Tuesday - 9 January 2024 - 10:18 AM

ब्रज की होली के साथ वीर एकलव्य नाटक ने किया मंत्रमुग्ध

जुबिली पोस्ट ब्यूरो

लखनऊ। भक्ति संगीत से सजे कार्यक्रम का आरम्भ विभू बाजपेयी ने पंडित आदित्य द्विवेदी द्वारा लिखित रचना ‘‘रिद्धि के स्वामी विनायक सिद्धि का उपहार दो’ पर भावपूर्ण अभिनय युक्त नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को भगवान गणेश की भक्ति कर रसपान कराया।

श्रीराम लीला परिसर में चल रहे भारतीय नववर्ष मेला एवं चैती महोत्सव में शनिवार को सांस्कृतिक संध्या में गीतांजलि शर्मा के ब्रज की होली व वीर एकलव्य नाटक ने मंत्र मुग्ध किया।

महोत्सव का आकर्षण रहा गीतांजलि शर्मा का ब्रज का नृत्य। गीतांजलि शर्मा ने अपने कार्यक्रम का आरम्भ आरती युगल किशोरी की जय तन मन धन न्योछावर कीजे पर भावपूर्ण नृत्य से कर दर्शकों को मंत्र मुग्ध किया। मन को मोह लेने वाली इस प्रस्तुति के उपरान्त आयो रसिया मोर बन आयो रसिया पर आकर्षक नृत्य कर मयूर नृत्य की मोहक छटा बिखेरी।

इसी क्रम में गीतांजलि ने बांके बिहारी की देख छटा मेरो मन हय गायौ लता पता पर रिम भवई नृत्य, फाग खेलन बरसाने में आये हैं नटवर नन्द किशोर, आज बिरज में होरी रे रसिया और रंग बरसे रे गुलाल बरसे राधा रानी हमारी पे रंग बरसे पर लट्ठमार होली और फूलों की होली खेलकर दर्शकों को होली के रंग के मानिन्द सराबोर कर दिया।

कार्यक्रम के अगले सोपान में भास्कर नाट्य कला केन्द्र कोलकाता की प्रस्तुति वीर एकलव्य नाटक आकर्षक का केन्द्र बिन्दु बनकर उभरा।नाट्य सारानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने जब कंस को मारा तो जरासन्ध ने मथुरा पर आक्रमण कर दिया। इस घटना के बाद कृष्ण, बलराम और सभी बंधु बान्धव ने मथुरा छोड़ दिया।

इस दौरान कृष्ण जी की चाची निहारिका ने एकलव्य को जंगल में छोड़कर कुत्ते के बच्चे को अपने साथ ले गई। सुमेरू को पता चला कि जंगल में एकलव्य विद्यमान हैं, तब वह एकलव्य को लेकर उसे पालते पोसते हैं, इसी बीच जरासंध को पता चलता है कि एकलव्य सुमेरू के पास है तो वह उसे ढुंढते हुए वहां पहुंचता है, लेकिन सुमेरू होशियारी से एकलव्य को बहुत दूर छोड़कर कहते हैं कि अब यहां मत आना।

किसी प्रकार से एकलव्य निषादराज के पास पहुंचता है वहां पर उसका पालन पोषण होता है और युवावस्था में पहुंचने पर वह धनुष विद्या सीखने के लिए गुरू द्रोणाचार्य के पास जाता है जहां पर गुरू द्रोणाचार्य जी मना कर देते हैं, तब एकलव्य उनकी मिट्टी की मूर्ति बनाकर उससे शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं।

इस बात की जानकारी जब द्रोणाचार्य को लगती है तब वह एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लेते हैं ताकि वह श्रेष्ठ धनरुधर न बन पाए। संगीत से सजे कार्यक्रम में अमृत सिन्हा ने एकल नृत्य संगम की सरिता प्रवाहित की।

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