Saturday - 6 January 2024 - 10:19 PM

बिहार चुनाव : विरोधी दलों के लिए कठिन है डगर

प्रीति सिंह

बिहार अब पूरी तरह चुनावी मोड में है। चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है। सियासी पिच पर दो-दो हाथ करने के लिए तमाम दल उतरने लगे हैं, लेकिन इस लड़ाई में सत्तारूढ़ दल विपक्ष पर भारी पड़ता दिख रहा है, क्योंकि राज्य में विपक्ष न सिर्फ बिखरा हुआ है बल्कि उसे अपने कुनबे को एक रखने के लिए भी भी संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे हालात में यदि तय समय पर चुनाव होता है तो विपक्ष के लिए नीतीश कुमार को टक्कर दे पाना आसान नहीं होगा।

बिहार में नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है। कोरोना महामारी की वजह से विधानसभा चुनाव को लेकर थोड़ी असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन शुक्रवार को चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के बाद अब चुनाव की तस्वीर साफ दिख रही है। चुनाव अब तय समय पर ही होगा।

ये भी पढ़े : नेपाल से तनाव की वजह से बंगाल नहीं भेजेगा नेपाल को ये फल

ये भी पढ़े :  डंके की चोट पर : सरेंडर पर राजनीति नहीं मंथन करें हम

ये भी पढ़े : मानवाधिकार के मर्म और दर्शन के पुरोधा थे चितरंजन सिंह

हालांकि चुनाव आयोग ने पहले ही कोरोना काल में चुनाव कराने के लिए एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। पटना में शुक्रवार को हुई सर्वदलीय बैठक में आयोग ने बताया कि कोरोना संक्रमण से बचाव को ध्यान में रखते हुए बूथों की संख्या बढ़ा दी गई है। पहले 73 हजार मतदान केंद्र थे। अब उनकी संख्या 1.06 लाख से अधिक हो गई है। ऐसे में कुल बूथों की संख्या करीब 34 हजार बढ़ गई है। यह पहल आयोग ने कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर की है। आयोग के इस कदम से स्पष्टï है कि बिहार में विधानसभा चुनाव तय समय पर होगा।

बिहार में अगर तय समय पर चुनाव हुए तो तीन महीने के अंदर वहां इसकी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। ऐसे में राजनीतिक दलों की तैयारी देखें तो इसके लिए उन्हें ज्यादा समय नहीं मिलेगा। इसका सबसे ज्यादा असर विपक्षी दलों पर पड़ेगा। चुनाव करीब है और विपक्षी दलों में कई चीजों को लेकर अब तक सहमति नहीं बन पाई है। महागठबंधन को लेकर विपक्षी दलों में रार मची हुई है।

पिछले दस दिनों के भीतर यूपीए की छोटी पार्टियों ने दो बार बैठक कर कांग्रेस और आरजेडी दोनों को अल्टीमेटम दिया है कि गठबंधन के स्वरूप को लेकर जल्द कोई फैसला करें नहीं तो वे कोई स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। इन छोटे दलों में जीतन मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी की पार्टी है।

ये भी पढ़े : पाबंदी के बाद भी क्यों बढ़ रहा है जर्मनी में महिला खतना ?

ये भी पढ़े : तो क्या स्विस बैंकों से भारतीयों का मोहभंग हो रहा है?

चार दिन पहले भी इन तीनों दलों के नेताओं ने आपस में मीटिंग कर कांग्रेस और आरजेडी पर दबाव बनाया है। मांझी तो सीएम नीतीश कुमार से भी संपर्क में हैं। वहीं कांग्रेस ने आरजेडी पर दबाव बनाते हुए कम से कम सौ सीट देने की मांग की है। असहमति सिर्फ सीटों तक नहीं है।

बिहार की राजनीति के केंद्र में राष्ट्रीय जनता दल रही है। पक्ष हो या विपक्ष, आरजेडी को सबसे चुनौती मिल रही है। तेजस्वी यादव को लेकर गैर आरजेडी गठबंधन में असहमति बनी हुई है। दरअसल गैर आरजेडी विपक्षी नेताओं का दबाव है कि तेजस्वी यादव गठबंधन के नेता न बनें। कांग्रेस के अंदर भी एक वर्ग इस बात को हवा दे रहा है।

इन दलों का तर्क है कि तेजस्वी यादव के एनडीए के सामने रहने से मुकाबला कमजोर हो जाएगा। साथ ही आरजेडी के अंदर भी तेजस्वी यादव को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। वरिष्ठï नेताओं में उनके प्रति असंतोष दिख रहा है।

आरजेडी के कमजोर पडऩे से सत्तारूढ़ दल से लेकर महागठबंधन की पार्टियों में भी हलचल दिखाई देने लगी है। आरजेडी कमजोर होगी तो इसका सीधा असर सत्तारूढ़ दल को मिलेगा लेकिन कांग्रेस भी इसे अवसर के रूप में देख रही है। कांग्रेस को लग रहा है कि यह राज्य में जनाधार बढ़ाने का मौका है लेकिन राज्य में पार्टी की हालत पतली होने के कारण वह स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे की पोजीशन में नहीं है। बावजूद इसके कांगे्रस के कुछ नेता स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे की वकालत कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर कांग्रेस को खोया जनाधार पाना है तो बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्वतंत्र रूप से आगे बढऩा होगा।

दरअसल उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस तैयारी शुरू कर चुकी है और नेताओं को लगता है कि बिहार में इस बार उनके सामने मौका है 2024 से पहले नई शुरुआत करने का, लेकिन सब कुछ तय होगा कांग्रेस के सर्वोच्च नेतृत्व के स्तर पर। वहां से उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हमेशा से लालू यादव के साथ गठबंधन की हिमायती रही हैं।

इस विधानसभा चुनाव आरजेडी के लिए भी करो या मरो वाली स्थिति है। आरजेडी का नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं। उनकी अगुवाई में यह चुनाव लड़ा जायेगा। अगर पार्टी राज्य में बेहतर करने में विफल रही तो फिर आरजेडी की प्रदेश राजनीति में भी प्रासंगिकता गंभीर खतरे में पड़ जाएगी।

लालू के 15 सालों के राज की याद दिलाकर वोट मांगने जा रही है जदयू

एक ओर विपक्ष के भीतर भगदड़ मची हुई है तो वहीं सत्तारूढ़ दल पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर गई है। एनडीए नीतीश कुमार की अगुवाई में चुनाव लड़ेगी। इस चुनाव में एनडीए ने 15 सालों की एंटी इनकंबेसी को टारगेट करने का फैसला किया है। एनडीए ने चुनाव प्रचार की थीम ‘नीतीश नहीं तो कौन?’ का ही बना लिया है।

सत्तारूढ़ दल जदयू और भाजपा ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी के 15 सालों के राज की याद दिलाकर वोट मांगने जा रही हैं। इसका आगाज जदयू ने लालू के जन्मदिन पर कर चुकी है। अगर नीतीश की अब तक की राजनीति को देखें तो हर बार वह नई थीम लेकर आते हैं। इस बार वह विकल्पहीनता पर अधिक फोकस कर रहे हैं। हालांकि एनडीए में सीटों का बंटवारा अभी होना है।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com