जुबिली न्यूज डेस्क
तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का 90वां जन्मदिन हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बड़े हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर दुनियाभर से आए अनुयायियों और श्रद्धालुओं के बीच भारत सरकार के शीर्ष नेता, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी मौजूद रहे। कार्यक्रम को करुणा, अहिंसा और मानवता के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
दलाई लामा को बताया मानवता का मार्गदर्शक
केंद्रीय मंत्री किरें रिजिजू ने समारोह में बोलते हुए कहा:“दलाई लामा आज के युग में करुणा, शांति और मानवता का जीवंत प्रतीक हैं। उनका जीवन दुनिया के लिए एक प्रेरणा है। भारत सरकार की ओर से मैं उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।”
उन्होंने कहा कि भारत और तिब्बत के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे हैं। दलाई लामा द्वारा अपनाई गई बौद्धिक और कूटनीतिक शिक्षाएं, भारतीय संस्कृति और शासन के लिए भी उपयोगी रही हैं।
रिजिजू ने कहा:“मेरा कार्यालय तिब्बती लोगों की मदद के लिए हमेशा खुला है। तिब्बती समुदाय भारत की प्रगति में सहभागी रहा है, और हम उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
“दलाई लामा का हर निर्णय हम सबका पथ प्रदर्शक”: रिजिजू
उन्होंने एक भावुक बयान में कहा:“बतौर अनुयायी मैं यह स्पष्ट करता हूं कि परम पावन दलाई लामा जो भी निर्णय लेंगे, हम सभी उसे पूरी निष्ठा के साथ मानेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि तिब्बती प्रशासन द्वारा 2025 को “ईयर ऑफ कंपैशन” के रूप में मनाने के फैसले का भारत सरकार स्वागत करती है।
दलाई लामा की शिक्षाओं ने नीति-निर्माण को दी दिशा
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा:“दलाई लामा की करुणा और अहिंसा की शिक्षाएं हमारी शासन-नीति का मार्गदर्शन करती हैं। आज की दुनिया, जो संघर्ष और ध्रुवीकरण से जूझ रही है, वहां दलाई लामा का आंतरिक शांति का संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने मूल्य-आधारित शिक्षा और नैतिक जीवन को बढ़ावा देने के लिए जो पहल की हैं, वे दलाई लामा की सोच से प्रेरित हैं। मठवासी शिक्षा हो या सामाजिक समरसता – सभी पर उनका गहरा प्रभाव रहा है।
वैश्विक सम्मान और भारत का गौरव
दलाई लामा ने वर्ष 1959 में भारत में शरण ली थी, और तब से धर्मशाला को उन्होंने अपना दूसरा घर माना। उनके 90वें जन्मदिन पर यह आयोजन भारत-तिब्बत मैत्री और सांस्कृतिक साझेदारी का प्रतीक बन गया।
कार्यक्रम में सैकड़ों विदेशी अनुयायी, तिब्बती नेता, और बुद्ध धर्म के विद्यार्थी शामिल हुए। पूरा आयोजन “करुणा का उत्सव” बनकर उभरा।