रूबी सरकार
कोरोना वायरस से मची तबाही के दौरान प्रवासी मजदूरों की घर वापसी का सिलसिला जारी है। कुछ मजदूरों को तो सरकार वापस ला रही है, लेकिन बहुत सारे मजदूर ऐसे भी हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर पैदल, साइकिलों, मोटर-साइकिलों, ऑटो, लोडिंग-आटो, छोटे या बड़े ट्रकों से बेबस -बेहाल घर पहुंचने को बेताब हैं।
इनकी यह हालत इसलिए भी है, क्योंकि लॉकडाउन शुरू के बाद ज्यादातर नियोक्ताओं ने उनकी सुध नहीं ली। बचे-खुचे पैसों, राशन, सामाजिक-संगठनों के द्वारा साझा किये जा रहे भोजन, राशन के भरोसे अब तक जैसे-तैसे काटते रहे। जब वह भी संभव न रह गया तो ‘मरता, क्या न करता‘ की तर्ज पर जैसे भी हुआ निकल पड़े। इनके जेबों में पैसे तक नहीं। जहां जो मिल जाता है, खा लेते हैं।
इनमें वे भी शामिल हैं, जो बुंदेलखण्ड से पलायन कर महानगरों में मजदूरी को गये थे। आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखंड के जिलों से लगभग 70 फीसदी ग्रामीण परिवारों का कम से कम एक सदस्य पलायन पर जाता है। यही मजदूर लॉकडाउन के चलते बुंदेलखण्ड में वापस अपने घर को लौट रहे है।
आंकड़े बताते है, कि बुंदेलखण्ड के जिलों में लॉकडाउन के दौरान लगभग 7 लाख से अधिक मजदूर अपने घर वापस आये है, इसमें सबसे ज्यादा छतरपुर में 80 हजार, टीकमगढ़ में 75 हजार इसके अलावा झांसी में 70 हजार, जालौन में 45 हजार, ललितपुर में 40 हजार, हमीरपुर में 50 हजार, महोबा में 45 हजार मजदूर शामिल हैं।
बुंदेलखण्ड में पहुंचने के लिए यातायात की दृष्टि से झांसी प्रमुख केन्द्र है, जहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर थके चेहरे, जख्मी पांव, भूखे पेट के साथ मजदूर पहुंच रहे हैं। इतने पेट, इतनी भूख मिटा पाना सरकार के लिए नामुमकिन नहीं है, ऐसे में सरकार गैर सरकारी संगठनों को साथ लेकर काम कर रही है।
ऐसी ही संस्था है, ‘परमार्थ समाज सेवी संस्थान‘ जिसने राह चलते मजदूरों एवं अन्य कोरोना वॉरियरों की मदद करने का बीड़ा उठाया। पिछले एक-डेढ़ महीने से जिला प्रशासन के साथ समन्वय स्थापित कर महानगरों से झांसी लौट रहे मजदूरों को तत्कालिक सहायता उपलब्ध करा रही है।
उन्हें खाना, फल, सूखा राशन, दवाई, सेनेटाइजर और पेयजल के साथ-साथ हौले-हौले रेंगते हुए जिन मजदूरों के पैरों में छाले पड़ चुके है, उन्हें चप्पलें भी खरीद कर उपलब्ध करा रही है। इतना ही नहीं, सरकार के सहयोग से वाहनों का प्रबन्ध कर उन्हें गन्तव्य तक पहुचाने का प्रयास भी कर रही है।
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परमार्थ इन्हें कोविड-19 क्या है, इससे बचे रहने के लिए लगातार हाथ धोने, आपस में भौतिक -दूरी बनाए रखने और मुंह, नाक ढांके रखने के बारे में भी बता रही है। संस्थान ने अपना दायरा बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश के लखनऊ, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, एटा एवं मध्य प्रदेश के टीकमगढ, छतरपुर, छिंदवाडा तक के ग्रामीणों को कोरोना महामारी के बारे में जानकारी दे रही है तथा इन जिलों के प्रत्येक गरीब परिवारों को 15 दिन का रशद सामग्री भी उपलब्ध करा रही है ।
साथ ही झांसी में सामुदायिक किचन का संचालन कर प्रतिदिन राह चलते लगभग 400 लोगों को खाने का पैकेट बांट रही है। संस्थान के सचिव संजय सिंह बताते हैं, कि वैश्विक संक्रमण काल में उनकी संस्था ने लगभग दो माह में 49 हजार लोगों की मदद की है। इसमें 7 हजार वे परिवार भी शामिल हैं, जिन्हें 15 दिन का रषद सामग्री उपलब्ध कराया गया है।
उन्होंने बताया, कि जिंदगी बचाए रखने की जद्दोजहद किसी अनदेखे विषाणु से संभव मौत के मुकाबले कितनी बड़ी होती है, यह उनके आंखों के सामने से रोज गुजरती है।
झांसी के आयुक्त सुभाष चंद्र शर्मा संगठनों के काम की सराहना करते हुए बताते हैं, कि मानक प्रोटोकॉल के तहत सब काम हो रहा है। पैदल चलने वाले मजदूरों पर नजर बनाये रखने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया गया है। मजिस्ट्रेट के साथ-साथ पुलिस और एंबुलेंस मोबाइल टीम पूरे जिले में घूम रही है और पैदल चल रहे मजदूरों को शेल्टर होम पहुंचाने का काम भी किया जा रहा है।
यह संक्रमण काल है, इसमें सभी को मिल-जुल कर काम करना है। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में हैदराबाद से आ रही आम से लदा ट्रक पलटने और उसमें छिपकर आ रहे झांसी और एटा की मजदूरों की मौत के सवाल पर उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, कि यह बहुत ही दुखद है।
इसलिए बार-बार कहा जा रहा है, कि किसी को भी पैदल या छिपकर आने की जरूरत नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मजदूरों की घर वापसी की पूरी व्यवस्था की गई हैं। सिर्फ मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए 10 हजार सरकारी बसें लगाई गई हैं।
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उन्होंने कहा, कि पहले चरण में 6 लाख 50 हजार प्रवासी मजदूरों को मेडिकल परीक्षण के बाद उनके घर पहुंचाया जा चुका है। जबकि दूसरे चरण में एक लाख से ज्यादा निराश्रित श्रमिकों और कामगारों की घर वापसी हो चुकी है।
यदि कोई समूह कहीं भटक रहा है और वह किसी दूसरे राज्य से उत्तर-प्रदेश आना या जाना चाहता है, तो दोनों राज्य आपस में बातचीत करके आपसी सहमति कायम करते हुए उनकी भी व्यवस्था की जा रही है।