वरुण चौधरी
मिटते हैं सरजमीं पर
वह शख्स अमर हो जाते हैं।
नाम की भूख नहीं
वह हर जुबां की खबर हो जाते हैं।
जिन्दा है ज़मीं की धड़कनें
जिनके कदमों की ताल से।
गूंजते हैं जयघोष जिनके
आकाश और पाताल से।
वतन के रखवाले
वतन पर बलिदान हो जाते हैं।
सांसें मिलाकर मिट्टी में
वतन की जान हो जाते हैं।
जिनके जिक्र हवाओं में
सुबह शाम दोपहर हो जाते हैं
नाम की भूख नहीं
वह हर जुबां की खबर हो जाते हैं।
कितनी दुल्हनों के किस्से खत्म हो गए।
कितनी माँओं के हिस्से खत्म हो गए।
लेकर अपनों से विदा
वो निडर बेखबर हो जाते हैं
नाम की भूख नहीं
वह हर जुबां की खबर हो जाते हैं।