Thursday - 11 January 2024 - 2:10 AM

कहीं अंधेरा न कर दे ये रोशनी…

 

विवेक कुमार श्रीवास्तव

आजकल राजधानी लखनऊ की सड़कें शाम होते ही एलईडी लाइट की रोशनी में जगमगाने लगती हैं। दरअसल सरकार बिजली के खर्चे में कमी लाने की कोशिश में है। इसी क्रम में राजधानी की सड़कों, पार्कों, सरकारी दफ्तरों समेत तकरीबन हर जगह एलईडी लाइट के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। वजह ये है कि सोडियम लाइट की तुलना में एलईडी लाइट में ऊर्जा की खपत 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है।

ये बात तो सही है कि एलईडी लाइट में ऊर्जा की खपत कम होती है। मगर इससे होने वाले प्रकाश के कुछ नुकसान भी हैं, जिसे हम प्रकाश प्रदूषण कह सकते हैं। हालांकि अभी प्रकाश प्रदूषण को लेकर लोग ज्यादा जागरूक नहीं हुए हैं।एलईडी में कोल्डब्ल्यूवेवलेंथ की रोशनी होती है। यह वे तरंगें हैं जो प्रकाश के प्रदूषण को तेज करती हैं। चूंकि एलईडी लाइट ऊर्जा की खपत कम करती है इसलिए इनका जमकर इस्तेमाल हो रहा है। शॉपिंगमाल्स, सिनेमा हॉलऔर बाजारों में भी चौंधिया देने वाली रोशनी का रिवाज आम हो चुका है। जाहिर है कि इसके कुछ दूसरे नतीजे भी होंगे जिसे हम प्रकाश प्रदूषण कहते हैं। आज माइग्रेन, सिर दर्द, थकावट, चिड़चिड़ापन जैसी शिकायत बढ़ती जा रही है। जिसकी एक बड़ी वजह प्रकाश प्रदूषण भी है।

इंसानों से ज्यादा पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर

प्रकाश प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिसका तत्कालिक रूप में इंसानी जिन्दगी, स्वास्थ्य या पर्यावरण पर कोई असर भले ही न दिखे मगर दीर्घकालिक रूप में ये हमें और हमारे आस-पास के पर्यावरण पर बेहद प्रभाव डाल रहा है। यहां एक बात और ध्यान देने वाली है कि, प्रकाश प्रदूषण का असर इंसानों से ज्यादा पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है।

कम होती जा रही है अंधरे में देखने की क्षमता

इंसान की आंखों में दो तरह के विजन होते हैं , कोनविजन और रॉडविजन। जब हम रोशनी में चीजों को देखते हैं तो हमारी आंखें कोनविजन का इस्तेमाल करती है और जब हम अंधेरे में देखते हैं तो उस समय हमारी आंखें रॉडविजन मोड में होती हैं। 2001 में अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में हए शोध के मुताबिक वहां के चकाचौंध भरे जीवन की वजह से वहां रहने वाले लोगों में रॉडविजन का प्रयोग ही नहीं हो रहा जिसके चलते ये धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहा है यानि आंखों की रात में देखने की क्षमता खत्म होती जा रही है और अगर दिन और रात की रोशनी में अंतर नहीं रहा तो आने वाले समये में इंसान अंधेरे में देखने के कबिल ही नहीं रह जाएगा।

हमारे शरीर में मेलाटोनिन नामक एक हार्मोन का निर्माण तभी संभव है जब हमारी आंखों को अंधेरा होने का संकेत मलता है। मेलाटोनिन का काम शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता से लेकर कोलेस्ट्राल में कमी लाना है साथ ही स्वस्थ शरीर के लिए अहम कुछ और कामों को भी ये करता है।

