Friday - 12 January 2024 - 9:28 AM

उत्तर प्रदेश में एक और घातक बीमारी ने दी दस्तक, इस उम्र के लोगों पर कर रहा हमला

गोरखपुर: यूपी में एक नए बिमारी ने दस्तक दिया है। वहीं प्रदेश सरकार ने इस बिमारी पर काबू में कर लिया गया है. यह अब पूरी तरह से कंट्रोल में है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्र में एक नए प्रकार की घातक बीमारी का असर देखने को मिल रहा है. इसे लेकर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय और इससे सम्बंधित चिकित्सालयों, रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) द्वारा रिसर्च किया गया. रिसर्च से यह निष्कर्ष निकला है, कि यह घातक बुखार वास्तव में लेप्टोस्पाइरोसिस नामक बीमारी है. जिसके मुख्य कारण चूहे हैं. बीमारी को लेकर रिसर्च, बीमारी के खतरनाक होने से पहले ही शुरू हो गया, इसलिए विशेषज्ञों को विश्वास है कि समय रहते ही इस पर भी काबू पा लिया जाएगा.

बुखार के इस नए स्वरूप पर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय द्वारा किए गए रिसर्च/केस स्टडी को लेकर मंथन किया गया. आज यानी शुक्रवार को विभिन्न संस्थाओं के विशेषज्ञों के मध्य कांफ्रेंस के जरिये रिसर्च परिणाम पर विशेष मंथन किया गया. केस स्टडी का प्रजेंटेशन महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी ने दिया. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय से सम्बंधित गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय में इस वर्ष आरएमआरसी के सहयोग से बुखार का कारण जानने का प्रयास किया गया.

शोध में 50 फीसद नमूनों में लेप्टोस्पाइरोसिस की हुई पुष्टि

शोध में 50 फीसद नमूनों में लेप्टोस्पाइरोसिस की पुष्टि हुई. अस्पताल में भर्ती मरीजों पर पांच प्रकार की बीमारियों स्क्रब टायफस, लेप्टोस्पायरोसिस, डेंगू, चिकनगुनिया व एंटरोवायरस पर जांच शुरू की गई थी. 20 जून से 6 अगस्त तक कुल 88 ब्लड सैंपल की जांच की गई. इनमें से 50 फीसद यानी 44 नमूने लेप्टोस्पाइरोसिस पॉजिटिव पाए गए. जबकि 1 नमूने में स्क्रब टायफस, 9 में डेंगू आईजीएम, 3 में चिकनगुनिया व 3 में एंटरोवायरस पॉजिटिव होने का पता चला.

इस उम्र के व्यक्तियों में हो रही यह बीमारी

मेजर जनरल डॉ वाजपेयी ने बताया कि विश्लेषण में पाया गया कि लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी, 20 से 60 वर्ष के उम्र के लोगों में हो रही है. इससे बिना ठंड के उच्च तापमान का बुखार हो रहा है. मरीज के पूरे शरीर में दर्द रहता है. चौथे-पांचवे दिन कुछ मरीजों में हल्के पीलिया व कुछ में निमोनिया के लक्षण मिलने लगते हैं. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इस बीमारी में मोनोसेफ, मैरोपैनम व थर्ड-फोर्थ जनरेशन की एंटीबायोटिक दवाओं का उतना असर नहीं होता जितना सामान्य निमोनिया के मामलों में दिखता है.

इस वजह से हो रही ये बीमारी

डॉ  ने बताया कि लेप्टोस्पाइरोसिस अधिकतर चूहों के शरीर में रहता है और उसके पेशाब से यह वातावरण में आता है. त्वचा के जरिये यह मनुष्य के शरीर में पहुंचकर उसे बीमार कर सकता है. लेप्टोस्पाइरोसिस के इलाज में टेट्रासाइक्लिन, क्लोरोमाईसेटिन, डॉक्सीसाईक्लिन आदि एंटीबायोटिक दवाएं कारगर हैं. लेकिन वर्तमान में इनका उपयोग डॉक्टरों द्वारा अपेक्षाकृत कम किया जा रहा है. दवाओं की उपयोगिता समझने के साथ इस बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए चूहों पर नियंत्रण पाना बेहद अहम होगा.

ये भी पढ़ें-अखिलेश से पूछा गया क्या 2024 में नीतीश कुमार होंगे PM उम्मीदवार? तो दिया ये जवाब

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com