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देश में अभी भी 66,692 लोग करते हैं मैला ढोने का काम

प्रीति सिंह

देश में पहली बार साल 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया, बावजूद आज भी समाज में धड़ल्ले से मैला ढोने की काम जारी है।

यह हम नहीं कह रहे हैं। इसकी गवाही सरकारी आंकड़े दे रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में आज भी 66,692 मैनुअल स्केवेंजर्स हैं।

यह जानकारी राज्यसभा में दिनेश त्रिवेदी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में सामना आया।

कानून में यह प्रावधान है कि अगर कोई मैला ढोने का काम कराता है तो उसे सजा दी जाएगी, लेकिन केंद्र सरकार खुद ये स्वीकार करती है कि उन्हें इस संबंध में किसी को भी सजा दिए जाने की कोई जानकारी नहीं है।

वहीं इस दिशा में काम कर रहे लोगों का आरोप है कि कई राज्य सरकारें जानबूझकर ये स्वीकार नहीं करती कि उनके यहां अभी तक मैला ढोने की प्रथा चल रही है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी हैं। यूपी में इनकी संख्या 37,379 है। इसके बाद नंबर आता है महाराष्ट्र का जहां 7,378 लोग मैला ढोने का काम करते हैं।

इसके अलावा अन्य राज्यों जिसमें उत्तराखंड, जहां 6,170 लोग , असम में 4,295 , कर्नाटक में 3,204, राजस्थान में 2,880, आंध्रप्रदेश में 2,061, पश्चिम बंगाल में 741, केरल में 600 और मध्य प्रदेश में 560 लोग मैला ढोने का काम करते हैं।

एनजीओ सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक देश में यह कुप्रथा इसलिए जारी है क्योंकि देश में अभी भी करीब 26 लाख शुष्क शौचालय हैं, जिसकी सफाई हाथों के जरिए करनी पड़ती है।

कानून के मुताबिक हाथ से मैला उठाने की व्यवस्था खत्म करने के लिए सभी स्थानीय प्राधिकरणों को सैप्टिक टैंकों व सीवर की सफाई के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा, लेकिन बड़ी विडंबना यह है कि कई राज्यों में मैनुअल स्केवेंजिंग जारी है।

ऐसा नहीं है कि मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या में कमी नहीं आई है। कमी आई है लेकिन सवाल वहीं कि कानून बने 28 साल होने को है और आज भी यह काम हो रहा है।

मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट द्वारा साल 2002-03 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में उस समय करीब 6.76 लाख मैनुअल स्केवेंजर्स थे।

पिछले चार सालों में गैस चैम्बरों ने ली 340 की जान

18 सितंबर, 2019 को देश की शीर्ष अदालत ने बिना जरुरी यंत्रों के सीवेज की सफाई के मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारत में सीवर, गैस चैंबर्स की तरह हैं, जहां मैनुअल स्कैवेंजरों को मरने के लिए भेजा जाता है, जबकि दुनिया के किसी भी देश में, लोगों को गैस चैंबरों में मरने के लिए नहीं भेजा जाता है।

शीर्ष अदालत की यह बात सही भी है क्योंकि भारत में अभी भी इस काम को करते हुए हर साल कई कर्मचारी अपनी जान गंवा देते हैं।

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आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 से 31 दिसंबर 2020 तक देश में कुल 340 सफाई कर्मचारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

सिर्फ साल 2020 में 19 कर्मचारियों की जान चली गई थी, जिनमें से 4 की जान तो देश की राजधानी दिल्ली में चली गई थी। इसके अलावा तमिलनाडु में 9, महाराष्ट्र में 4 और कर्नाटक में 2 कर्मचारियों ने जान गवाईं थी।

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अपनी जान जोखिम में डालकर अपने परिवार का पेट भरने वाले इन सफाई कर्मचारियों को उनके काम और उनकी जान का पूरा मुआवजा तक नहीं मिलता।

साल 2016 से जिन 340 सफाई कर्मचारियों की जान गई है, उनमें से 76 लोगों के परिजनों को अब तक कोई मुआवजा नहीं मिला है।

कई महीनों तक नहीं जारी हुआ कोई फंड

सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए पिछले बजट में से करीब छह महीने तक कोई फंड जारी नहीं हुआ था।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री रामदास अठावले द्वारा 20 सितंबर 2020 को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिए 15 सितंबर 2020 तक कोई भी फंड जारी नहीं किया गया था, जबकि इसके लिए 110 करोड़ रुपये आवंटित था।

इसके पिछले साल 2019-20 के दौरान भी 110 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया था, लेकिन मंत्रालय ने 84.80 करोड़ रुपये ही जारी किया।

वहीं वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान सबसे कम पांच करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, जिसकी वजह से सरकार को काफी आलोचनाओं हुई थी।

बताते चले कि एसआरएमएस योजना के तहत मुख्य रूप से तीन तरीके से मैला ढोने वालों का पुनर्वास किया जाता है।

इसमें ‘एक बार नकदी सहायता’ के तहत मैला ढोने वाले परिवार के किसी एक व्यक्ति को एक बार 40,000 रुपये दिया जाता है। इसके बाद सरकार मानती है कि उनका पुनर्वास कर दिया गया है।

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इसके अलावा मैला ढोने वालों को प्रशिक्षण देकर उनका पुनर्वास किया जाता है। इसके तहत प्रति माह 3,000 रुपये के साथ दो साल तक कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाता है।

इसी तरह स्व-रोजगार के लिए एक निश्चित राशि (3.25 लाख रुपये) तक के लोन पर मैला ढोने वालों को सब्सिडी देने का प्रावधान है।

भारत सरकार द्वारा संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में 15 सितंबर तक 13,990 मैनुअल स्कैवेंजर्स को 40,000 रुपये की नकद सहायता दी गई थी। हालांकि इस दौरान किसी को भी स्किल डेवलपमेंट की ट्रेडिंग नहीं दी गई।

इसके अलावा 30 लोगों को लोन पर सब्सिडी देने के प्रावधान से लाभान्वित किया गया।

इस तरह साल 2017-18 के दौरान 1171, 2018-19 के दौरान 18079 और 2019-20 के दौरान 13,246 लोगों को एसआरएमएस योजना के तहत ‘एक बार नकदी सहायता’  दी गई है।

वहीं 2017-18 में 334, 2018-19 में 1682 और 2019-20 में 2532 मैनुअल स्कैवेंजर्स को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दी गई थी।

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