Thursday - 11 January 2024 - 8:29 AM

क्या कन्फ्यूज़न की डगर पर चलकर किला फतह करना चाहती है बीजेपी

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी डगर आसान किसी के लिए भी नहीं है न बीजेपी के लिए और न ही सपा-रालोद गठबंधन के लिए. बीजेपी इस इलाके में हिंदुत्व की धार तेज़ कर माहौल अपने मुताबिक़ करके दिखा चुकी है लेकिन किसान आन्दोलन के बाद इस इलाके में एक तरफ बीजेपी का विरोध बढ़ा है तो दूसरी तरफ जयंत चौधरी की किसानों के साथ अच्छे रिश्तों की शुरुआत भी हुई है.

किसान आन्दोलन के दौरान दिल्ली में निकाली गई ट्रैक्टर रैली के दौरान जिस तरह से आन्दोलन अचानक से बैकफुट पर आया था उसमें इस आन्दोलन के खत्म हो जाने पर कोई संदेह नहीं बचा था लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत की आँखों से निकले आंसुओं ने अचानक से माहौल बदल दिया था. बड़ी संख्या में किसानों की वापसी तो हुई ही थी साथ ही जयंत चौधरी भी दिल्ली बार्डर पर पहुँच गए थे. जयंत चौधरी इसके बाद किसानों की पंचायतों में भी शामिल हुए और किसानों के साथ ही बने रहे.

किसान आन्दोलन के बाद बीजेपी को हालात अपने पक्ष में बनाने का समय नई मिल पाया और चुनाव करीब आ गए. जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और यह साफ़ तौर पर दिखाई देने लगा कि पश्चिमी यूपी से बीजेपी पूरी तरह से साफ़ हो जायेगी.

यही वजह है कि बीजेपी की टॉप लीडरशिप लगातार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनसम्पर्क में लगी है. केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह रोजाना जयंत चौधरी को लेकर बात कर रहे हैं और लोगों के बीच यह संदेह पहुंचाने का काम कर रहे हैं कि चुनाव के बाद जयंत चौधरी बीजेपी के पाले में खड़े हो जायेंगे और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे.

जयंत चौधरी के बारे में संदेह का कीड़ा दौड़ा देना कोई बहुत मुश्किल काम इसलिए नहीं है क्योंकि जयंत के पिता अजित सिंह अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह दोनों की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. बीजेपी को यह बात बहुत अच्छी तरह से पता है कि किसान आन्दोलन की वजह से बीजेपी को सबसे ज्यादा नुक्सान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाला है लेकिन अगर जयंत चौधरी को लेकर लोगों में यह संदेह चला गया कि चुनाव के बाद जयंत गठबंधन तोड़कर बीजेपी में जायेंगे तो इसका एक बड़ा नुक्सान गठबंधन को उठाना पड़ सकता है. बीजेपी अपने इसी अभियान में लगी हुई है.

बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हर पैटर्न का अध्ययन किया है. उसे मालूम है कि यह जाट और मुस्लिम कम्बीनेशन वाला इलाका है. 2013 में हुए मुज़फ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी ने हिंदुत्व की पिच पर जो खेल खेला था वह बड़ा कामयाब खेल था. 2019 में भी 91 फीसदी जाट वोट बीजेपी को मिला था लेकिन किसान आन्दोलन के बाद माहौल पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ और जयंत चौधरी के पक्ष में चला गया. यहाँ का वोटर किसानों को छोड़कर कहीं जाने वाला नहीं है. किसान आन्दोलन के दौरान हुई जाटों की महापंचायतों ने बीजेपी के सामने पूरा समीकरण सामने रख दिया था लेकिन बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को आसानी से छोड़ भी नहीं सकती क्योंकि सत्ता का रास्ता तो यहीं से होकर लखनऊ की तरफ जाता है. यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खोई हुई अपनी ज़मीन को हासिल करने के लिए बीजेपी लगातार अपने प्रचार से ज्यादा जयंत चौधरी को लेकर मतदाताओं में कन्फ्यूज़न पैदा करने का काम कर रही है.

बीजेपी बार-बार जयंत चौधरी की तरफ चारा फेंक रही है. उसका इंटरेस्ट यह नहीं है कि जयंत गठबंधन तोड़कर बीजेपी से मिल जाएं. वह बस उनके बारे में कन्फ्यूज़न पैदा करना चाहती है. मतदाताओं को लगातार यह बताना चाहती है कि उनके पिता अजित सिंह अपने फायदे के लिए कभी कांग्रेस और कभी बीजेपी के साथ जाते रहे हैं. जयंत भी यही करेंगे. बीजेपी को पता है कि एक बार लोगों के दिमाग में जयंत चौधरी को लेकर शक का कीड़ा घुस गया तो बीजेपी की वापसी आसान हो जायेगी.

बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिन्ना, पाकिस्तान और हिन्दू-मुसलमान का कार्ड खेलकर वोटों के ध्रुवीकरण का काम भी शुरू कर दिया है. अमित शाह लगातार मुज़फ्फरनगर दंगे की याद दिलवा रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मुज़फ्फरनगर दंगे में 60 हिन्दुओं की मौत और 1500 हिन्दुओं के जेल जाने की बात कही है. योगी ने लोगों से साफतौर पर कहा है कि सपा सत्ता में आई तो एक बार फिर दंगे शुरू हो जायेंगे. बीजेपी ने क़ानून व्यवस्था को सख्त बना रखा है. गुंडे बदमाशों पर अंकुश लगा रखा है.

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