निशाचर प्राणियों की फीडिंग से लेकर री – प्रोडक्शन तक सब कुछ हो रहा प्रभावित

ये तो रही इंसानों की बात, प्रकाश प्रदूषण जानवरों, वनस्पतियों और नदियों तक पर भी अपना असर डालता है। लखनऊ विश्वविद्यालय में जुंतु विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोसफर डॉ. गीतांजलि मिश्रा के मुताबिक आदमियों ने अपनी परिधि बढ़ा ली है जिससे जानवरों के प्राकृतिक वास में दिक्कत आ रही है। महानगरों में रात भर लाइट चकाचौंध के चलते निशाचर प्राणियों की फीडिंग से लेकर री-प्रोडक्शन तक सब कुछ प्रभावित हो रहा है और उनके खत्म होने की संभावना बढ़ती जा रही है। इसमें चमगादड़, मेढक, विभिन्न प्रकार के कीड़े-मकोड़े शामिल हैं।

प्रक्रति में संतुलन स्थापित करते हैं प्राणी और कीड़े-मकोड़े

ये प्राणी और कीड़े-मकोड़े हमारी प्रक्रति में संतुलन स्थापित करते हैं। शहरों में रहने वाले परिंदों और जानवरों जेसे कुत्तों, बिल्ली, गाय, भैंस आदि के सोने का अभ्यास बदल गया है। रात में कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ने लगी है। आसमान में उड़ने वाले परिंदे जा अपना ठिकाना बदलते हैं जैसे साइबेरिय पक्षी वगैरह ये चांद और सितारों की स्थिति से अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचते हैं, लेकिन कृत्रिम रोशनी की अधिकता से ये अपने रास्ते भटक जाते हैं।

बीबीएयू में इनवॉयरमेंटल साइंटिस्ट डॉ वेंकटेश दत्ता के मुताबिक प्रकाश प्रदुषण का इंसानी स्वास्थ्य पर तत्काल असर तो नहीं दिखाई देता मगर धीरे-धीरे ये हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। नदियों और वनस्पतियों पर भी इसका असर पड़ रहा है। रात में कृत्रिम प्रकाश की वजह से वनस्पतियों और नदियों में पैदा होने वाली पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बढ़ जाती है। दरअसल कृत्रिम रोशनी की अधिकता की वजह से ये पौधे दिन और रात में फर्क ही नहीं कर पाते जिससे नदियों में शैवाल बढ़ने लगते हैं। जिससे नदियों का बहाव बधित होता है। उसमें ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ने लगता है। कृत्रिम रोशनी में रहने वाले पौधों का विकास देर से हाने लगा है।

प्रकाश प्रदूषण से निजात पाने के लिए हमें कुछ सावधानियाँ बरतनी होगी। हमें कोशिश करनी होगी कि आसमान पर ज्यादा से ज्यादा अंधेरा रहे और वहां रोशनी की पहुंच कम हो। जिसके लिए हमें सार्वजनिक जगहों या खुले स्थानों, सड़कों पर लाइट इस तरह लगाना चाहिए कि उनकी रोशनी आसमान की तरफ न जाए। जिन जगहों पर ज़रूरत न हो वहां रात के वक्त लाइट बंद कर दी जाए।

चूंकि प्रकाश प्रदूषण के क्षेत्र में बेहद कम शोध हुआ है इसलिए इस बारे में लोगों की जानकारी बेहद कम है। अब तक प्रकाश प्रदूषण को मापने की कोई विधि इजाद नहीं हुई है। मगर ये धीरे-धीरे हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकीय संतुलन को प्रभावित कर रहा है। हम इसे रोक भले नहीं सकते मगर कुछ सावधानियों से इसके दुष्प्रभावों को खत्म या कम कर सकते हैं। याद रखिये कि हम जितना ज्यादा लाइट जलाते हैं ग्रीन हाउस उत्सर्जन उतना ही ज्यादा होता है।

                                                                                         डॉ वेंकटेशदत्ता, इनवॉयरमेंटलसाइंटिस्ट, बीबीएयू, लखनऊ

           प्रकाश प्रदूषण को रोका नहीं जा सकता मगर इंसानों को अपना दायरा समझना होगा और उसी में रहना होगा। ये धरती सभी प्राणियों की है। हमें उनके क्षेत्र और उनकी प्राकृतिक जरूरतों और आवास को समझना होगा, तभी इस ग्रह के सभी प्राणी साथ रह सकते हैं। अन्यथा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा जिसका गंभीर खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी भुगतेगी।

                                                             डॉ गीतांजलि मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर, जंतु विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

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