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19 महीने में छानी 1000 गाँव की ख़ाक और ढूंढ निकाली अपनी बिछड़ी हुई लीला

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

नई दिल्ली. केदारनाथ त्रासदी में अपनी पत्नी से बिछड़ गए अजमेर के विजेंद्र सिंह राठौड़ को लोगों ने खूब दिलासा दिया, तेज़ लहरों में पत्नी के बह जाने की खबर जिसने भी सुनी वह विजेंद्र को समझाने और उनके कंधे पर हाथ रखने आया लेकिन विजेंद्र को यह भरोसा था कि उनकी पत्नी से उनकी इसी ज़िन्दगी में मुलाक़ात होगी.

अपनी पत्नी की तस्वीर लेकर गाँव-दर गाँव की ख़ाक छानते हुए विजेंद्र करीब एक हज़ार गाँव से गुज़रे लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन थामे रखा. 19 महीनों की लगातार कोशिशों के बाद आखिरकार विजेंद्र की मेहनत रंग लाई और उन्हें अपनी पत्नी लीला मिल गईं. कोशिशों से अपनी उम्मीद को सच साबित कर देने वाले विजेंद्र की कहानी पर सिद्धार्थ राय कपूर ने फिल्म बनाने का फैसला किया है.

मामला 2013 का है. ट्रेवल एजेंसी में काम करने वाले विजेंद्र अपनी पत्नी लीला के साथ चार धाम की यात्रा पर निकले थे. वह केदारनाथ में एक लाज में रुके थे. वह अपनी पत्नी को लाज में छोड़कर किसी काम से कहीं चले गए. वापस लौटे तो हर तरफ कोहराम मचा था. उफनता हुआ पानी केदारनाथ को बुरी तरह से घेर चुका था. जिस लाज में वह पत्नी को छोड़कर गए थे वहां दूर-दूर तक सिर्फ पानी था. सब कुछ पानी में बह गया था.

इस तबाही के बाद विजेंद्र को सबने दिलासा दिया लेकिन विजेंद्र को उम्मीद थी कि उनकी पत्नी उनसे बिछड़ नहीं सकतीं. इस घटना के बाद अपने पर्स में रखी तस्वीर लेकर वह उनकी तलाश में जुट गए. जिसे भी तस्वीर दिखाते, न में जवाब मिलता लेकिन वह 19 महीने तक इसी काम में जुटे रहे. हालात को देखते हुए सरकार ने भी लीला को मृत घोषित कर दिया. सरकार ने उन्हें फोन कर मुआवजा लेने को कहा लेकिन विजेंद्र ने यह मानने से ही इंकार कर दिया कि उनकी पत्नी की मौत हुई है, फिर मुआवजा क्यों लें.

19 महीनों तक 1000 गाँव की ख़ाक छानने के बाद अंतत: 27 जनवरी 2015 को उत्तराखंड के गंगोली गाँव में एक राहगीर ने लीला की तस्वीर पहचान ली. उसने बताया कि इस औरत की मानसिक हालत ठीक नहीं है. यह गाँव में घूमती रहती है. विजेंद्र उस राहगीर के साथ उसके गाँव पहुंचे तो एक चौराहे पर लीला बैठी हुई नज़र आई. लीला विजेंद्र को पहचान नहीं पाई. विजेंद्र अपनी पत्नी से मिलकर खूब रोये और उन्हें लेकर अपने घर लौट आये.

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