Wednesday - 10 January 2024 - 2:37 PM

औषधीय गुणों वाले गांजे पर इतना हंगामा क्यों?

जुबिली न्यूज डेस्क

हाल के दिनों में एक वैश्विक रिचर्स में ये बात सामने आई है कि गांजा के गैर नशीले और लत न लगने वाले हिस्सों का इस्तेमाल मिर्गी, मानसिक विकारों, कैंसर के मरीजों में दर्द कम करने, कई तरह के स्क्लेरोसिस और त्वचा की बीमारियों में किया जा सकता है।

लेकिन भारत में गांजा को लेकर एक अलग ही माहौल बना हुआ है। जिस तरह से भारत में इसको लेकर हंगामा बरपा हुआ है उसका बड़ा असर गांजे के पौधे के औषधीय गुणों और इसके गैर-नशीले और लत न लगने से जुड़े गुणों को लेकर जारी वैज्ञानिक शोध पर पड़ रहा है।

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क्या गांजा वाकई इतना खतरनाक है जितना इन दिनों जांच एजेंसियां इस पर हंगामा कर रही हैं? जांच एजेंसियों और मीडिया गांजा के औषधियों गुणों को कितना जानती है यह नहीं मालूम पर इसके जानकारों के मुताबिक गांजा इतना खतरनाक भी नहीं है जितना इसे बताया जा रहा है।

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से बॉलीवुड इंडस्ट्री और ड्रग्स चर्चा में है। पिछले दिनों कुछ बड़ी अभिनेत्रियों का नाम सामने आया जिसमें उनके ड्रग्स लेने की बात की कही गई। इसके बाद से देश में गांजा पर हंगामा बरपा हुआ है।

जानकारों की माने तो भारत में जहां गांजा को लेकर लोग भ्रमित हैं वहीं मौजूदा दौर में चीन गांजे का सबसे अधिक, 80 फीसदी उत्पादन करता है। चीन में इसका इस्तेमाल धागे से लेकर कपड़े तक सभी में होता है। गांजे से जो कपड़ा बनता है उसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं।

हाल के दिनों में मीडिया और जांच एजेंसियों का गांजा और कृत्रिम नशीले पदार्थों को एक ही चश्मे से दिखाने का असर ये हो रहा है कि कई लोग अब ये मानने लगे हैं कि गांजे का पूरा पौधा न केवल बुरा है बल्कि बेहद हानिकारक है।

जानकारों की माने तो इस हंगामें की वजह से इस क्षेत्र में जुड़े लोगों को काफी नुकसान हो सकता है। बीबीसी के मुताबिक बेंगलुरु में मौजूद नम्रता हेम्प कंपनी के प्रबंध निदेशक हर्षवर्धन रेड्डी सिरुपा के अनुसार “इसका असर ये होगा कि गांजे की खेती और इससे इंडस्ट्रीयल और मेडिसिनल प्रोडक्ट बनाने के लिए रीसर्च की अनुमति देने के लिए नियमन प्रक्रिया बनाने का फैसला लेने में अब तीन से चार साल की देरी हो सकती है।”

हर्षवर्धन रेड्डी का डर उन व्यवसायियों के डर से मिलता-जुलता है जिन्होंने ये सोच कर इस क्षेत्र में कदम रखा है कि कानून में उचित बदलाव के साथ इस पौधे का इस्तेमाल कृषि और बागवानी, कपड़ा उद्योग, दवा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में किया जा सकता है। इन उद्यमियों का आकलन है कि साल 2025 तक ये इंडस्ट्री सौ से देढ़ सौ अरब अमरीकी डॉलर की हो सकती है।

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भारत में कितना बड़ा खतरा है गांजा?

भारत में गांजा के गांजा के औषधीय गुणों को कम उसके नकारात्मक पहलू को लोग ज्यादा जानते हैं। गांजा औषधीय पौधा है यह शायद नई पीढ़ी को नहीं मालूम होगा।

इस मामले में लखनऊ के आयुर्वेदाचार्य आरके मिश्रा कहते हैं-गांजा को लेकर पूरा देश भ्रमित है। इसमें इनकी गलती नहीं है। पिछले दिनों जिस तरह से मीडिया में गांजा को नकारात्मक तरीके से दिखाया गया उससे यही संदेश जाना था।

वह कहते हैं रही-सही कसर हमारे कानून ने पूरी कर दी है। हमारे यहां का मौजूदा कानून ये संदेश देता है कि गांजा से दूर रहो। इसके नजदीक जाने की जरूरत नहीं है।

सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि ये कानून उस दौर में मौजदू है जब एम्स और एनडीडीटीसी ने देश में की अपनी ताजस स्टडी में पाया है कि हमारे समाज को सबसे अधिक खतरा कहां से है। इस स्टडी के लिए बीते साल सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने आर्थिक मदद दी थी।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भांग कानूनी तौर पर उपलब्ध होता है और देश की करीब दो करोड़ लोग भांग, चरस और गांजा गांजे के पौधे से बने उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं। इस मामले में ये देखना भी दिलचस्प है कि वैश्विक औसत के मुकाबले भारत में गांजे का इस्तेमाल कम है (3.9 फीसदी बनाम 1.9 फीसदी)।

इस मामले में आयुर्वेदिक सलाहकार डॉ. स्तुति पांडे कहती हैं कि भारत के लिए चिंता का विषय गांजा नहीं बल्कि अफीम से बनने वाला हेरोइन है। जहां दुनिया में औसतन 0.7 फीसदी लोग अफीम से बने नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं वहीं भारत में 2.1 फीसदी लोग इस तरह के पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

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आयुर्वेद में करीब 200 जगह है गांजे का जिक्र

गांजे के औषधीय गुणों के बारे में बताते हुए डॉ. स्तुति पांडे कहती है-आयुर्वेद में करीब 200 अलग-अलग जगहों में गांजे का जिक्र है। इस पौधे के मादक पदार्थ का नाम गांजा है। संस्कृत में इसे विजया कहते हैं। आयुर्वेद में इसके इस्तेमाल को बुरा नहीं माना जाता। कई आयुर्वेदिक दवाएं हैं जिनमें न केवल विजया का इस्तेमाल किया जाता है बल्कि अफीम का भी इस्तेमाल होता है। ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं और इसका इस्तेमाल कितना महत्वपूर्ण है।”

डॉ स्तुति कहती हैं -ये एक बड़ा मजाक भी है और विडम्बना भी कि भारत में उगने वाले इस पौधे से जो दवा बनती है हमें वो विदेशों से आयात करना पड़ती हैं। हमारी भौगोलिक स्थिति को देखें तो हम इस मामले में वैश्विक लीडर बन सकते हैं, लेकिन नहीं। हम सकारात्मक पहलू देखने के आदी नहीं है।

आगे वह कहती है-यदि सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात कह रही है तो उसे चीन से इस मामले में सबक लेना चाहिए। चीन किस तरह इसका इस्तेमाल धागे से लेकर कपड़े तक में कर रहा है।

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