जुबिली न्यूज डेस्क
मई 2025 में भारत द्वारा किए गए सैन्य अभियान “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर जो टकराव हुआ, उसने केवल दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के रक्षा विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है। इस ऑपरेशन को लेकर भारत और पाकिस्तान दोनों की ओर से सीमित आधिकारिक जानकारी सामने आई है, लेकिन दावों और अटकलों की बाढ़ आ गई है। विशेष रूप से पाकिस्तान की ओर से दावा किया गया कि उन्होंने भारतीय वायुसेना के पाँच लड़ाकू विमान गिरा दिए। हालांकि, भारत ने इस दावे की न पुष्टि की और न ही खंडन किया है।
इस रिपोर्ट में हम ऑपरेशन सिंदूर के बाद की स्थिति, चीन से मिले हथियारों की भूमिका, और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करेंगे।
झड़प की शुरुआत और दावा
ऑपरेशन सिंदूर की घोषणा भारत ने पाकिस्तान द्वारा की गई घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों के जवाब में की थी। यह एक सीमित सैन्य अभियान बताया गया, जिसमें भारत ने आतंकी लॉन्चपैड्स और ठिकानों को निशाना बनाया। इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उन्होंने भारतीय वायुसेना के कम से कम पाँच लड़ाकू विमानों को मार गिराया।
इस दावे के बाद कई पाकिस्तानी और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों में यह चर्चा शुरू हो गई कि पाकिस्तानी सेना द्वारा इस्तेमाल किए गए चीनी हथियार, खासकर एयर डिफेंस सिस्टम, काफी प्रभावी साबित हुए हैं। हालांकि भारत की ओर से एयर मार्शल एके भारती ने केवल इतना कहा, “नुकसान लड़ाई का हिस्सा है लेकिन हमारे सभी पायलट घर वापस आ गए हैं।” इससे ज्यादा भारत की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया गया।
कश्मीर में गिरे विमान का मलबा और सवाल
जम्मू-कश्मीर के पाम्पोर इलाके में एक विमान के गिरने की सूचना और मलबे की तस्वीरें सामने आईं, जिससे पाकिस्तान के दावे को बल मिला। लेकिन भारतीय सेना ने इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं की। इससे यह सवाल उठता है कि क्या सच में भारतीय विमान गिरे थे या यह एक रणनीतिक चुप्पी है?
पाकिस्तानी सेना के चीनी हथियार: कितना असरदार प्रदर्शन?
पाकिस्तान लंबे समय से चीन से रक्षा उपकरण खरीदता रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) के अनुसार, पिछले 5 वर्षों में पाकिस्तान द्वारा खरीदे गए कुल विदेशी हथियारों में 81 प्रतिशत चीन से आए हैं। इनमें शामिल हैं:
-
J-10CE “विगरस ड्रैगन” फाइटर जेट
-
JF-17 थंडर (पाक-चीन संयुक्त निर्माण)
-
HQ-9P एयर डिफेंस सिस्टम
-
VT-4 टैंक
-
हैंगोर-2 पनडुब्बी
-
सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें
-
सर्वेक्षण और जासूसी ड्रोन
यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में चीनी हथियारों का एक देश ने किसी दूसरे देश के खिलाफ उपयोग किया है।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों की राय
चीनी हथियारों का पहला बड़ा प्रदर्शन?
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ लाइल मॉरिस के अनुसार, “यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए पश्चिमी और चीनी सैन्य तकनीक की तुलना करने का दुर्लभ अवसर है।” उनका मानना है कि इस झड़प ने चीनी हथियारों के प्रदर्शन पर एक नई बहस शुरू कर दी है।
स्टिम्सन सेंटर के युन सुन ने भी कहा कि यह पहली बार है जब J-10CE को युद्ध में प्रयोग किया गया। वहीं, पाकिस्तान के दावों के अनुसार इन विमानों ने हवा में भारतीय विमानों को निशाना बनाया।
राफेल बनाम J-10CE
भारत के पास फ्रांसीसी राफेल जैसे आधुनिक और मल्टीरोल फाइटर जेट हैं। सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के जेम्स चार का कहना है, “राफेल यूरोप का हाई-टेक फाइटर जेट है, जबकि J-10CE उतनी उन्नत श्रेणी में नहीं आता।”
हालांकि उन्होंने यह भी कहा, “अगर पाकिस्तान के दावे सही हैं, तो यह चौंकाने वाली बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि J-10CE खासतौर पर एयर-टू-एयर युद्ध के लिए बना है और इसका रडार सिस्टम बेहतर हो सकता है।”
भारतीय प्रतिक्रिया और चीन को क्या मिला?
भारत ने अभी तक पाकिस्तानी दावों को लेकर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह जरूर दावा किया कि उसने लाहौर के पास एक चीनी एयर डिफेंस सिस्टम (HQ-9P) को नष्ट किया। यदि यह दावा सही है, तो यह पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए एक रणनीतिक झटका माना जा सकता है।
इस लड़ाई के बाद चेंगदू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री, जो J-10CE का निर्माण करती है, उसके शेयर 40 प्रतिशत तक बढ़ गए। लेकिन जैसे ही दोनों देशों के बीच सीज़फायर की घोषणा हुई, शेयर वापस नीचे गिरने लगे। इससे पता चलता है कि वैश्विक निवेशक भी चीनी हथियारों की सफलता या विफलता पर नजर रख रहे हैं।
ड्रोन और नई तकनीकों की भूमिका
इस झड़प में ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम का भी प्रयोग हुआ। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के ड्रोन को मार गिराने का दावा किया। भारत ने एक पाकिस्तानी ड्रोन का मलबा भी दिखाया, लेकिन इस पर भी पाकिस्तान ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
विश्लेषकों की चेतावनी: जल्दी निष्कर्ष न निकालें
सीएसइएस के विशेषज्ञ ब्रायन हार्ट का कहना है कि, “इस तरह की सीमित झड़प के आधार पर यह तय करना मुश्किल है कि कौन सा सिस्टम बेहतर है।” उन्होंने यह भी कहा कि प्रशिक्षण, रणनीति और जमीन पर हालात भी उतने ही अहम होते हैं जितना कि हथियारों की गुणवत्ता।
जेनिफर कवाना का भी मानना है कि चीन को अभी “बड़ा हथियार निर्यातक बनने में समय लगेगा”, क्योंकि अभी वह कई महत्वपूर्ण पुर्जों — खासकर फाइटर जेट के इंजन — को स्वयं नहीं बना सकता।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद सामने आई सूचनाओं से यह स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तकनीक की दौड़ में चीन एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर रहा है। लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट है कि किसी एक छोटी झड़प के आधार पर किसी भी हथियार प्रणाली की अंतिम सफलता या असफलता तय करना जल्दबाज़ी होगी।
भारत की ओर से चुप्पी रणनीतिक हो सकती है, जबकि पाकिस्तान की ओर से दावे राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक लाभ के लिए किए जा सकते हैं। आने वाले समय में दोनों देशों की सेनाएँ और रणनीतिक साझेदार इस टकराव के निष्कर्षों से अपनी नीति तय करेंगे।