Friday - 2 August 2024 - 10:06 AM

फ्रांसीसी गांवों में पुनर्जीवन भरेगी शराब

अंकित प्रकाश

सबेस्टियन चेरियर नाम के एक आदमी की चिंता का विषय फ्रांस के गावों से ‘जीवन’ का  दिन पर दिन गायब होते जाना है। इस समस्या के समाधान के लिए वो अपनी वैन में शराब भर कर गांवों में बेचने निकल पड़ते हैं। ये तो अजीब बात मालूम होती है। आइये जानते हैं कि ऐसा वो करते क्यूँ हैं, तब शायद ये बात उतनी अजीब न लगे।

पारंपरिक फ्रांसीसी कैफे वो जगह होती थी जहां पर लोग शाम को काम के बाद मिला जुला करते थे, एक दूसरे को बेहतर जान सका करते थे। फ्रांस के गावों में अब यह दृश्य दुर्लभ होता जा रहा है। इसी दृश्य को वापस साकार करने के लिए सबेस्टियन ‘लिकर लाइसेंस’ और अपनी वैन के साथ गांव-गांव जा रहे हैं, उन्होंने अपनी वैन को एक चलते फिरते बार में तब्दील कर दिया है।

इसी में उन्होंने अपने लिए एक ओर लकड़ी से बना छोटा सा काउंटर बनाया है जो उन्हें एक बढ़ई ने दान दिया था। सबेस्टियन अपनी इस वैन को ‘बार ट्रक’ कहते हैं।

गांव के लोगों का कहना है कि पहले एक गांव में कम से कम चार बार हुआ करते थे, अब इनकी संख्या घटती ही जा रही है और कुछ गांवों में तो बस अब जनरल स्टोर्स ही बचे हैं। लोग सबेस्टियन की इस पहल को एक मौके की तरह देख रहे हैं जो कि लोगों को फिर से घर से निकल कर एक दूसरे से मिलने की परंपरा को कायम कर सकता है। सबेस्टियन कहते हैं की ये बेहद चिंतनीय है कि लोग असल जिन्दगी छोड़कर फोन और टीवी में घुसे हुए हैं। जहां एक तरफ इस रवैये ने पेरिस जैसे बड़े शहरों को रफ़्तार दी है और कामयाब बनाया है।

वहीं, दूसरी और यही रवैया गांवों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। लोग अपने में ही मगन हैं। पिछले कुछ महीनों में ‘येलो वेस्ट’ नाम की एक संस्था ने देश भर में कई गांवों में लगातार प्रदर्शन किये और इस मुद्दे को उछाला कि फ्रांस में वर्ष 1960 में कुछ 2000000 कैफे थे जो सामजिक मेलजोल का केंद्र हुआ करते थे और वहीं 2015 में ये आंकड़ा घट कर 36000 रह गया है। बंद होने वाले कैफे ज्यादातर गांवों से थे जो कुछ अब बचे हैं वो बस शहरों में ही बचे हुए हैं।

विलेकुअर गांव के एक 50 साल के वृद्ध ओलिवर का कहना है,‘पहले कैफे हमें एक दूसरे से मिलाया करते थे,अब वो रहे नहीं। इसका नतीजा ये है कि मुझे अपने पड़ोसी को जान पाने का मौका ही नहीं मिलता अगर सबेस्टियन अपना ट्रक लेकर हमारे गांव नहीं आते। हम आपस में बस सलाम बंदगी तक ही सीमित रह जाते। भला हो इनका जो इन्होंने इस बारे में सोचा और कुछ किया’।

अपने चमचमाते सिर, भारी-भरकम दाढ़ी मूंछ और कुछ टैटू के साथ सबेस्टियन अपने मिशन में जी जान से लगे हुए हैं। उनके फेसबुक पेज पर अपने आने वाले गांवों की पूरी सूची और समय सारिणी मौजूद रहती है। लोग भी अब ट्रक के आने का इंतजार बेसब्री से करते हैं।

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