Sunday - 7 January 2024 - 5:53 AM

फिर उठी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग

न्यूज डेस्क

भाजपा नेता अक्सर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग करते रहते हैं। सदन में भी कई बार जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग की गई है, लेकिन अब तक केंद्र सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठायी है। एक बार फिर देश में बढ़ती आबादी और घटते संसाधन के मद्देनजर प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग शुक्रवार को राज्यसभा में उठी।

बीजेपी के हरनाथ सिंह यादव ने शून्यकाल के दौरान राज्यसभा में यह मांग करते हुये कहा कि जनसंख्या विस्फोट के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ा है जिसके कारण न सिर्फ बेरोजगारी बढ़ी है बल्कि हर स्थान पर भीड़ ही भीड़ दिखती है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1951 में देश की आबादी 10 करोड़ 38 लाख थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 121 करोड़ के पार पहुंच गयी है। यादव ने कहा कि ऐसा अनुमान है कि देश की जनसंख्या वर्ष 2025 तक बढ़कर 150 करोड़ के पार हो जायेगी।

उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना चाहिए जो ‘हम दो हमारे दो’ पर आधारित हो और इसका पालन नहीं करने वालों को हर तरह की सुविधाओं से न सिर्फ वंचित किया जाना चाहिए बल्कि उन्हें किसी भी प्रकार के चुनाव लडऩे से भी रोका जाना चाहिए।

गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई माह में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि हिंदू-मुस्लिम दोनों के लिए दो बच्चों का नियम होना चाहिए और जो इस नियम को न माने उसका वोटिंग का अधिकार खत्म कर देना चाहिए। इसके अलावा यह भी चर्चा थी कि सरकार राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल भी ला सकती है।

उस समय गिरिराज सिंह के बयान और प्राइवेट मेंबर बिल के बाद से ऐसी चर्चा हुई थी कि बीजेपी और संघ अब नियंत्रण को बड़ा एजेंडा बनाकर पेश करने की तैयारी कर रहा है, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ हुआ नहीं है।

 

भाजपा सांसदों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कानून के मांग पर विपक्षी दल भी विरोध करने से बचते रहे हैं। दिलचस्प बात है कि विपक्ष भी इस मुद्दे पर अब तक जनसंख्या वृद्धि को चिंता बताते हुए इसके नियंत्रण के लिए प्रस्तावित कानून का विरोध नहीं कर रहा है।

ऐसा नहीं है कि बीजेपी सांसदों ने पहली बार इस तरह की मांग की है। इसके पहले भी राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में सुधार करने की मांग उठ चुकी है लेकिन शीर्ष नेतृत्व चुप्पी साधे रहा। दिसंबर 2017 में लोकसभा में भाजपा सांसदों ने मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में सुधार कर, दो संतान नीति को लागू किया जाए।

कोडरमा से भाजपा सांसद रविन्द्र कुमार ने कहा था कि जिस परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हो उसे सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए।

वहीं सहारनपुर से भाजपा सांसद राघव लखनपाल ने मांग की थी कि अगर किसी परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हैं तो दूसरी संतान के बाद बच्चों को सरकारी नौकरी, अनुवृत्ति से वंचित किया जा। इसके साथ-साथ उस संतान पर चुनाव लड़ने पर भी रोक हो। इतना ही नहीं लखनपाल ने जनसंख्या विनियमन के लिए एक अतिरिक्त मंत्रालय की मांग भी की थी।

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भाजपा के निचले और मध्य क्रम के नेता अलग-अलग मौकों पर जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो संतान नीति की मांग करते रहे हैं। हमेशा से भाजपा का यह मत रहा है कि मुस्लिम समाज की जनसंख्या वृद्धि दर, देश की जनसंख्या वृद्धि दर से बहुत अधिक है। भाजपा ये आरोप लगाती रही है कि इस विसंगति के कारण देश के कई जनपदों में मुस्लिम जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक हो गई है या 50 प्रतिशत के निकट पहुंच गई है।

भाजपा नेताओं का तर्क है कि इस जनसंख्या परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों में कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे हालत पैदा हो जाएंगे। अपनी चुनावी रैलियों में भाजपा जोर-शोर से कहती है कि यदि यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो 2055-2060 तक भारत में मुस्लिम समाज बहुसंख्यक बन जाएगा।

कई जनपदों में दिख रहा है परिवर्तन

राजनीति छोड़ अगर हम केवल आकड़ों पर जाएं तो देश के कई जनपदों में जनसंख्या परिवर्तन साफ तौर पर नजर आता है। देश में जनसंख्या विसंगति एक सच्चाई है, जिसे हम नकार नहीं सकते हैं। भाजपा के कुछ नेता बीच-बीच में इस मुद्दे को उठाते तो हैं पर उनकी कोई दूरगामी नीति नहीं है।

देश की अधिकांश समस्याएं बढ़ती जनसंख्या की वजह से हैं। रोजगार से लेकर शिक्षा, हर जगह भीड़ है। बेरोजगारी चरम पर है तो इसका कारण नौकरी की कमी होने के साथ बेरोजगारों की संख्या है। इस देश में मैन पावर तो हैं लेकिन काम नहीं है।

जनसंख्या नियंत्रण को लेकर मुखर होता रहा है संघ

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कई बार मुखर होता रहा है। आरएसएस की कार्यकारिणी मंडल में जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण करने का प्रस्ताव भी पास किया जा चुका है।

इस नीति को सभी पर समान रूप से लागू करने की बात संघ करता रहा है। पिछले साल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि अगले 50 साल के हिसाब से नीति बने। सब पर समान रूप से लागू किया जाए, किसी को छूट न हो। जहां समस्या है वहां पहले उपाय हो।

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