Saturday - 6 January 2024 - 4:28 PM

पोलैंड में छाते लेकर घर से क्यों निकल रही हैं महिलाएं

न्यूज डेस्क

एक ओर दुनिया भर के देश कोरोना से जंग लड़ रहे हैं तो वहीं पोलैंड की महिलाएं लॉकडाउन के बीच सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है। ये महिलाएं मास्क लगाए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्रदर्शन कर रही हैं। कोई छाता लेकर निकल रहा है तो कोई हाथों में तख्ती लेकर। इन तख्तियों पर संदेश लिखा है-वायरस से लड़ों, महिलाओं से नहीं।

पोलैंड के गर्भपात कानून को ईयू का सबसे कड़ा गर्भपात कानून माना जाता है, लेकिन सरकार इसे और सख्त करने जा रही है। इसी को लेकर महिलाएं सड़क पर प्रदर्शन कर रही हैं। कोरोना के चलते यहां लॉकडाउन है और ऐसे हालात में भी राजधानी वारसॉ की सड़के कारों से जाम हैं। लोग बिना रुके हॉर्न बजा रहे हैं, इसलिए नहीं क्योंकि उन्हें कहीं जाने की जल्दी है, बल्कि यह उनका प्रदर्शन करने का तरीका है। कोरोना से बचने के लिए इन लोगों ने मास्क भी लगाए हुए हैं और कार में होने के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो रहा है। कई लोगों के हाथ में झंडे हैं जिन पर लिखा है #pieklokobiet यानी औरतों का नर्क।

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इतना ही नहीं राशन की दुकानों के बाहर जो कतारें लगी हैं उनमें भी लोगों ने हाथों में बैनर पकड़े हुए हैं। नेताओं के लिए इन पर संदेश है, “वायरस से लड़ों, महिलाओं से नहीं।” कुछ लोग छाते लेकर बाहर निकल रहे हैं। पोलैंड में छाते महिला आंदोलन का प्रतीक रहे हैं। इस तरह से देश के उदारवादी गर्भपात के कानून के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं।

क्या है पोलैंड का गर्भपात कानून?

पोलैंड में 1993 में गर्भपात कानून पारित हुआ था। यह यूरोपीय संघ के किसी भी देश की तुलना में सबसे सख्त गर्भपात कानून है। इस कानून के मुताबिक गर्भपात सिर्फ उसी कंडीशन में मुमकिन है जब मां के जान को खतरा है या फिर भ्रूण के विकास में बहुत बड़ी कोई बाधा आ रही है। यह सिर्फ 12वें हफ्ते तक ही किया जा सकता है। बलात्कार के मामले में भी। इस कानून का उल्लंघन करने वाले डॉक्टर को छह महीने से आठ साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है।

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ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पोलैंड का हर नागरिक इस कानून के खिलाफ है। बल्कि यहां तो पहले से ही “स्टॉप अबॉर्शन” नाम की पहल से कई लोग इस कानून को और भी ज्यादा सख्त करने की मांग करते रहे हैं। अब तक इस पहल से 8,30,000 लोग जुड़ चुके हैं। इनकी मांग है कि कानून में किसी भी तरह का अपवाद ना हो। भ्रूण में किसी भी तरह की खराबी इनके लिए गर्भपात की वजह नहीं है। इनके अनुसार, गर्भपात करने वाला बस इस बात का जवाब दे – क्या मां की जान को खतरा था? अगर जवाब हां है तो ठीक, नहीं तो जेल।

वोट बैंक की राजनीति?

पौलेंड में अब इस पर राजनीति तेज हो गई है। चूंकि यहां एक माह बाद चुनाव होना है और अब बहुमत वाली लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआएएस) ने इसे आगे बढाने का फैसला लिया है।

पोलैंड की संसद में 2017 से इस कानून को और सख्त करने पर विचार होता रहा है। अब चूंकि पीआएएस इसे आगे बढ़ाने की बात कह रही है तो इस पर राजनीति तेज हो गई है। गर्भपात पर बहस में पीआएएस ने हमेशा कड़े कानूनों का साथ दिया है।

इस पार्टी के नेता यारोस्लो काचिंस्की तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर किसी महिला का बच्चा मरा हुआ पैदा होता है, तो भी उस बच्चे को पहले कैथोलिक ईसाई मान्यताओं के अनुसार बैप्टाइज किया जाएगा, दफनाया जाएगा और उसका नामकरण किया जाएगा।

वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव के ठीक पहले और महामारी के बीच इस तरह की बहस को उठाना सिर्फ यह दिखाता है कि सरकार मतदाताओं को उलझाए रखना चाहती है। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी सिविक कोएलिशन (केओ) की नेता बारबरा नोवाका का कहना है, “संसद झक्की लोगों द्वारा पेश किए गए प्रस्तावों पर चर्चा करना चाहती है, वह भी ऐसे समय में जब लोग जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं, जब कंपनियां दीवालिया घोषित हो रही हैं और लोगों से उनकी नौकरियां, उनके घर छिन रहे हैं। ”

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1989 के बाद गर्भपात हर चुनाव में बना मुद्दा

पोलैंड में 1989 से हर चुनाव में गर्भपात मुद्दा बनता रहा है, लेकिन 2015 में पीआईएस के सत्ता में आने के बाद से इस मुद्दे ने काफी तूल पकड़ा है। पार्टी ने गर्भपात कानून कड़े करने का जितना समर्थन किया है, सड़कों पर उतने ही प्रदर्शन भी देखे गए हैं। कभी काले कपड़े पहने महिलाओं ने “ब्लैक मार्च” निकाले तो कभी जगह जगह कोट के हैंगर टंगे दिखे। छातों की तरह ये भी विरोध को दर्शाते हैं।

एक अनुमान के अनुसार पोलैंड में सालाना एक हजार वैध और करीब डेढ़ लाख अवैध गर्भपात किए जाते हैं। बहुत सी महिलाएं इसके लिए आसपास के देशों में जाने पर भी मजबूर होती हैं।

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