केपी सिंह
समाजवादी पार्टी के समय एक नारा विरोधियों ने चलाया था खाली प्लाट हमारा है, समाजवाद का नारा है। फिल इन द ब्लैंक की पहेली बुझाते हुए अगर समाजवाद हटाकर यह नारा दोहराया जाये तो शायद अब लोग मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी की पुलिस की ओर इशारा करते हुए इसे भर देगें।
समाजवादी पार्टी के समय सत्तारूढ़ पार्टी के संरक्षण प्राप्त गुंडे खाली प्लाट तो क्या बने-बनाये भवनों में भी धड़ल्ले से घुसकर कब्जा जमा लेते थे क्योंकि उनके खिलाफ सैंया भये कोतवाल डर काहे का की भावना के चलते सरकार का वरदहस्त होने की वजह से किसी तरह की कार्रवाई की गुंजाइश नही रहती थी।
समाजवादी पार्टी सबसे ज्यादा अगर बदनाम हुई तो इन्हीं कब्जों के कारण भले ही इनमें अखिलेश की मंशा नही रही थी लेकिन साढ़े तीन वर्ष तक उन पर हावी रहे उनके अंकल ने अकेला यही एक काम कराया है। जिसने चुनाव में अखिलेश की सारी नेकियों पर पानी फेर दिया।
वर्तमान सरकार इस मुददे की महत्ता से परिचित थी इसलिए योगी ने शपथ लेने के बाद अपने भाषणों में सर्वोपरि जोर इन कब्जों को खाली कराने और इनके लिए जिम्मेदार गुंडों को जेल भिजवाने की बात करते हैं। यह दूसरी बात है कि योगी को भी लगभग साढ़े तीन वर्ष हो चुके हैं लेकिन उन्होंने अपने इस वायदे को अमली जामा पहनाने के नाम पर केवल बाते ही दिख रही हैं।
ज्यादातर कब्जे वैश्य समाज से जुड़े भाजपाइयों पर हुए थे। जिनकी पीढि़यां संघ के प्रचारकों की दाल रोटी का इंतजाम कर गुजर चुकी थीं। अवैध कब्जे का शिकार बनते समय गुंडों ने उनका धन भी छीना और धर्म भी। लोगों का तो ये भी कहना है कि सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा उत्तर प्रदेश में सवर्णों के साथ भी पूरी तरह नही निभा रही अन्यथा वैश्य समाज का तिरस्कार न होता।
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हाल में जब ओपी सिंह के सेवानिवृत्त होने के समय उनके उत्तराधिकारी के नामों पर विचार हो रहा था तो मुकुल गोयल जैसे अफसर नजर अंदाज कर दिये गये जबकि उन्हें एक दर्जन के लगभग जिलों में सफल पुलिस कप्तानी और एडीजी लॉ-एण्ड-आर्डर रहने का अनुभव प्राप्त है। हालांकि प्रदेश सरकार ने अच्छा किया जो अपनी ईमानदार छवि के लिए विख्यात हितेश चंद्र अवस्थी को ही कार्यवाहक डीजीपी से परमानेंट डीजीपी नियुक्त कर दिया। महीने भर तदर्थ व्यवस्था के कारण ढुलमुल रही प्रदेश की पुलिस व्यवस्था में अब कुछ तेजी आयेगी। यह भी कहना होगा कि इस एक महीने में भी बड़बोले बयानों को लोगों ने भले ही न सुना हो लेकिन वास्तविक पुलिसिंग ओपी सिंह के समय से फिर भी बेहतर रही।
बहरहाल यहां जो मुददा जेरे बहस है वह अवैध कब्जों का है। यह सही बात है कि भाजपा के शासनकाल में सत्तारूढ़ पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इसमें इनवॉल्व नही है क्योंकि उनकी स्थिति तो अपनी सरकार में प्रशासन और पुलिस पर हनक के दृष्टिकोण से दयनीय बनी हुई है। दूसरी ओर पुलिस खुद जमीन पर कब्जा करने वाले माफिया गिरोहों की सरगना बन गई है भले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यान इस ओर न जा पाया हो। उनके ध्यान में बहुत सी बातें नही आ पाती लेकिन इसका जिम्मेदार कोई और नही वे खुद हैं जबकि बदनामी उन्हें झेलनी पड़ती है इसलिए उन्हें निजी तौर पर सभी चीजों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
