जुबिली स्पेशल डेस्क
धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो के उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाओं ने तेज़ रफ्तार पकड़ ली है।
अपने जन्मदिन से पहले, दलाई लामा 3 दिवसीय एक अहम बैठक का आयोजन कर रहे हैं, जिसमें दुनिया भर से 100 से अधिक बौद्ध गुरु हिस्सा लेने धर्मशाला पहुंचे हैं।
यह बैठक 6 जुलाई को समाप्त होगी, जिस दिन दलाई लामा का जन्मदिन भी है, और उसी दिन उनके उत्तराधिकारी को लेकर कोई बड़ा ऐलान हो सकता है।
दलाई लामा कौन होते हैं?
बौद्ध परंपरा में “लामा” को अध्यात्मिक गुरु माना जाता है। लेकिन “दलाई लामा” का पद विशिष्ट है, जिसकी शुरुआत 11वीं सदी में हुई। यह पद न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि तिब्बत में राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व का भी प्रतिनिधित्व करता रहा है।
13वें दलाई लामा के समय यह पद चीन के खिलाफ तिब्बत के आत्मसम्मान और शासन का प्रतीक बना। लेकिन 14वें दलाई लामा के कार्यकाल में तिब्बत पर चीन का प्रभाव गहराया और 1960 में चीनी अधिग्रहण के बाद उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी। तब से धर्मशाला तिब्बती निर्वासित सरकार का केंद्र बना हुआ है।
उत्तराधिकारी को लेकर क्यों गहराया विवाद?
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को खोजने की प्रक्रिया परंपरागत रूप से तिब्बत में होती रही है, जहां ऐसा बालक खोजा जाता है, जिसमें वर्तमान दलाई लामा की आत्मा की छाया मानी जाती है। इस खोज में ध्यान, संकेत, सपने और आध्यात्मिक दृष्टि के आधार पर चयन किया जाता है।
मगर इस बार मामला अलग है। सूत्रों के अनुसार, संभावित रूप से यह उत्तराधिकारी भारत या किसी अन्य देश में पैदा हुआ हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह 385 वर्षों से चली आ रही परंपरा में पहली बार होगा कि उत्तराधिकारी तिब्बत से बाहर चुना जाएगा।
चीन की आपत्ति और दखल
इस प्रक्रिया को लेकर चीन ने तीखी आपत्ति जताई है। बीजिंग का दावा है कि दलाई लामा की नियुक्ति पर अंतिम अधिकार उसे ही होना चाहिए क्योंकि तिब्बत ‘चीन का हिस्सा’ है। चीन यह भी संकेत दे चुका है कि वह अपने हिसाब से दलाई लामा का “उत्तराधिकारी” घोषित कर सकता है।
मार्च 2026 को लेकर चीन का यह रुख विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जब वहां दलाई लामा से संबंधित औपचारिक वक्तव्य की संभावना जताई गई थी।
क्या कहता है धर्मशाला?
धर्मशाला में चल रही मौजूदा बैठक को केवल धार्मिक सभा नहीं, बल्कि तिब्बती पहचान और परंपरा की रक्षा का मंच माना जा रहा है। बौद्ध गुरुओं और तिब्बती समुदाय के अनुसार, उत्तराधिकारी को खोजने का अधिकार केवल धार्मिक परंपरा और दलाई लामा की इच्छा के अनुरूप होना चाहिए — किसी सरकार के निर्देश से नहीं।