Saturday - 6 January 2024 - 4:01 PM

PM मोदी क्यों कर रहे CM शिवराज को इग्नोर?

जुबिली न्यूज डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सार्वजनिक उपेक्षा के बाद यह सवाल सबकी जुबान पर है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्यों प्रधानमंत्री ने लाखों कार्यकर्ताओं के सामने न तो शिवराज सिंह का नाम लिया और न ही उनकी किसी जनहित वाली योजना का जिक्र किया? सब यह मान रहे हैं कि आजाद भारत में इस तरह का व्यवहार विरोधी दलों के नेताओं ने भी सार्वजनिक रूप से एक दूसरे के साथ अभी तक नहीं किया।

दोनों में संबंध भी सौहार्दपूर्ण ही रहे हैं। हालांकि 2014 में लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी के साथ शिवराज सिंह का नाम भी प्रधान मंत्री पद के योग्य बीजेपी नेताओं की सूची में गिनाया था। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद शिवराज सिंह ने धीरे-धीरे मोदी के सामने आत्मसमर्पण सा कर दिया था। पिछले कुछ साल से तो वह मोदी को भारत के लिए भगवान की देन ही बता रहे हैं। कभी भी उनका रास्ता काटने की कोशिश तो दूर उधर देखने की कोशिश तक नहीं की।

तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो नरेंद्र मोदी ने पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं के सामने भोपाल में शिवराज का नाम लेना भी जरूरी नहीं समझा? हालांकि वह अमित शाह के जरिए यह बात पहले ही साफ करवा चुके थे कि शिवराज अगले मुख्यमंत्री नहीं होंगे। लेकिन प्रदेश की पहली बड़ी चुनावी सभा में सामान्य शिष्टाचार का भी निर्वहन न किया जाना एक बड़ा सवाल बन गया है। जिसका उत्तर अब प्रदेश का हर बीजेपी कार्यकर्ता जानना चाहता है।

उज्जैन और ओमकारेश्वर

मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर बनवाने का श्रेय हासिल किया है। काशी में विश्वनाथ कारीडोर बनवा कर उन्होंने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया है। इस बीच शिवराज ने भी अपने राज्य में मठ मंदिरों के पुनर्निमाण की शुरुआत की। सबसे पहले उन्होंने काशी की तरह उज्जैन में महाकाल के महालोक का निर्माण शुरू कराया। चुनावी लाभ लेने के लिए इसके पहले चरण का उद्घाटन भी नरेंद्र मोदी से ही कराया। इस महालोक की चर्चा दुनिया भर में हुई। हालांकि बाद में घटिया निर्माण की वजह से बदनामी भी पूरी दुनियां में हुई। इससे मोदी नाराज हुए।

शिवराज महाकाल के महालोक तक ही नहीं रुके। उन्होंने राज्य में कई जगहों पर देवी देवताओं के लोक बनवाने का काम शुरू किया। रामराजा लोक, देवी लोक, परशुराम लोक, रैदास मंदिर आदि प्रमुख धार्मिक परियोजनाएं प्रदेश में चल रही हैं। देश में चलाए जा रहे भगवा अभियान में इन सभी की व्यापक चर्चा भी हो रही है।

इन सब में सबसे ज्यादा अहम है ओंकारेश्वर में नर्मदा के तट पर आदि शंकराचार्य की 108 फिट ऊंची प्रतिमा की स्थापना। करीब ढाई हजार करोड़ रुपये की लागत से ओंकारेश्वर पर्वत पर बने एकात्म परिसर में स्थापित यह प्रतिमा दुनिया में शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा है। अभी एक सप्ताह पहले 19 सितंबर को ही शिवराज सिंह ने इस प्रतिमा का भव्य सरकारी समारोह में अनावरण किया था।

हालांकि पहले खुद प्रधानमंत्री शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण करने वाले थे। लेकिन वे नहीं आए। कारण क्या रहा वही जाने। कहा यह जा रहा है कि मोदी नर्मदा के तट पर शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा लगाए जाने से खुश नहीं थे। यह अलग बात है कि शिवराज पार्टी के एजेंडे पर ही काम कर रहे थे। लेकिन इस प्रतिमा की तुलना मोदी की ओर से गुजरात में लगवाई गई सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा से किया जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा।

लाड़ली बहना से कर्नाटक में बीजेपी की हार!

इसके अलावा शिवराज सिंह की बहुचर्चित लाड़ली बहना योजना से भी मोदी खुश नहीं हैं। शिवराज अचानक यह योजना लाए। इसे कहे समय पर लागू भी किया। भले ही सरकार का बजट चरमरा गया है, लेकिन पूरे देश में इसका प्रचार हुआ। साथ में शिवराज भी चर्चा में आए। उनकी इस योजना की तर्ज पर एक अलग योजना कर्नाटक में लागू करने का ऐलान करके कांग्रेस ने विधानसभा का चुनाव जीत लिया। वह हार मोदी के लिए बड़ा झटका मानी गई।

लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को 1250 रुपये हर महीने देने के साथ-साथ शिवराज ने उन्हें गैस का सिलेंडर भी 450 रुपये में देना शुरू कर दिया है। मोदी ने गैस सिलेंडर के दाम घटा कर 900 रुपये किये, वहीं शिवराज ने उसे 450 का कर दिया। इस मामले में भी उनकी चर्चा मोदी से ज्यादा हुई। उधर, राजस्थान में अशोक गहलोत ने ऐसी ही योजनाएं लागू करके बीजेपी और मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। हालांकि शिवराज अपनी और बीजेपी की जीत के लिए ये सब कर रहे थे, लेकिन मोदी ने इसे प्रतिस्पर्धा मान लिया।

शिवराज की ब्रांडिंग से पीएम नाराज

देश के लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी प्रधानमंत्री ने मंच पर मौजूद अपने ही दल के वरिष्ठतम मुख्यमंत्री का नाम तक नहीं लिया। अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ उनका सलूक पूरी दुनियां ने देखा है और रोज देख रही है। लेकिन अपने ही दल के वरिष्ठतम मुख्यमंत्री के साथ ऐन चुनाव के समय उनके इस व्यवहार ने पार्टी कार्यकर्ताओं को चौंका दिया है। मोदी को लेकर जो बातें वे पिछले साढ़े नौ साल से सुनते आए थे, उनका साक्षात उदाहरण भी उन्होंने देख लिया। वह भी यह मान रहे हैं कि भले ही अब शिवराज का चेहरा उतना चमकदार नहीं रहा। पर ऐसा व्यवहार तो नहीं ही किया जाना चाहिए था। लेकिन यह बात आज मोदी से कहे कौन?

ये भी पढ़ें-संसद में गालियां देने वाले बीजेपी नेता को मिली नई जिम्मेदारी

उधर, तमाम बाधाओं के बाद भी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में जुटे शिवराज सिंह ने अब संकेत को समझ लिया है। शायद यही वजह होगी कि इस घटना के अगले दिन ही उन्होंने अपने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद इस तरह का भाषण दिया जिसे उनके विदाई का संकेत माना जा रहा है। नेता और सरकारें तो आती जाती रहती हैं। दलों और व्यक्तियों में मतभेद भी रहते हैं। मतभेद मनभेद में बदलते दिखाई दें,वह भी एक ही दल के समकालीन नेताओं के बीच, ऐसा शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com