न्यूज डेस्क
देश के कई राजनीतिक दलों पर परिववारवाद का आरोप लगता रहा है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, डीएमके, आरजेडी जैसी पार्टियों पर एक परिवार विशेष का एकाधिकार होने का अक्सर आरोप लगते हैं लेकिन दलित उत्थान और दलितों, दबे कुचलों व शोषितों को समाज में विशेष स्थान दिलाने के लिए कांशीराम द्वारा बनाई गई बहुजन समाज पार्टी (बसपा) पर वंशवाद और परिवारवाद का आरोप कभी नहीं लगा।
राजनीति में दलितों को स्थान दिलाने के लिए कांशीराम ने चौदह अप्रैल 1984 को जिस बसपा की स्थापना की थी मायावती ने उस पार्टी को यूपी की सत्ता के शिखर पर कई बार पहुंचाया। इस बीच भले ही उन पर दौलत की देवी का आरोप लगा, लेकिन हमेशा उन्होंने अपनी पार्टी को अपने परिवार से ऊपर रखा।
हालांकि, यूपी में हुए 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव और 2014 लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद उनका सियासी कद कुछ कम हुआ। इसके बाद 2019 में सपा के साथ गठबंधन के बाद भी जब बसपा कोई खास कमाल नहीं कर पाई तो मायावती अपनी सियासी जमापूंजी को अपने भाई और भतीजे में बांटने का संकेत दिये है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रविवार को बसपा की अहम बैठक हुई, जिसमें कई अहम बदलाव किए गए। बसपा में संगठनिक स्तर पर कई बदलाव हुए हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती के भाई आनंद कुमार को एक बार फिर पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। वहीं मायावती के भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक की जिम्मेदारी दी गई है।
इसके साथ ही पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर दो समन्वयक बनाए गए हैं। मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामजी गौतम अब राष्ट्रीय समन्वयक की जिम्मेदारी संभालेंगे। दानिश अली को लोकसभा में बसपा का नेता बनाया गया है। इसके साथ ही जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव लोकसभा में बसपा के उपनेता होंगे, जबकि पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र राज्यसभा में बसपा के नेता होंगे।
2012 के यूपी विधानसभा चुनाव से बसपा का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। हालत यह हो गई कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा खाता भी नहीं खोल सकी थी। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा महज 19 सीटें ही जीत सकी थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन के बावजूद बसपा मात्र 10 सीटें ही जीत सकी।
बसपा अब लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी विरोधी काम करने वालों के खिलाफ एक्शन मोड में आ गई है। पार्टी प्रमुख मायावती ने ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। साथ ही परिवार को भी धीरे-धीरे पार्टी में उच्च पदों पर जगह दे रही हैं। जिससे उनके बाद भी उनके परिवार का ही पार्टी पर कब्जा रहे। ऐसे सवाल उठ रहा है वो दलित नेता और कार्यकर्ता जो जमीन से जुड कर पार्टी को मजबूत करने के लिए मेहनत करते हैं क्या मायावती ये कदम उनके लिए न्याय संगत है।