Saturday - 13 January 2024 - 11:49 AM

क्या वाकई बंगाल में ममता को चुनौती दे पाएंगे ओवैसी ?

उत्कर्ष सिन्हा

जब से बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटें जीती हैं तब से ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि वे बंगाल में ममता बनर्जी के मजबूत किले में दरार डाल देंगे, मगर क्या वाकई ओवैसी कि ताकत इतनी बड़ी है ? ये एक सवाल है जिसका जवाब बंगाल के नतीजों में मिलेगा ।

तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो पहली प्रतिक्रिया यही मिल रही है कि ओवैसी बंगाल में मुसलमान वोटरों को लुभाने में कामयाब होंगे , मगर आँकड़े समझने वाले लोग इसे नहीं मानते।

बिहार में जिन 20 सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवार मैदान में थे उनमे से 5 जीते जरूर, मगर ये भी एक तथ्य है कि 14 सीटों पर जमानत भी जब्त हो गई। जिन 5 सीटों पर ओवैसी को कामयाबी मिली थी वे प्रत्याशी स्थानीय स्तर के मजबूत नेता थे जिनके पास अपना भी वोट बैंक था।

राजनीतिक विश्लेषकों का एक धड़ा इस बात को सामने रख कर यह कह रहा है कि 5 सीटों की ये कामयाबी बताती है कि दरअसल ओवैसी का कोई बड़ा प्रभाव नहीं बन पा रहा है।

बंगाल में ममता बनर्जी ने भी इसे शायद ठीक से समझ लिया है और इसीलिए उन्होंने ओवैसी की पार्टी के बड़े नेताओं को अपने पाले में खींचना शुरू कर दिया है।

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 20 बड़े नेताओं को अपने पाले में कर लिया है जिनमे एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अनवर पाशा भी शामिल हैं।

तृणमूल में शामिल होने के वक्त पाशा ने कहा – “ममता बनर्जी भारत में सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष नेता हैं. वह देश की अकेली नेता हैं जो एनआरसी का विरोध करने के लिए सड़क पर उतरी थीं.”

इतना ही नहीं अनवर पाशा ने विपक्ष के उन आरोपों को भी दुहराया दिया जिसके मुताबिक एआईएमआईएम वोटों का ध्रुवीकरण कर बीजेपी को मदद पहुंचा रही है, और ये बीजेपी की बी टीम की तरह काम करती है।

बंगाल में मुस्लिम वोटरों की अहमियत को इस तरह से समझा जा सकता है कि बंगाल में मुसलमानों की आबादी कुल आबादी का करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर विधानसभा की 100 से 110 सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं। मुर्शिदाबाद में 67 प्रतिशत, उत्तर दिनाजपुर में 51 प्रतिशत, मालदा में 52 प्रतिशत और दक्षिण दिनाजपुर में 49.92 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। इस इलाके में  विधानसभा की 34 सीटें हैं। बंगाल में वामपंथी किला ढहने के बाद बीते कई सालों से ये तृणमूल कांग्रेस का ठोस वोट बैंक बन चुका है।

तृणमूल इस खतरे को ठीक से समझती है कि ओवैसी ने अगर इन सीटों पर मजबूत स्थानीय नेता उतारे तो उसकी राहें बहुत मुश्किल हो जाएंगी, इसी लिए ममता बैनर्जी ने फिलहाल एआईएमआईएम  के नेताओं को अपने पाले में लाने की कवायद शुरू कर दी है।

भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद के खिलाफ बांग्ला राष्ट्रवाद को अपना हथियार बना रही ममता का ये भी मानना है कि बंगाली मुसलमानों पर ओवैसी का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वे अपने बूते ही 200 से ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में हैं इसलिए ओवैसे जैसों से गठबंधन करने का कोई प्रश्न ही नहीं पैदा होता।

इस बीच ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यकों के लिए दर्जनों योजनाएं शुरू कर दी हैं जिसमे  अल्पसंख्यकों के मदरसों को सरकारी सहायता, इस तबके के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप और मौलवियों को आर्थिक मदद भी शामिल है। इसी वजह से बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक दल उनके खिलाफ तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लगाते रहे हैं।

लेकिन इसके बरक्स ममता ने बंगाल के सबसे बड़े धार्मिक उत्सव दुर्गा पूजा में लगाने वाले पंडालों को भी दिल खोल कर रकम दी है।

बंगाल फतह करने को बेचैन बीजेपी की उम्मीदें भी ओवैसी पर लगी हुई हैं। यदि ओवैसी की पार्टी ने 100 सीटों पर तृणमूल को 5 प्रतिशत वोटों का भी नुकसान कर दिया तो ममता बनर्जी के लिए हालात मुश्किल हो जाएंगे।

 

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