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दरअसल योगी आदित्य नाथ महंत टर्नड रूलर हैं जिसके कारण उनका ऐसी विसंगति का शिकार होना स्वाभाविक है। महंत के सामने उसकी कोई कमी बताना बेअदबी माना जाता है। न तो भक्त ऐसा कर सकता है और न ही महंत जी इतने सदाशय हो सकते हैं कि अपने शासन की किसी कमी को सुन सकें। यह सीमा, दायरा योगी आदित्य नाथ के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।
अपने सीएम की इस कमजोरी का लाभ उठाकर उत्तर प्रदेश में खाकी मनमानी के मामले में शेर हो गई है। इसलिए जिलों-जिलों में अवैध कब्जा कराने का ठेका खुद पुलिस ने ले लिया है। इसमें थाना प्रभारी से लेकर अधिकारी तक शामिल हैं। आश्चर्य की बात यह है कि भूमि विवाद के मामलों में पुलिस को सीधे हस्तक्षेप को कोई अधिकार नही होना चाहिए। लेकिन उसने राजस्व विभाग को बाईपास कर रखा है। पुलिस जिस पर मेहरबान है प्रापर्टी के विवादों में उसे मीर बनाने के लिए वह अपनी शक्तियों का नंगा दुरुपयोग कर रही है। पुलिस की ऐसे मामलों में इकतरफा भूमिका के चलते थानों में शनिवार को आयोजित होने वाले समाधान दिवस अर्थहीन हो गये हैं। लोग फरियाद करने तक नही आते।
वैसे अकेले थाना दिवस की नही शासन के कार्यक्रम के अंतर्गत चलाये जा रहे सभी दिवसों की हालत कमोवेश एक जैसी है। संपूर्ण समाधान दिवस की शिकायतों का निस्तारण भी केवल कागजों पर रह गया है। मुख्यमंत्री के हैल्प लाइन नंबर से प्राप्त शिकायतों के निस्तारण में भी फर्जी रिपोर्ट दाखिल करके अधिकारी इनाम हासिल कर रहे हैं। वजह यह है कि योगी को यह सब सुहाता है। उन्हें पीडि़त की बार-बार शिकायत भी बेअदबी लगती है। प्रदेश सरकार की विश्वसनीयता इसके चलते निम्नतम बिंदु पर पहुंच गई है।
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पुलिस या किसी भी विभाग में कर्मचारियों और अधिकारियों की बढ़ती हैसियत के सर्वे की कोई व्यवस्था नही है। अन्यथा मालूम हो जाता कि पिछले साढ़े तीन वर्षों में जो वैभव सरकारी अमले में शामिल लोगों ने जुटाया है वह पहले कभी नसीब नही रहा था। देश आर्थिक मंदी का शिकार हो रहा है और चंद सालों की नौकरी में उत्तर प्रदेश के पुलिस दरोगा गोमती नगर में आलीशान बंगला बनवा रहे हैं और सिपाही लाखों रुपये की कीमत वाले लग्जरी वाहन अफोर्ड कर रहे हैं।
आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग को गोमती नगर व प्रदेश की राजधानी की अन्य पॉश कालोनियों और नोयडा में प्लाट, फ्लैट की व्यवस्था करने वाले पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के नामों की रिपोर्ट उच्च स्तर पर करने के लिए लगाया जा सकता है लेकिन सरकार कमजोर रवैया प्रदर्शित कर रही है। लोकतंत्र है, कहने को आम लोगों के जो कि बहुसंख्यक हैं के वोटों से सरकारें बनतीं हैं और बिगड़ती है। सरकार के असली भाग्य विधाता तो प्रशासन और पुलिस के लोग हैं। जिनकी नाराजगी मोल लेने का मतलब इंद्रासन को गंवाना हैं। सरकार की इस गलतफहमी को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश में क्या कोई सिविल सोसाइटी सामने आयेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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