Sunday - 7 January 2024 - 8:50 AM

किसान आंदोलन : आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाएं हुई शामिल

जुबिली न्यूज डेस्क

किसान आंदोलन की धार कुंद करने के लिए केंद्र सरकार तमाम तरीके अपना रही है तो वहीं आंदोलन को धार देने के लिए कर्ज से तंग आकर कथित तौर पर ख़ुदकुशी करने वाले किसानों की विधवाओं समेत सैंकड़ों महिलाएं बुधवार को प्रदर्शनों में शामिल हुई।

मोदी सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में शामिल होने वाली इन महिलाओं का कहना है कि इन नए क़ानून की वजह से उनकी आजीविका पर खतरा मंडराने लगा है।

सितंबर में लागू किए गए इस कानून को लेकर देश भर के किसान लगभग एक महीने से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन कानूनों में कृषि क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त बनाने की बात है और ये किसानों को सरकारी थोक बाजारों से अलग अपनी फसल खरीददारियों को बेचने की अनुमति देता है।

दरअसल छोटे किसानों को डर है कि इससे उनकी फसलों के लिए मिलने वाली न्यूनतम कीमतों की गारंटी खत्म जाएगी और उन्हें बड़े खुदरा विक्रेताओं की दया का मोहताज होना पड़ेगा।

दिल्ली सीमा पर स्थित एक प्रदर्शन स्थल पर पंजाब से आईं एक 40 वर्षीय विधवा महिला हर्षदीप कौर ने कहा, “अगर ये काले कानून आते हैं तो और किसान कर्ज के बोझ में दबते जाएंगे और भी माएं और बहनें मेरी तरह विधवा हो जाएंगी।”

भारत में किसानों की खुशकुशी सालों से एक गंभीर समस्या रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2018 में करीब 10,350 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने ख़ुदकुशी की, जो भारत में हुई सभी आत्महत्याओं का करीब 8 प्रतिशत था।

हर्षदीप कौर ने कहा कि उनके पति ने तीन साल पहले ख़ुदकुशी कर ली थी। अपने पति की पासपोर्ट साइज फोटो लिए वो कहती हैं कि उनके पति पर पांच लाख रुपये का कर्ज हो गया था।

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मालूम हो कि बुधवार देर शाम एक 65 वर्षीय सिख संत ने एक प्रदर्शन स्थल पर ख़ुदकुशी कर ली। संत बाबा राम सिंह ने अपने सूसाइड नोट में लिखा कि वो “प्रदर्शनकारी किसानों की हालत देखकर आहत हैं।”

सिंह की आत्महत्या के लिए सरकारी उदासीनता को जिम्मेदार ठहराते हुए विपक्षी नेता राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को तुरंत कानून रद्द करने चाहिए।

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को आश्वास्त करने की कोशिश की करते हुए कहा था कि बदलाव उनके लिए नई संभावनाएं पैदा करेंगे, लेकिन बहुत कम ने उनकी बात पर यकीन किया। किसान यूनियन के नेताओं और सरकार के बीच हुई कई दौर की बातचीत विफल रही है।

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