Thursday - 11 January 2024 - 8:10 AM

माफिया, राजनेता ही नहीं साहित्य प्रेमी भी थे अखिलेश

न्यूज डेस्क

यूं तो उनकी पहचान दिग्गज माफिया और राजनीति के बेताज बादशाह के रूप में थी, लेकिन उनको करीब से जानने वाले कभी यह मानने को तैयार नहीं होते थे कि वह माफिया भी हो सकते हैं। माफिया न मानने के पीछे लोगों के कई तर्क भी थे, मसलन शारीरिक बनावट और चेहरे के हाव-भाव माफियाओं से मेल नहीं खाता था, दूसरा साहित्य से गहरा लगाव और वुद्धिजीवियों के बीच में बैठने के दौरान इतनी इज्जत अफजाई करते और लोगों को कभी एहसास तक नहीं होने देते कि जिसे काफी लोग जरायम और राजनीति की दुनिया का बेताज बादशाह कहते हैं, उनके सामने बैठा है। जब वह किसी से मिलने उसके घर जाते तो अपनी ठसक, अना उसकी घर की देहरी के बाहर छोड़कर घुसते थे, तो उसे कैसे यकीन होगा कि वह माफिया है।

जी हां, हम बात कर रहे हैं रायबरेली के पूर्व विधायक और माफिया अखिलेश सिंह की। रायबरेली भले ही गांधी परिवार के गढ़ के रूप में जानी जाती है लेकिन यहां अखिलेश सिंह का सिक्का चलता था। कैंसर की बीमारी से जूझ रहे अखिलेश सिंह ने मंगलवार को लखनऊ के पीजीआई में अंतिम सांस ली।

अखिलेश सिंह के व्यक्तित्व के कई पहलू थे। उन्होंने जो काम किया उसमें टॉप पर रहे। दबंगई की दुनिया में कदम रखे तो उसमें भी नई इबारत लिखी। राजनीति में आए तो उसमें भी बेताज बादशाह बने रहे। अखिलेश सिंह के व्यक्तित्व का एक पहलू ऐसा भी है जिसे बहुत कम लोग जानते है। आम लोग उन्हें माफिया, राजनेता के तौर पर जानते हैं लेकिन उनको करीब से जानने वालों में उनकी पहचान साहित्य प्रेमी की है।

जब वह वुद्धिजीवियों की महफिल में बैठते थे तो वह सिर्फ और सिर्फ साहित्य पर बात करते थे। उनकी बातचीत में राजनीति नहीं बल्कि किस्से, कहानियां, कविताएं होती थी। किताबों पर बात करना उनका प्रिय शगल था। सूर-कबीर से लेकर अब तक के श्रेष्ठï लेखकों को उन्होंने पढ़ा था। वह साहित्य पर घंटों चर्चा करते थे।

प्राइवेसी का रखते थे ध्यान

अखिलेश सिंह चूंकि बड़े माफिया और राजनेता थे, इसलिए उनके इर्द-गिर्द भारी लाव-लश्कर होता था। घर से लेकर सड़क तक उनके आस-पास बड़ा सुरक्षा घेरा होता था, लेनिक जब वह किसी से मिलने जाते थे तो वह अकेले जाते थे। वह लोगों को कभी महसूस नहीं होने देते कि उनसे मिलने कोई बड़ा शख्स आया है। वह अपने लाव-लश्कर को बिल्डिंग से काफी रोक देते थे और वहां से अकेले जाते थे।

अखिलेश सिंह गांधी परिवार ने भी माना लोहा

अखिलेश सिंह ने अपना सियासी सफर कांग्रेस के साथ ही शुरु किया था। वह 1993 से 2012 तक लगातार पांच बार इस सीट से विधायक चुने गये। शुरुआत के तीन बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते तो वह वर्ष 2007 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जबकि 2012 का विधानसभा चुनाव पीस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीते।

गांधी परिवार के साथ उनका रिश्ता उतार-चढ़ाव वाला रहा। उनकी छवि पर लगातार सवाल उठ रहे थे इसलिए कांग्रेस उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया, इसके बावजूद क्षेत्र में उनकी पकड़ कम नहीं हुई। क्षेत्र में वह विधायक जी के नाम से मशहूर थे। अदिति के विधायक बनने के बाद हाल ही में प्रियंका गांधी ने भी दो बार अखिलेश सिंह से मुलाकात कर कांग्रेस का समर्थन करने की अपील की थी।

सैयद मोदी हत्याकांड में भी आया था अखिलेश का नाम

1988 के मशहूर सैयद मोदी हत्याकांड में अखिलेश सिंह का नाम आया था। हत्याकांड में अखिलेश सिंह के अलावा अमेठी राजघराने के संजय सिंह और सैयद मोदी की पत्नी अमिता मोदी पर भी मुकदमा दर्ज हुआ था। जहां साल 1990 में संजय सिंह और अमिता को बरी कर दिया गया और 1996 में अखिलेश सिंह भी बरी हो गए थे।

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