Friday - 5 January 2024 - 1:00 PM

शिवराज और वसुंधरा की उपेक्षा करना क्या बीजेपी के लिए भारी पड़ेगा?

मध्य प्रदेश, राजस्थान में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने जब मुख्यमंत्री पद के लिए नए चेहरों को चुना तो सवाल ये उठा कि पुराने चेहरों का अब क्या होगा?मध्य प्रदेश में 18 साल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बजाय मोहन यादव को सीएम पद के चुना गया. राजस्थान में मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे की बजाय भजनलाल शर्मा को चुना गया. इस फ़ैसले के बाद इन दोनों वरिष्ठ नेताओं का भविष्य क्या होगा?

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने अबतक ये साफ नहीं किया हैं कि आख़िर इन दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए क्या योजना हैं.64 साल के शिवराज और 70 साल के वसुंधरा अपने इलाक़ों में अब भी लोकप्रिय हैं. साफ शब्दों में ये कहने गलत नहीं होगा कि मध्यप्रदेश व राजस्थान में जीत का एक बड़ा श्रेय इन दोनों नेताओं को जाता है.

मिली जानकारी के मुताबिक केंद्रीय नेतृत्व इन दोनों नेताओं को पार्टी के भीतर या केंद्र सरकार में मौक़ा दे सकता है. राज्य की सत्ता संभालने से पहले शिवराज और वसुंधरा दोनों केंद्र सरकार में रह चुके हैं. पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि 2014 में बीजेपी जब सत्ता में आई तो वसुंधरा को केंद्र की राजनीति में आने के लिए कहा गया था, मगर उन्होंने इससे इनकार किया था.मोदी- शाह जब पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत कर रहे थे, तब वसुंधरा राजस्थान में स्थानीय नेताओं, विधायकों और वफ़ादारों के बीच बनी रहकर राज्य में बीजेपी को संभाल रही थीं.

हालांकि 2018 में वसुंधरा राजे जब अशोक गहलोत के सामने सत्ता खोती हैं, बीजेपी ने तभी राज्य में पार्टी के नए नेतृत्व को आगे लाने का फ़ैसला कर लिया था. सीएम रहने के दौरान शिवराज ने अपना प्रभाव तेज़ी से बढ़ाया. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और बीजेपी में आने के बाद भी शिवराज की लोकप्रियता कम नहीं हुई और महिलाओं के लिए शुरू की गई स्कीम के कारण वो महिलाओं की नज़रों में अच्छे बने रहे.

अब जब बीजेपी ने दोनों राज्यों में नेतृत्व को बदल दिया है. तब क्षेत्रीय स्तर पर इन नेताओं का क्या होगा, इसे लेकर अलग-अलग राय हैं. राज्यों के चुनावों में शामिल एक पार्टी नेता ने कहा कि ये असंभव है कि वसुंधरा और शिवराज को कोई काम ना दिया जाए. इंडियन एक्सप्रेस से एक वरिष्ठ पार्टी नेता कहते हैं, ”वसुंधरा और शिवराज बिना ज़िम्मेदारी के नहीं होंगे. इनको क्या ज़िम्मेदारी दी जाएगी, क्या इस ज़िम्मेदारी को ये लोग स्वीकार करेंगे या नहीं. इन सवालों का जवाब हम नहीं दे सकते. हमारी पार्टी कार्यकर्ताओं की पार्टी है. ऐसे लोग जिनके अच्छे ख़ास समर्थक हैं, उनकी सक्रियता कम नहीं की जा सकती.”

पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता कहते हैं- कई लोगों का मानना है कि राज्य के चुनावों में बहुमत इन दोनों नेताओं को मिला. नेताओं को केंद्र सरकार में ज़िम्मेदारी दी जा सकती है. इन नेताओं से पार्टी से मिले ऑफर को अगर स्वीकार नहीं किया तो फ़ैसला लेने में वक़्त लग सकता है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ये पूरी तरह शिवराज पर रहेगा कि वो दिल्ली से मिलने वाले ऑफर को स्वीकार करते हैं या नहीं. हाल ही में शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया में कहा था, ”मैं पूरी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि मैं अपने लिए कुछ मांगने से बेहतर मरना पसंद करूंगा. ये मेरा काम नहीं है.” बीजेपी के एक नेता कहते हैं- शिवराज के इस बयान से पार्टी नेतृत्व परेशान हुआ होगा और अब इसकी संभावना कम ही है कि उन्हें दिल्ली में कोई ज़िम्मेदारी दी जाएगी.

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कभी बीजेपी के सबसे लोकप्रिय चेहरों में शामिल वसुंधरा राजे को बीजेपी ने टॉप पोस्ट पर ना चुनने का फ़ैसला किया है. इन चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी के वोट शेयर में सिर्फ़ दो फ़ीसदी का फ़ासला था. वसुंधरा 2003 से 2008 और फिर 2013 से 2018 तक सीएम रह चुकी हैं और इस बार भी प्रबल दावेदार मानी जा रही थीं. हालांकि बीजेपी ने वसुंधरा राजे को सीएम पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं किया था.

पार्टी ने जब कई सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़वाने का फ़ैसला किया था, तब भी वसुंधरा को साफ़ संकेत भेजने की कोशिश की गई थी. बीजेपी के चुनाव जीतने के बाद विधायक वसुंधरा राजे के घर जाकर समर्थन दिखाते रहे हैं. वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह पर एक विधायक के पिता ने बीजेपी विधायकों को रिसॉर्ट में रखने का आरोप लगाया था.

वसुंधरा राजे और दुष्यंत ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाक़ात की थी. हालांकि इस बीच वसुंधरा राजे ने ये साफ दिखाने की कोशिश की कि वो पार्टी नेतृत्व के साथ हैं. तीन राज्यों में बड़ी जीत के लिए वसुंधरा ने पीएम मोदी का आभार व्यक्त किया था.

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