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जब पहली बार बना ‘महागठबंधन’ और सत्ता से बेदखल हो गई कांग्रेस

प्रीति सिंह

बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने, कहने-सुनने को बहुत हैं अफसाने,
खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने।

ये लाइने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने 1977 में दिल्ली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कही थी। उनकी जनसभा में कांग्रेस छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक दलों के लोग थे। इस जनसभा के कुछ ही दिनों बाद इमरजेंसी खत्म हुई और देश में छठवां लोकसभा चुनाव का ऐलान हुआ।

यह चुनाव बहुत ही खास था। इस चुनाव ने राजनीति की एक नई परिभाषा गढी। यही वह समय था जब देश में पहली बार ‘महागठबंधन’ बना और चुनाव में 25 सालों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई।

देश में 25 जून, 1975 से लेकर 21 मार्च, 1977 तक भारत में इमरजेंसी लगी रही। इसी दौरान 23 जनवरी, 1977 को इंदिरा गांधी ने अचानक से ऐलान कर दिया कि देश में चुनाव होंगे। 16 से 19 मार्च तक चुनाव हुए। 20 मार्च से काउंटिंग शुरू हुई और 22 मार्च तक लगभग सारे परिणाम आ गए। चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए अच्छे नहीं थे। इंदिरा की तानाशाही का जवाब जनता ने अपने मत से दिया। जनता ने बता दिया कि गलत चीजें वह बर्दाश्त नहीं करेगी।

कांग्रेस पार्टी के खिलाफ लहर का अंदाजा आप इस तरह से लगा सकते हैं कि इस चुनाव में अपनी परंपरागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हार गईं। उनके ताकतवर बेटे संजय गांधी का भी यही हश्र हुआ।

यह पहला मौका था जब पूर्ण बहुमत पाने वाली कांग्रेस को 1977 के चुनाव में मात्र 154 सीटें मिली। इस चुनाव में विपक्ष एकजुट था। इस गठबंधन को जनता पार्टी नाम दिया गया था, लेकिन जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था भारतीय लोक दल के सिंबल पर। इस चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें मिली थीं। मोरारजी देसाई इस गठबंधन के नेता थे।

महागठबंधन के जनक

जनता पार्टी के गठन में कुछ नेताओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। जयप्रकाश नारायण में 1974 में बिहार में टोटल रिवॉल्यूशन का नारा दिया था और इस चीज को वो पूरे देश तक ले गए। इनको विपक्ष ने धुरी बनाया और इनके इर्द-गिर्द सारी पार्टियां इकट्ठा हुईं।

दूसरे राजनारायण थे जो 1971 में इंदिरा गांधी से चुनाव हारे, पर हारने के बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ इन्होंने मोर्चा खोला। ये कह सकते हैं कि ये इमरजेंसी और उसके बाद कांग्रेस की हार की जड़ में थे।


तीसरा महत्वपूर्ण नाम जॉर्ज फर्नांडीज का है। 1974 में इन्होंने रेलवे स्ट्राइक की और उसके बाद अंडरग्राउंड हो गए। 1976 में ये पकड़े गए। हथकडयि़ों में लिपटे जॉर्ज की फोटो इंदिरा के अत्याचार की तस्वीर बन गई थी।

इसके अलावा नानाजी देशमुख, मोरारजी देसाई, जस्टिस जग मोहन सिन्हा और शांतिभूषण जैसे लोगों की वजह से ही 1977 में जनता दल का गठन हुआ और कांगे्रस सत्ता से बाहर हुई।

सत्ता पक्ष के खिलाफ एकजुट हुआ विपक्ष

आपातकाल के दौरान तमाम देश के लोगों को बहुत ही भयावह स्थिति का सामना करना पड़ा था। कई नागरिक अधिकारों को निलंबित रखा गया। राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था।

जब इंदिरा ने चुनाव कराने की घोषणा की और जेल से विपक्षी दलों के सभी नेता निकले तो कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए लामबंद हुए। लिहाजा चारों विपक्षी दलों (कांग्रेस (ओ), जनसंघ, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी) ने जनता गठबंधन के बैनर तले चुनाव लडऩे पर सहमति जताई। इस गठबंधन ने भारतीय लोकदल को आवंटित चुनाव चिह्न को अपना निशान बनाया।

दिग्गज कांग्रेसियों ने बदले पाले

1977 के चुनाव में विपक्ष के नेताओं को जनता के बीच जाने का बहुत कम समय नहीं मिला लेकिन जनता में इंदिरा के प्रति नाराजगी ने विपक्ष की मदद की। इसके अलावा दूसरा सबसे बड़ा कारण था कि पूरा विपक्ष लामबंद था। इसके अलावा कांग्रेस के कई नाराज नेता भी पार्टी छोड़ जनता पार्टी के साथ आ गए।

इमरजेंसी के दौरान जिस तरह देशवासियों में इंदिरा सरकार के प्रति गुस्सा था उससे कांग्रेस को नतीजों का भान पहले ही हो चुका था। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पाला बदल लिए। तत्कालीन कृषि और सिंचाई मंत्री बाबू जगजीवन राम ने फरवरी के पहले हफ्ते में ही पार्टी को अलविदा कह दिया तो हेमवतीनंदन बहुगुणा और नंदनी सत्पथी भी विपक्ष के साथ हो लिए।

उत्तर में ज्यादा नुकसान

कांग्रेस पार्टी को वैसे तो पूरे देश में नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन सबसे मजबूत किले उत्तर प्रदेश, बिहार सहित उत्तर भारत के सभी राज्यों में खासा नुकसान झेलना पड़ा।

85 सीटों वाले उत्तर प्रदेश और 54 सीटों वाले संयुक्त बिहार में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की रिकॉर्ड कम सीटें आईं। इनकी तुलना में तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में इसका प्रदर्शन ठीक रहा।

महागठबंधन में शामिल हुई पार्टियां

जनता पार्टी के गठबंधन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, शिरोमणि अकाली दल, पेजैंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया, रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, डीएमके पार्टियां थीं। सबने भारतीय लोकदल के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा।

कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां

कांग्रेस के गठबंधन में एआईडीएमके, सीपीआई, जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस, रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी शामिल थे। दोनों ही गठबंधन को दो-दो निर्दलियों का समर्थन प्राप्त था।

कब हुए चुनाव
16 से 20 मार्च 1977

किसको कितनी सीट
जनता पार्टी गठबंधन
सीट – 345
मत प्रतिशत – 51.89

कांग्रेस गठबंधन
सीट – 189
मत प्रतिशत – 40.98

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