रिपोर्ट आई। मैं तब से अब तक न्यायालय में इन फैसलों को चुनौती देते रहा हूं और अब पुन: मैं इस मामले को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय तक चुनौती दूंगा।

गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति का विवाद लगभग दो दशकों पुराना है। 2001 में भारतीय जनता पार्टी के नेता संत कुमार नेताम ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग से जोगी की जाति को लेकर शिकायत की थी। नेताम के अनुसार जोगी ने फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर स्वयं को आदिवासी बताया है।

वहीं भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता और वर्तमान में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय ने इस मामले को लेकर न्यायालय में परिवार दायर किया था। बाद में यह मामला उच्चतम न्यायालय चला गया।

वर्ष 2011 में न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि जाति की छानबीन के लिए हाई पावर कमेटी बनाई जाए और वह अपना फैसला दे। उसके बाद रमन सिंह सरकार ने आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग की विशेष सचिव रीना बाबा साहेब कंगाले की अध्यक्षता में जाति प्रमाण पत्र उच्चस्तरीय छानबीन समिति का गठन किया था।

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