भारतीय समाज में महिलाएं सालों से पुरुषों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करती रही हैं, लेकिन बदलते दौर में महिलाएं हर वो काम कर रही है, जो पहले सिर्फ पुरुष के लिए उचित माना जाता था।
आज महिलाए देश में महत्त्वपूर्ण पदों को संभाल रही है और उनके द्वारा लिए गए फैसले देश की प्रगति का रास्ता तय कर रहें हैं। यह एक जरुरी बदलाव है, जिसका देश सालों से इंतजार कर रहा था। आज हम आपको उन महिलाओं के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने चकाचौंध की दुनिया से अलग देश का नाम रोशन किया।
दादी कीर्तयानी अम्मा
केरल के अलपुझा जिले की 96 वर्ष की दादी कीर्तयानी अम्मा ने राज्य साक्षरता परीक्षा में टॉप करके सबको हैरत में डाल दिया। उन्होंने 100 में से 98 अंक हासिल किए।
गोविंदीबाई
नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ के एक छोटे से शहर की रहने वाली 60 वर्षीया गोविंदीबाई केंद्र सरकार की ब्रांड एंबेस्डर बनीं। वह इस उम्र में कंप्यूटर साक्षर बनकर दूसरों को भी प्रेरित कर रही हैं।
टेटकी बाई
रायपुर के बेमेतरा जिले के एक गांव की 72 वर्षीया टेटकी बाई गरीब होने के साथ दिव्यांग भी हैं, लेकिन उन्होंने निराश्रित-विधवा पेंशन की राशि से अपनी झोपड़ी के बगल में ही शौचालय बनवाकर मिसाल पेश की। शासन ने स्वच्छता दूत के रूप में उनका चयन किया। पिछले वर्ष लोकसभा अध्यक्ष ने उनके गांव आकर उन्हें सम्मानित किया था।
हर्षिता अरोड़ा
नौवीं कक्षा में स्कूल छोड़ने वाली सहारनपुर की 16 वर्षीया हर्षिता अरोड़ा ने दुनियाभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। उसने एप्पल आईओएस के लिए क्रिप्टो करेंसी प्राइस ट्रैकर एप बनाया है। यह एप्पल फोन यूजर्स के बीच काफी लोकप्रिय भी हो चुका है।
सोनामती
छत्तीसगढ़ के एक गांव में सोनामती नामक आदिवासी महिला ने कुष्ठ रोग के खिलाफ सात साल तक संघर्ष किया। उनके संघर्ष पर एक शार्ट फिल्म भी बनाई गई, जिसे कांस फिल्म समारोह में दिखाए जाने के लिए चुना गया।
पैडगर्ल सौम्या डाबरीवाल
दिल्ली की 22 वर्षीया पैडगर्ल सौम्या डाबरीवाल ने ऐसा सेनेटरी पैड तैयार किया है, जिसे डेढ़ से दो वर्ष तक इस्तेमाल किया जा सकता है। यह सुरक्षित, उपयोगी और पूर्णतया पर्यावरण के अनुकूल है। सौम्या ब्रिटिश यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर लौटी हैं। वह गरीब एवं पिछड़ों की मदद करना चाहती हैं।
नीलिमा
उत्तर प्रदेश में अमरोहा के छोटे से कस्बे धनौरा में रहने वाली नीलिमा ने स्विटजरलैंड में आयोजित क्वांटम फिजिक्स के क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला योरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन लैब में वैश्विक शोध में हिस्सा लिया।
शीला और मुन्नी
छत्तीसगढ़ के एक मजदूर माता-पिता की दो बेटियां शीला और मुन्नी देवांगन सफल तलवारबाज बनकर न केवल राष्ट्रीय पदक विजेता बनीं, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें उत्कृष्ट खिलाड़ी पुरस्कार से भी नवाजा।
इरम हबीब
जम्मू-कश्मीर की 30 वर्षीया इरम हबीब श्रीनगर की सबसे कम आयु की पहली कामर्शियल महिला पायलट बनीं। कट्टरपंथियों के फतवों और रिश्तेदारों के असहयोग के बावजूद उन्होंने अपना हौसला नहीं छोड़ा।
अरुणा पूनेम और सुनीता हेमला
नक्सल हिंसा से प्रभावित बीजापुर की अरुणा पूनेम और सुनीता हेमला को एशियन सॉफ्टबाल में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया।
श्रुति गुप्ता
हिमाचल प्रदेश के सोलन की निवासी श्रुति गुप्ता ने पांच दुर्गम दर्रो पर कथक नृत्य कर लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाया। श्रुति ने माइनस डिग्री तापमान में नंगे पैर नृत्य करके विश्व रिकार्ड भी बना डाला। उन्होंने कई बार सेना के जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए दुर्गम जगहों पर भी प्रस्तुति दी।
कानपुर की पांच सहेलियां
कानपुर की पांच सहेलियों रेनू मारवाह, दीपिका सेठी, शशि गौतम, नीलम चंद्रा और सोनम गरयानी ने न सिर्फ क्रोशिया की बुनाई से सफलता के नए आयाम स्थापित किए, बल्कि वर्ल्ड रिकार्ड तक बना डाला। पहले ये शौकिया बुनाई करती थीं। सोशल मीडिया ने इन्हें नई राह दिखाई।
लेखिका अरूंधति रॉय और मीना कांडासामी ब्रिटेन के वार्षिक वूमन्स प्राइज फॉर फिक्शन अवार्ड की दौड़ में शामिल हुई।
टीम नाविका सागर
लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी के नेतृत्व में छह सदस्यीय महिला दल ने 252 दिन का समुद्री सफर पूरा करके अपनी वीरता का परिचय दिया। टीम में वर्तिका के अलावा लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, पी. स्वाति, लेफ्टिनेंट ए. विजया देवी, बी. ऐश्वर्य और पायल गुप्ता थीं। इस अभियान को नाविका सागर परिक्रमा नाम दिया गया था। इस लक्ष्य को हासिल करने वाली यह पहली महिला टीम बनी।
अवनी चतुर्वेदी
अवनी चतुर्वेदी देश की पहली ऐसी महिला पायलट बनीं, जिन्होंने अकेले ही जेट विमान उड़ाया। उन्होंने जामनगर एयरबेस पर मिग-21 में उड़ान भरी।
प्रकृति राय
समस्तीपुर, बिहार के एक गांव की बेटी प्रकृति राय को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की पहली महिला लड़ाकू अधिकारी होने का गौरव प्राप्त हुआ।
वेदवी खैरनार – माधवी बेलकर
महाराष्ट्र के औरंगाबाद की 10 वर्षीया वेदवी खैरनार और माधवी बेलकर ने जम्मू-कश्मीर के लेह-लद्दाख में स्थित स्टोक कांगड़ी चोटी को फतह किया। सबसे कम उम्र में यह कीर्तिमान स्थापित करने वाली लड़कियों ने लिम्का बुक में अपना नाम दर्ज कराया।